Wednesday, October 28, 2015

क्या उठती है तलब 
तेरे दिल में भी कभी 
भरके मुझे बाहों में 
सीने से लगा ले 

मुझे तोह ये ख़याल जाने कितनी मर्तबा 
बेचैनियों के सिलसिले देके जाता है 



Thursday, October 8, 2015

दोहरा रहा है ख़ुदको ,समय का कोई लम्हा 
तब भी आँसू बहाये थे, आज भी टूट कर रोये हैँ 

तब भी कोई नहीं था, लम्बी ख़ाली राहों में 
आज भी तन्हा खडें हैँ , इन बंजर रास्तों पर 

मूँदकर आँखों को, जो सुलझा पाते अँधेरे 
नींद के ख़याल से, न घबराता ये दिल 

बाक़ायदा ये इल्म था, अँजाम क्या होगा 
तब भी लूटा बैठे, जान-ओ-ज़िन्दगी उन पर 

हम ख़ुदको क़त्ल करदे, उनकी एक आह हो 
और वो है की इन आँखों को भी पढ़ नहीं पातें 

उठ के फिर चलें हैँ, इरादों के कारवां 
ख़ुदा करें के अब तोह ये उनपर ना रुके 

मंज़िलों का शौक़ , काफ़िर नहीं रखतें 
नेक हमसफ़र हो तोह ज़िन्दगी मुक्कमिल 

Tuesday, October 6, 2015

मेरे सब्र के इम्तेहाँ का इम्तेहां हो चला 
जो चाहके भी न चाहा वो काम हो चला 
ऐसा ढला सूरज की रौशनी को तरस गए 
सिवा तुम्हारे हर आँखों से आंसू बरस गए 
मेरे ही आने की शायद राह थी बाकी 
कदमो में काँच टुटके, गिर सके ताकि 
सीने से छलक के, सैलाब बह ना जाये 
बिन तेरे बूत मेरा, बेज़ान ढह न जाये 
समय की कतार में, बेबाक़ से खड़े है 
तूने कहा ये ज़िद्द है , हम प्यार पे अड़े हैं 
हलक़ निगल सका ना , थी दुआ या ज़ेहर 
तू नसीब का करम, या तकदीर का केहर 
कोई तो बताये, दिल से निकाला जाये कैसे 
भूलकर उसे, खुदको संभाला जाये कैसे 
नामुराद दिल को यूँ, उनसे लगा लेते है 
बेदर्द को ही क्यूँ, लख़्ते जिग़र बना लेते है
मर्ज़ ऐसा है की,ला-इलाज पेश आता है
बस इक दीदार, क़तरा क़तरा संवर जाता है
सख़्ती से थाम रख्खा है, आरज़ूओं की लगाम क़ो 
दे ना जाना ज़ख़्मी मोड़, मेरे इश्क़ के अंजाम को 
बहरहाल वज़ूद तो, वैसे भी क्या है मेरा 
आँखों से इन होंठों से बरसता है नूर तेरा 
रिश्तों पे मोहर तो वैसे भी नहीं थी चाही 
तेरी नज़र जैसे हुक्म , तेरी बात पक्की सिहाई 
ख़यालों के भँवर का अब ला दो वो पहर 
चुभते हैं अँधेरे , करदो अब सहर 
जागते इन ख्वाबो को करना है नींद से रूबरू 
छोड़ के ना जाओ या फिर लादो कोई खुदसा हूबहू 




Monday, September 14, 2015

मुट्ठी में रेत सा रिश्ता है तेरा मेरा 
जितना कसती जाती हूँ , उतना बिखरता जाता है !!

Friday, July 10, 2015

टकरा जाता हूँ 
मैं ठोकर खाता हूँ 
लड़खड़ाता हूँ 
निराशाजनक 
मैं अक़्सर हार जाता हूँ 
तू क्यूँ मग़र 
ये बोझ उतारती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

कभी दुनियादारों से 
कभी रिश्तेदारों से 
कभी लख़्ते रूह से 
कभी अज़ीज़ यारो से 
मैं ही मात खा जाता हूँ 
तू क्यूँ मगर 
मात खाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

यूँ तो दम बहोत हैं 
मेरे ख़ूने जिग़र में 
शोले मगर अपनों के 
वो दाग़ दे जाते हैं 
मोम सा दर मैं पिघल जाता हूँ 
तू क्यूँ मगर 
सर झुकाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

मेरा दामन भरा है 
तेरी आज़माइशों से 
मेरी साँसे चलतीं हैं 
तेरी ही ख्वाइशों से 

कभी मेरे भी ख्वाबों की डोर थामे 
तू क्यूँ मगर 
क़दम बढ़ाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

कश्मकश में जीता हूँ 
तिनका तिनका मरता हूँ 
सूरज की तीख़ी किरणों से 
ख़ुदको ज़िंदा करता हूँ 
जीने मरने के बीच कहीं खो जाता हूँ 
मौत क्यूँ मगर मुझे आज़माती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

Thursday, July 9, 2015

कभी यूँ लगा 
की शहर ठीक नहीं 
तो कभी यूँ की शायद 
लोग ही ख़राब है 
इन ज़द्दोज़हद का 
मरहम यूँ लगा 
शहर छोड़ देना ही 
मुक़म्मिल ईलाज़ है 

शहर दर शहर 
घऱ दर बदर 
जानें कितने घाट का यूँ पानी चख़ लिया 
कुछ दिल में समेटे 
कुछ आँखों में भर लिए 
हर जगह की निशानी टूटा ख़ाब रख लिया 

इक बात जो ना बदली 
यूँ शहर बदल बदल 
उन परछाईयों का हर बार 
मेरे साथ हो लेना 
उन तन्हाइयों का हर बार 
मेरे साथ हो लेना 

नयी ज़मीं सजाती हूँ 
नया आसमाँ लगाती हूँ 
नयी उम्मीदों की नींव पे 
नया घऱ बनातीं हूँ 
जानें किस दरवाज़े से लौट आते हैं मगर 
कुछ बिछड़े कारवाँ , कुछ अधूरे से सफ़र 
कुछ उलझी हवाएँ , अनुदार फिज़ाएँ 
फ़िर हो जाता है इस दिल को असुगम वो शहर 

फिर लोग अनैतिक लगतें हैं 
हर बात लगे दुख़दायी 
हर चीज़ मैं विश दीखता है 
हर सख्श लगे सौदाई 
फिर मनका पंछी पिंजड़े से उड़ने को व्याकुल होता है 
रोम रोम फिर शहर त्याग करने को तत्पर होता है 

चलता रहता है ये सिलसिला 
शहर बदलतें रहते हैं 
पेचीदा ख़याल मेरे 
गुथ्थियोँ में मचलते रहते हैं 

शायद ये ख़ता इन शहरों की नहीं 
उन लोगों की नहीं, हालातों की नहीं 
ये मर्ज़ मेरे दिल के ही किसी घर में पलता है 
जो संग मेरे हर देश हर शहर में चलता है 

बहरहाल इलाज इसका यूँ दौड़ते रहने में नहीं 
अंजान हो जाने में नहीं, शहर बदलने में नहीं 
थामके खुदको खुदके ही सामने लाना होगा 
आँखों में आँखें डालकर ये बतलाना होगा 
डर का वो समंदर मुझमें ही बसता है 
नाकामयाबी का ज़हर खुदको ही ड़स्ता है 
करनी है जो जिऱाह, खुदसे ही करनी होगी 
ये लड़ाई औरो से नहीं, खुदसे ही लड़नी होगी 
बंद करो यूँ भागना अपने अंदर के वन से 
सिखों नया कुछ अब तो अपने ही जीवन से 
शहरों के मुखोटों में खुदको दबाना बंद करो 
बदलाव को अपनाना सीखो, मुँह छिपाना बंद करो 

Saturday, June 27, 2015

शब्द नहीं मिलते 
और बात रह जाती है 
अक़्सर ख्वाहिशें 
आँसूओं में बह जाती है 

Thursday, June 25, 2015

हम दोनो ही हम दोनों की तक़दीर में नहीं थे 
वर्ना आज हम दोनों में क्या दुश्मनी है कोई !
तुम भी मुस्कुराते हो, हम भी मुस्कुराते हैं 
वाक़ई हमारी ज़िन्दगियों में क्या कमी है कोई?

Saturday, June 6, 2015

उस किताब मे कितने अल्फ़ाज़ मिले 
इस काग़ज़ पे मगर कोई निशाँ ही नहीं 
अब जब की नज़र आने लगीं मंज़िले 
तो राहों को मिलती कोई दिशा ही नहीं 


Friday, February 27, 2015

कुछ गुनाहों की 
कोई सज़ा नहीं होती 
कोई प्रायष्चित नहीं होता 
कोई माफ़ी नहीं होती  

ता उम्र वो गुनाह 
साथ चलते हैं 
दहकते अंगारों से 
दिल में जलते है 

आँखों का नासूर बन 
रोने नहीं देते 
ख़ौफ़नाक ख़्वाब बन 
सोने नहीं देते 

आईने में रूबरू,
होते हैं शाम-ओ-सेहर जो 
शर्मशार निग़ाहों पे 
ढाते है केहेर वो 

सीने का दाग वो 
दर्द का आलाप वो 
बिरहा का राग वो 
लेख जोख हिसाब वो 

वो फेरिश्त उन गुनाहो की अनछुई रह जाती है 
फिर भी हर घड़ी पल पल, समय वही दोहराती है 
जीने नहीं देता सुकून से, एहसास उनके होने का 
पैया पैया मोल कटता है, पाने का और खोने का 

भर जाता है पीड़ा से जब, कण कण छलनी सीने का 
हर गुनाह फिर पूछता है,"क्या आया मज़ा कुछ जीने का?"

तब भी कहाँ उतरते है 
कंधो से बोझे आहों के 
चिता तक साथ निभाते है 
साये उन गुनाहों के 

वाक़ई कुछ गुनाहों की 
कोई सज़ा नहीं होती 
क़तरा क़तरा बिक जाये 
क़ीमत अदा नहीं होती 

Thursday, February 5, 2015

यक़ीनन वैसे ठीक थे 
तुम वहाँ, हम यहाँ 
ख़ामख़ा तुम ख़्वाब लिए 
देहलीज़ पे आ गए 
हम उसको हक़ीक़त जानके 
फिर प्यार कर बैठे 

आलम फिर वही हैँ 
तुम कही, हम कहीं हैँ 
दिल कम्भखत जाने क्यों 
फिर भी रुका वहीँ हैं 

बुलबुले से उठते हैं 
ख्वाहिशो की रेत से 
खुदमे समेटे हुए 
चेहरा तुम्हारा 
हसीं तुम्हारी 
और प्यार की मीठी 
बातें हमारी 

पर,
 जब उदासी छू लेती है 
 बेमानी उन बुलबुलों को 
झट से टूट बिखर जाते है 
जाने खाब किधर जातें है 
चुभते हैं फिर आँखों में 
रेत के तीखे सच्चे कण 
और सोचते है फिर से हम 

काश 
न तुमसे मिलना होता 
न होता तुमसे प्यार 
न फिरसे दिल की राह पे चलते 
न करते फिर ऐतबार 
किसी सवाल का जवाब मेरे पास नहीं 
किसी पल का हिसाब मेरे पास नहीं 
कुछ है गर अभी तो ये उलझन ही है 
सब होकर भी क्यू कुछ मेरे पास नहीं 


Thursday, November 20, 2014

तुम साथ नहीं ये हार नहीं 
कहीं जीत मेरी ही है 'जाना'
ना होकर भी हो साथ मेरे 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

ढलते दिन के साये में जब 
महफ़िल सजाये बैठे हो 
तुम जाम बनाये बैठे हो 
किसी घूंठ में मेरा स्वाद आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कुछ गीत तुम्हारे दिल अज़ीज़ 
कोई ग़ज़ल जो मैंने गायी हो 
कभी उनकी धून में खो जाओ 
और कही मेरी आवाज़ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

मस्ती से हो मन भरा 
और दिल को सूझे अठखेली 
किसीको सताके हो रुलाना 
और चेहरा मेरा नज़र आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कोई बात से दिल परेशान हो 
भीड़ में भी तन्हाई लगे 
सीने से लगाके रोना हो 
और याद जो मेरी बाह आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

किसी हार में, ग़म में 
किसी जीत में,जश्न में 
कहना हो कुछ दिल का हाल 
और याद जो मेरा नाम आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कभी होंठ तुम्हारे शोर करें 
भीग जाने का वो ज़ोर करें 
मदहोशी में खो जाना हो 
और ख्यालों में मेरे होंठ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

तम्मनाएँ कभी जो बेहक जाएं 
आग़ोश में बदन महक चाहे 
ख्वाइश हो ज़िद्दी, लहू गरम 
और याद जो मेरा साथ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

ना होकर भी हो साथ मेरे 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

Monday, November 17, 2014

उल्फ़त सा बहरहाल कोई दर्द ही नहीं 
शायद इस दर्द सा कोई ज़र्द ही नहीं 
उनसे क़ुर्बतों के है हासिल भी अज़ीब
ला-इलाज़ बेबसी सा कोई मर्ज़ ही नहीं 

Saturday, November 15, 2014

तुमसे मिलना सबसे ख़ूबसूरत इत्तेफ़ाक़ 
तुमसे प्रेम करना आत्मीय अनुभूति रही 

शुक्रगुज़ार है दिल एहतराम के लिए 
नवाज़िश के लिए, इस्तक़बाल के लिए 

गद गद है मन आज, ख़ुशी से भर आया है 
तुम संग बिता इक लम्हा प्यारा याद आया है 


फ़ासले दरमियाँ के मुक्कमिल रहे 
ज़ेह्न -ओ-ख़्वाब में तब भी हासिल रहे 
ज़ेहर हो, लत हो, क्या चीज़ हो 'जाना'
ना होकर भी ज़िन्दगी में शामिल रहे 

Friday, November 14, 2014

सोचूँ तो वजहों की फ़ेरिश्त बन जाएगी 
न सोचूँ तो तुमसे कोई खला ही नहीं 
मिलने को तो मिले हमें हर मोड़ पे आशिक़ 
मुख्तलीफ़ , तुमसा मगर कोई मिला ही नहीं 

Thursday, November 13, 2014

ना हो तेरी खुशी 
मेरे रुख़्सत की मोहताज़ 
नज़र जो फेरी तूने 
कदम वही थम जायेंगे 
ये तो ख्वाहिशें-वस्ल है 
जो अब तक यही हु मैं 
लबोँ से कहदो 'जाना'
उस ओर भी नज़र ना आयेंगे 

Saturday, November 1, 2014

एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे
ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे

धुंदले कुछ ख्वाबों के साये
अक्सर मिलने आते हैँ
हम इस इन्तेज़ार में हैं
तुम कब मिलने आओगे

कुछ शौख़ आला तुम्हारे थे
कुछ हसीं नाज़ हमारे हैं
हम न रहेंगे तब 'जाना'
हम से ही जाने जोआगे

एक शायर का इश्क़ हो तुम
शब्दों में पिरोये जाओगे 
शेरों में तुम्हारा अक्ष होगा 
नज़्मों में नज़र तुम आओगे 

ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे
एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे







कुछ मेरी ही तरह है ये इश्क़ बावरा 
उसे चाहता भी है 
और वो चाहिए भी नहीं 

Thursday, September 18, 2014

मेरी आहों में आहें, मिला रहा कोई 
इस दिल को फिर याद, आ रहा कोई 
जाना पहचाना, एहसास लौटा है 
दूर से ही मुझे गले, लगा रहा कोई 
इस दिल को फिर याद, आ रहा कोई 

अल्फ़ाज़ों का साथ, पीछे रह गया 
आख़री शब्द 'अलविदा', कह गया 
तनहा है जागे,अरसों सोये नहीं 
मीठी थपकियों से, सुला रहा कोई 
इस दिल को फिर याद, आ रहा कोई 

भूली नहीं नटखट, हँसी  उसकी
मुझे छेड़ फिर, खिलखिला के हँसना 
खोज रही थी लम्हे, दोहराने के लिए 
ख़यालों में फिरसे, सता रहा कोई 
इस दिल को फिर याद, आ रहा कोई 

मेहफ़ूज़ उसकी बाहों का, संग खो गया 
तन्हाइयों की भीड़ में, दिल तंग हो गया 
मन करता है उसके, सीने से लग जायें 
कसके अपनी बाँहों में, मना रहा कोई 
इस दिल को फिर याद, आ रहा कोई 

Monday, September 15, 2014

भीड़ में वो तन्हा, सख्श हूँ मैं 
जिसे देखकर तूने, अनदेखा किया 
मैं अब भी तेरी हसीं, निहारती हूँ 
तूझे अब भी मेरे अश्क़, दीखते नहीं 

Thursday, September 11, 2014

मेरे मन के पंछी 
थम ज़रा 
दिखता हैं  मगर 
आकाश नहीं 

कुछ बदलियों ने, घर बनाया है 
वो लम्हा अभी, नहीं आया है 
ये दर्द उसके, दिल में भी हो 
इन आँखों में, जो भर आया है 

कोई आह कसक की, यूँ भी तो हो 
हर साँस में मेरी, याद आये 
एक नज़र को तरसे, नज़र उसकी 
हर चाह में मेरा, नाम आये 

तरसते ख़्वाब को, थाम तू ले 
ऐ मन सब्र से, काम तू ले 
इम्तिहाँ ऐसे, और भी है 
अभी और आएंगे, मक़ाम ऐसे 

ये दिल उसके, क़दमों में रख 
कहीं और का, मन, रुख करते हैं 
दीखता है मगर, आकाश नहीं 
कहीं और की उड़ान, भरते है 

मेरे मन के पंछी 
थम ज़रा 
किसी और दुनिया में चलते हैं 

Thursday, September 4, 2014

तुम थाम लो तो  शायद, ये भी यार कर जाएं 
हया की हर हिचकियों को, पार कर जाएं 
मर जाएं ,उससे पहले सीने से लगा लेना 
जो न किया 'जाना', शायद, इस बार कर जाएं !





Wednesday, August 27, 2014

बेख़ुदी में 'जाना' तुम, कमाल करते हो
ख़ामोश रहकर भी, हमसे, सवाल करते हो

कुछ अल्फाज़ों से, अदा करते
कुछ इशारों में, बयाँ करते
तब देते हम भी, जवाब क़ोई
तुम्हे तोहफ़ा, लाज़वाब कोई

ऐसे रूठे रहने से, तक़दीर नहीं बनती
हँसी बिना ख़ूबसूरत, तस्वीर नहीं बनती
तुम तो मेरे दिल के, सबसें करीब रहते हो
फिर भी 'जाना', बेरूख़ी क्यूँ, बातें कहते हो

चलो, भूलो,जो हुआ, दिल अपना साफ़ करो
हम भी तुम्हारे अपने है, अब तो हमें माफ़ करो
क्या उम्र भर यूही मुँह, फुलाये रखोगे
दिल में हमसे नफररत, बनाये रखोगे 

क्या नींद आती है तुम्हे, नाराज़ रहकर
क्या सुकूँ मिलता है, कड़वी बात कहकर
क्या कभी दिल तुम्हारा, तड़पता ही नहीं
बात करने के लिए, कभी तरसता ही नहीं

क्या सच में तुम अब इतने, बेपरवाह हो गए
या उम्र दराज़ के लिए, हमसे ख़फ़ा हो गए 
एकबार मिली ये ज़िन्दगी, ऐसे न इसे बर्बाद करो 
प्यार न सही, नफ़रत की, क़ैद से हमें आज़ाद करो 

ख़ामोश रहकर भी हमसे , यु न तुम सवाल करो 
जो भी है दिल में तुम्हारा, एक बार तो 'जाना' बात करो 

Sunday, August 24, 2014

यूँ भी होगा, ये सोचा न था 
सोचा हुआ, होता है क्या ?
वस्ल की तमन्ना, थी मगर 
वस्ल का इनाम, सोचा न था 

तअल्लुक़ को वज़ह की, हूँफ नहीं 
क़ुर्बत को किसी का, ख़ौफ़ कहा 
यूँ डूबती नब्ज़ ही, दे देगी 
हौसलों का सिला, सोचा न था 

ख़्वाहिशों के भी,पर होते है 
आसमाँ से इश्क़, लड़ाते हैं
हसरतों को, यूँ भी मूझसे 
कोई देगा मिला, सोचा न था 

Saturday, August 23, 2014

ऐ ख़ुदा, ये कैसी बात हुई 
फिर वही, बरसात हुई 
क्या लुत्फ़ कोसों आने का 
न क़ैद से जो, आज़ाद हुई 

वही काले घने, भरे बादल 
वही सुना गहरा, आसमाँ 
तीख़ी हवा का शोर, सर सर 
वही उसकी, यादों का समां 

जैसे वहाँ, बरसता था 
यहाँ भी टूट के, आया है 
बूँदो का सैलाब, देखो 
प्यार का मौसम, लाया है 

मन करता है, नंगे पाव 
निकल पडू इन, सड़कों पर 
बाँहों को फैला के, अपनी 
बारिश को लूँ, खुद में भर 

क़तरा क़तरा, मुझको छूकर 
उतरेगा जब, पानी तन से 
निखरेगा हर रोम, जैसे 
छू लिया हो, उसने मन से 

होठों पर जब, गिरेंगी बूंदे 
आँखों में  शराब, आ जाएगी 
एक बार जो उसका, नाम लिया
मदहोशी, छा जाएगी 

ना होकर भी, वो होगा यही 
मेरे कण कण में, मेरी बाँहों में 
दूर होकर भी, मुझसे दूर नहीं 
मेहकेगा वो, मेरी साँसों में 

जाने क्यों बरसती है, बरसात 
केहर मेरे दिल, पर ढाती है 
हर बून्द में भरके, याद उसकी 
वो प्यार उसका, ले आती है 

Friday, August 22, 2014

तुम ज़िद अपनी जताते रहो 
मैं ख़्वाब अपने सजाऊँगी 
तुम कदम कदम दूर जाते रहो 
मैं क्षण क्षण पास आऊँगी 

तुम ज़ुबाँ से अपनी कुछ न कहो 
मैं आँखें पढ़ती जाऊँगी 
तुम पीठ दिखाते जाओ जाना 
मैं दिल मैं आती जाऊँगी

मेरा चेहरा भी न देखो तुम 
क़सम तुम्हारी निभाऊंगी 
बेशक क़त्ल कर देना मेरा 
जो नज़र तुम्हे आ जाऊँगी 

ज़िद्द तुम्हारी अब मान है मेरा 
मर जाऊँगी, तुम्हे ना बुलाऊंगी 
तुम नफरत करते जाओ जाना 
मैं प्यार करती जाऊँगी 

Thursday, August 21, 2014

प्यार करना भी उनकी मर्ज़ी थी 
न करना भी उनका ख़याल 
हम तो बस उन हाथों की 
कठपूतली ही  रहें 

नफ़रत भी यूँ करते हैं वो
कोई एहसान हम पर जैसे 
कुछ कहके उनकी शान में और 
गुस्ताख़ी क्या करें 

Friday, August 15, 2014

ना कर मूझसे गुफ़्तार बन्दे , इश्क़ हो जायेगा 
ना कर यूँ ऐतबार बन्दे , इश्क़ हो जायेगा 
ख़ुद को खुद्की क़ैद में रखना, नया नहीं लगता 
ना कर मुझे आज़ाद बन्दे, इश्क़ हो जायेगा 

वाबस्ता है तुझसे जाना, कितनी शोख़ नज़र 
ना कर मुझपे नज़र बन्दे , इश्क़ हो जायेगा 
शहर क्या, गली क्या, कोई कूचा भी न देख 
न कर रुख़ मेरे घर का बन्दे, इश्क़ हो जायेगा 

मदमस्त है आँखें तेरी, वो बातें मनचली 
रख काबू में अरमाँ बन्दे, इश्क़ हो जायेगा 
हाथों से फिसल जाता है, क़तरा क़तरा चाहत का 
मुट्ठी में ने बांध बन्दे , इश्क़ हो जायेगा 

परिंदे हैँ ये ख्वाबों के, ख्वाबो में ही रहने दे 
ना दें हूँफ हक़ीक़त की , इश्क़ हो जायेगा 
बग़ावत ना मौहब्बत का, ज़रिया बन जाए 
ना कर मुझसे तक़रार बन्दे, इश्क़ हो जायेगा 


गुफ़्तार - to talk
वाबस्ता - attached, connected



Monday, August 4, 2014

मय को अपनी औक़ात से ज़्यादा ना पी
ग़ज़ब होगा 'जाना' जो आँखें बोल पड़ी

खँजर से सीने को चिर् तो दोगे तुम
ख़ुदको उसमे देख होगी तक़लीफ़ भी बड़ी

Friday, July 25, 2014

कश्मकश है गुत्थी है 
कभी समझ नहीं पाया दिल
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

देता है वो बेक़रारी 
सुकूँ पर उसी से मिलता है 
दुश्मन भी वही दोस्त भी 
कैसे शख़्श पर देखो आया दिल 

पत्थर से भी ज़्यादा पत्थर 
है ह्रदय पर मोम सा 
क़ायनात का गुस्सा लेकिन 
फूंलों से भी नाज़ुक दिल 

माँगा नहीं ख़ुदा से मैंने 
लकीरों में मेरी छुपा था वो 
प्यार दिया जहाँ भर का 
फिर भी अपना दिया न दिल 

पास जाऊं तो दूर हो जाता है 
दूर जाऊँ तो पास आ जाता है 
भूल जाऊं तो और याद आता है 
बड़ी मुश्किल में है अपना दिल 

साँसों में मेरी घुल गया है 
अब जाँ जाये तो वो जाये 
रोज़ है क़त्ल वो करता मुझे 
किस कातिल पर आया दिल 

अब कर लिया प्यार तो क्या भूलें 
सच- ज़ालिम पर आया दिल 
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

Saturday, July 19, 2014

सुखी डाली को तीली लगा ही गए 
हताश हो चुके थे ख़याल उसके 
आग भी लगी 
धूआँ भी उठा 
तिनका तिनका अब रोज़ 
बिखरती है राख़ 

ढांचा डेह गया 
अस्तित्व बह गया 
भ्रमित मेरा अक्ष 
यतीम रेह गया 
भ्रम की तपन से 
निखरती है खाक़ 
तिनका तिनका अब रोज़ 
बिखरती है राख़ 

Wednesday, July 16, 2014

बिन दस्तक, जैसे कोई ख़्वाब
आये तुम और चले गए 
किसकी लिखूँ मैं जीत यहाँ , 
किसकी अब मैं हार लिखूँ 
तूम कहो तो 'नाम' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

वो भी कैसे दिन थे 'जाना'
आये और आकर चले गए 
कुछ लम्हों की जीवन गाथा 
क्या उनका हर तार लिखूँ 
तुम कहो तो 'साथ' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

तीक्ष्ण नज़र ओ मीठे अधर 
लहू पे केहर उठा गए 
आग़ोश मैं ख़ुशनुमा ज़िन्दगी 
या साँसों की तेज़ रफ़्तार लिखूँ 
तुम कहो तो 'स्पर्श' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

किस्मत में आई वो तराई 
गिर ज़मीं पर आ गए 
है अभिलाषी दिल मगर क्यों 
उम्मीद उसे या एतबार लिखू 
तुम कहो तो 'दर्द' हमारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार ' लिखूँ 



Thursday, July 10, 2014

केहते हैं, दर्द की बेहतर दवा यही 
दिलको नए दर्द से मिला दीजिये 
ख़फ़ा होता है, जिसे न पाके रूबरू 
नाम उस सख्श का, दोहरा दीजिये 

कभी तो दिलके, सब्र का बान टूटेगा 
कभी तो उस यकीं का, ईमान छूटेगा 
बताके अंजामे मोहब्बत, बार बार 
उसकी मोहब्बत का इम्तेहाँ लीजिये 

भर सके जो दामन में , नफ़रत की आग को 
धर सके जो माथे पे, तोहमत के दाग़ को 
उल्फ़त में हो दिल का, ऐसा ही जुनूँ अगर 
ऐसे ज़िद्दी दिल का, कोई क्या कीजिये 

केहते हैं, दर्द की बेहतर दवा यही 
दिलको नए दर्द से मिला दीजिये 
कहा की उन्हें भूलके, नया दर्द लिया जाए 
केहता है दिल, यूँ भी कर आज़मा लीजिये 



Wednesday, July 9, 2014

तस्वीर आपकी 'जाना" आप जैसी नहीं 
प्यारसे मनाने पर मान जाती है 
दो पल उन आँखों में देखना मेरा 
और हाल मेरे दिल का वो जान जाती है 

आपको तकलीफ़ है मेरे आने पर 
वो तो हंस कर प्यारसे गले लगाती है 
जो ज़ख्म मुझे आपका मौन देता है 
तस्वीर उन घावों पे मरहम लगाती है 
तस्वीर आपकी "जाना"आप जैसी नहीं 
प्यारसे मनाने पर मान जाती है 

देखो तो कितने प्यारे लगते हो इनमें 
आपसे बेहतर ये नज़र आती है 
ख़डूस हो आप,और बेहद नकचढ़े 
इन्हें देख़ो तो, स्नेह से मुस्कुराती है 
दो पल उन आँखों में देखना मेरा 
हाल मेरे दिल का वो जान जाती है 



Tuesday, July 8, 2014


मेरा प्यार समझनें में तुम्हे 
उम्र लगे शायद 

लगने दो 

उम्र के उस पार तो 
मिलोगे न हमें ?

Sunday, July 6, 2014

सेहज के , 
संजो के रखे थे मैंने 
कुछ तीखे बोल तेरे 

तब वो कड़वे लगते थे 

आज
जब भी उनको 
मन की पिटारी में देखती हु 

बेहद मीठे लगते हैं 

उन्हें मंद ध्वनि में 
दोहराती हू, सुनती हू 
मेहसूस करती हू 

और फिर धीरे से मुस्कुराती हू 

वाक़ई 
प्यार में कुछ तीखा नहीं होता 
कोई बात कड़वी नहीं होती 

सब कुछ सुखदाई ही होता है 


बस,
ये समझने में कभी कभी 
कुछ वक़्त लग जाता है 

प्यार में तो केवल प्यार ही होता है 

Friday, July 4, 2014

कोसों चले है तनहा 
अब आराम दीजिये 
कहतें है सब्र मेरे 
सब्र से काम लीजिये 

वो आप थे,ख़्वाब थे 
या इश्क़ का बेहलावा  
कहता है दिल मेरा 
एक तो नाम लीजिये 

आप ही से मिलके हुए 
होश-ओ-समझ लापता 
अर्ज़ है ढूंढ लाओ  
आप इंतेज़ाम कीजिये 

शर्त-ए-इश्क़ गर जुदाई है 
मंज़ूर, फ़क़त इक इल्तिज़ा 
भरके अपनी बाँहों में 
प्यार सरे-आम कीजिये 

प्यार ना दे सको ना सही 
उन आँखों में जो जलता है 
होंठों से होंठों को छूकर 
नफ़रत का ज़ाम दीजिये 

आपके बग़ैर भी जीके 
हमनें दिखा दिया 
अब संग हम मर सके 
ये एहसान कीजिये 

Wednesday, July 2, 2014

ठेहरा है एक अश्क़, बनके-लहू मेरी आँखों में 
बहा तो दूँ,
संग मगर, याद तेरी बह जाएगी 

ना पसंद जो है तुझे, बात वही इश्क़ की 
पलकें झुकीं तो 
तेरी मेरी कहानी दोहराएगी 

काफ़िले क़ुर्बत के, यु तो तुझसे कई मिले 
आरज़ू एक मगर 
मूमकिन न कभी हो पायेगी 

तेरी हँसी के सदके ,जानाँ ये जाँ भी कम है 
तेरी आँख में आँसू मैं दू 
ये बात बहोत सतायेगी 

काँटे ही जियें हैं,इस दिल के अंजुमन में 
अब गुलों की कोशिश 
शायद यूँ रास आयेगी 

तेरे क़ुर्बान मेरे इश्क़ की तमाम जूस्तजू 
इक इक ख़ुशी पे तेरी 
मेरी ख्वाईश तर जाएगी 




मैं, मैं ही हु 
या कोई और 
पता नहीं 
क्यों मेरा परिचय इतना धुँधला हो गया है 

या मेरा 
कभी कोई 
परिचय था ही नहीं
और भ्रम के धुँए को मैं आप समझती रही 

क्या मेरा नाम 
या मेरा काम 
या मेरे रिश्ते 
मुझे औरो से अलग स्थापित करते है 

या मैं भी 
सब की तरह 
देह में बसी 
खुदको खोजती एक अभिन्न ऊर्जा हु 

क्या मेरे शब्द 
मेरे अश्रू 
मेरी भावनाओं का 
कोई भी मोल है इस अनंत सफर में 

या ये बस मोह है 
जो व्यर्थ है 
और अंत में 
सब त्याग मैं भी लुप्त हो जाउंगी 

किसी अखंड अनंत विस्तार में 

Tuesday, July 1, 2014

मेरे पूछने पर की कितना प्यार है मुझसे 
किसी ने कहा था..... "नमक जितना"
उस बात को समझने में बरसो गए 

अब जब भी उस बात का स्मरण होता है 
याद आती है वो ज़िरह, वो मर्म उसमें 
ज्यो बिन नमक के बेस्वाद लगे हर भोज 
बेमानी होजाता उसका जीवन मुझ बिन 

आज नमक और उस बात का निरंतर ध्यान है 
उसके ध्येय और प्रयोजन दोनों का ज्ञान है 

अब इसे नियति का प्रपंच कहें 
या समय की कठोरता 
या अठखेलि तेरे मेरे सम्बन्धो कि....  
के स्मरणों की तपन ने मेरे मन को जला रखा है 
जो निरंतर तेरी प्रेम वर्षा को उत्सुक रहता है 
और तेरे ही प्रेम ने ह्रदय को समंदर बना दिया 
की लहू की हर बूँद में  बनके नमक तू रेहता है .... 
सच्चा प्रेम नहीं होता अब.…कौन ये कहता है ?
देख मेरी आँखों से.. तू बनके नमक ही बेहता है .... 

ये कैसी शून्यता है 
न भय न मोह 
मोक्ष तो किन्तु ये सरासर नहीं 
विचलित से परे  
हर्ष भी लापता 
मोक्ष जैसा किन्तु उजागर भी नहीं 
समतल हो चला है 
कारवां उम्मीदों का 
धीरे धीरे धैर्य भी अधीर हो जायेगा 
संपूर्ण संकल्पो से 
जो धर्म का वहन हो 
कदाचित तब बंधन मुक्त हो पायेगा 
अद्भुत है ईश की गाथा 
जो मनुष्य समझ नहीं पता 
शरणागति से ही, तार हो पायेगा 




Saturday, June 28, 2014

चुनकर, बुनकर, स्वपन सजाऊँ
शब्द तू दे, मैं गीत बनाऊँ

कुछ ख्वाब तेरे, कुछ रंग हो मेरे
सात नहीं , अनगिनत हो फेरे
हर फेरे में, एक जनम बिताऊँ 
हर जनम में तुझको अपना पाऊँ
        यूँ रम लेना, सांसों  में अपनी,
        तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं 

मैं रेशम, और तू सूत की  डोर 
मील गाँठ लगायें, दोनों छोर 
बन खुलता रेशम, तुझे सताऊँ 
जुड़ सूत में ,तुझपे, हक़ मैं जताऊं 
        बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको 
        फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ 

तेरे अँश हैं मुझमें, मुझसे ज़्यादा 
रुक्मणी ना सही, बना ले राधा 
संग तेरे, रंगलीला, रास रचाऊँ 
तेरे तन मन, मैं ही मैं रम जाऊं 
        जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी 
        तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं 
        
        यूँ रम लेना, सांसों  में अपनी,
        तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं 
        बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको 
        फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ 
        जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी 
        तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं     


Friday, June 27, 2014

'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 

          सोचा तपते ह्रदय को सुकूँ ,इक शाम हम देते 
          चीरते उसके घावों को, कुछ आराम  हम देते 
          बहोत निभाया उसने, डोर थाम हम लेते 
          यक़ीनन इस बार ह्रदय से, काम हम लेते 
ना जाने कब तक्दीरों में वो इक़रार हो गया 
उन लम्हों का तो उम्र भर इंतज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


          ख़याल की उनके गालों पर, कुछ अपने रंग देते 
          आग़ोश में खोकर उनके , कुछ उनके रंग लेते 
          बहोत कहा हमने, इक मौका उनको भी देते 
          ज़ख्म उनके सीने के, इस दिल पे ले लेते 
पर कर्कश वक़्त के चलते, इंकार हो गया 
हर ख्वाब,हर ख़्याल हमारा, बेज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' -  Abnormal

Thursday, June 26, 2014

बख़्शे जो तूने
हम सर आँखोँ पर ले आए
बाकि लम्हें उल्फ़त के .... तेरी सल्तनत पे क़ुर्बान

मिलते है औरों से
अब मुस्कुराकर  हम
नशा तेरे नाम का.… वाह वाही लेता है ज़ाम 

Wednesday, December 11, 2013

क्यों समर्पण के लिए भी,
सार्थकता का
परिचय़ देना
आवश्यक है ?

क्या समर्पण,
स्वयं ही,
सार्थकता का
एक चिन्ह नहीं?

Sunday, December 8, 2013

बहरहाल अब देखना बाकि ये रहा...
 
प्रतिज्ञा का कितना शौर्ये है 
और मौन में कितना सामर्थ्य,
 
क्या वेदनाओं का प्रहार प्रबल है 
या धैर्य का अड़िग है प्रण ?
 
देखें समय के ताप में 
झुलसता है कौनसा पक्ष यहाँ ,

उल्लसित होना किसका भाग्य है 
और पराजित होना किसे मान्य !
 

Saturday, December 7, 2013

शायद दिल कि ज़िद्द है, 
ख्वाहिशों कि या कोई नादानी, 
या जागी है नयी चाह, तसव्वूर के धूएं से 

बेबाकी देखिये! 

निग़ाहें बेलज्जा..... मिजाज़ रूमैसा.... 
खड़े है किसी राह में 
यु आग़ोश -कुशा  

तसव्वूर - imagination
बेबाकी - boldness
रूमैसा - bunch of flowers
आग़ोश -कुशा - waiting to embrace someone with open arms
ये ग़ुनाह, कातिब-ए -मुक्क़दर का नहीं 
के नाम हमारा, आपके नाम से न जुड़ सका 
ये केहर तो अँजाम है, उस बेवफ़ाई का 
जो हमसे हमारे हौंसले, हरदम करते रहे 

कातिब-ए -मुक्क़दर- one who wrote the destiny, God

Friday, November 22, 2013

मेरा मन इतना विचलित य़ू भी तो है
तेरे मन कि अधिरता अभी कम न हुई
परस्पर होना सम्बन्धों कि आधीनता नहीं
न होकर भी कोई हर क्षण कितना अपना लगता है

आँखें मूंद लेने से अंधकार नहीं मिटता 
किन्तु निद्रा स्वप्न से स्नेह भेट कर जाती है 
यकायक रोम रोम उत्तेजित युही नहीं होता 
कोई मधुर स्मरण अधरों पे स्मित धर जाती है  

मन का आंगन सेज़ कभी, कभी कन्टक प्रतीत होता है 
भावनाओं का गमन किन्तु धैर्य नहीं खोता 
ऐसा नहीं कि आस्थाओं कि नींव निर्बल हो गयी 
बस जान लिया कि मन का चाहा सब नहीं होता 
 

Thursday, October 31, 2013

ख़ोने से कौन खुश होता है
रोने से किसकी यारी
ग़म जो सुकूँ दे जाये
हमने वो ग़म देखा है 

इतने गिले थे उनसे
शायद ही कम होते
देखा मुस्कुराते उन्हें
शिकवों को कम देखा है 

रिश्तों कि उलझी गुथ्थी
लगा न सुलझ सकेगी
कोशिशों के बढ़ते सफ़र में
उनको भी रम देखा है

इतने भी नहीं वो पत्थर
जितना था हमने सोचा
नाज़ूक भीगे लम्हो में
उनको भी नम देखा है 

हम ही नहीं रुके थे 
जब राहें मुकर रही थी 
बिछड़ते हुए तब हमसे 
उनको भी थम देखा है 

Monday, October 7, 2013

आप्का गुस्सा नफरत बन जाए 
या मेरा प्यार अफ्सोस
बेहतर है मैं उस्से पहले 
सम्भालु अपने होंश 
 
कुछ रिश्ते होते है
साये कि तरह 
छोड़दो तो
रुक जाते है
थामो तो 
छुप जाते है 
 
यादें होना ज़रुरी है 
पर इस तरह नही 
कि यादों मै यु खो जाएँ 
आज का पल , कल हो जाए 
अफसोस मै ही बीतें पल 
हर आज एक झूटा कल 
और जब वो पहर आए 
अन्त्  समक्ष नज़र आए 
लगे कि कुछ किया नही 
किसी आज को जिया नही 
 
जिन्दगी कि ढल्ती शाम मै
गम न हो इस बात का 
शिक्वो मै बिताया क्यो किए 
वो लमहा तेरे साथ् का 
इसिलिए एक काम करे
यहि जिन्दगी कि शाम  करें 
आपकी मुस्कुराहट के सद्के 
मेरे अरमान यहि रम जाएंगे 
आप बढ़िये, कि मंजीले बहोत है अभि 
मेरे कदम अब यहीं थम जाएंगे 

 
 
आज क्यों इतना ,सुखा सा रुदन 
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही 
या थक गयी हो तुम, रो रो कर 
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही 

यु तो शामो - सेहर रहता था 
शिकन का चोला, इस  चेहरे पर 
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ 
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही 

कहने को तो, बातें कितनी थी 
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती 
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का 
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही 

इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे 
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर 
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं 
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही 

यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे 
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं 
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में 
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही 

ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती 
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है 
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये 
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही 
इतनी जिराःह हुई 
करने को बातें न रही 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे और बात करें 

थक गयी है आंखें 
सर में मृदंग हो रहा 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनको और याद करें 

जब खुद का ही कसूर हो 
ज़बा को अलफ़ाज़ नहीं मिलते 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे ही फ़रियाद करें 

तबाही भी खूब मची 
जो रहा कुछ जीने में 
फिर भी जिद है दिल की 
उन संग ही बर्बाद करें 

अब वक़्त रहा न ऐसा 
मिलने से कोई हल निकले 
फिर भी ज़िद है दिलकी 
उनसे और मुलाकात करें 

रहा न दिल में उनके 
कतरा भी प्यार का बाकी 
फिर भी ज़िद है दिल की 
प्यार उन्ही के साथ करें 

कैसा इश्क, ये कैसी उल्फत 
जीने न दे, मरने न दे 
कर कुछ ज़िद्दी दिल अब ऐसा 
उनसे खुदको आज़ाद करें 
याद करते करते 
उस मोड़ पे आ गए 
प्यार का तो पता नहीं 
पर खुद को भूल गए 

उल्फत में रहे, की 
ऐसी गफ़लत में रहे 
उसके मन का पता नहीं 
हम खुद को भूल गए 

कोई समझ रही न सोच 
कुछ दीवानगी सी है 
चले थे उसको भूलने 
पर खुद को भूल गए 

 

Saturday, September 14, 2013

थक गयी हु आपके पीछे आते आते 
थक गयी हुई सर अपना यु झुकाते 
थक गयी हु खुद को यु रात भर जगाके 
थक गयी हु आपको यु कबसे मनाते 
थक चुकी, बिखर चुकी, टूट चुकी हु मैं 
खुदसे ,आपसे,सबसे रूठ चुकी हु मैं 


मन भर गया है मेरा,मुझे रोना है बहोत 
किसी के काँधे रख सर, मुझे रोना है बहोत 
सालो से सोई नहीं,मुझे सोना है बहोत 
कोई रख दो सर पे हाथ,मुझे सोना है बहोत 
किसी के गले लगकर, मुझे रोना है बहोत 
गोदी मैं रख सर , मुझे सोना है बहोत 

खो जाना है भीड़ मैं 
मैं दिखना नहीं चाहती 
आपको ढूँढना नहीं चाहती 
आपको सुनना नहीं चाहती 
कुछ नहीं चाहिए मुझे 
बिलकुल नहीं चाहिए 
आपकी नफरत आपकी याद
मुझे कुछ नहीं चाहिए 

क्या है मेरी गलती 
की प्यार कर लिया 
रखो अपना प्यार 
मुझे वो भी नहीं चाहिए 
कुछ नहीं चाहिए 
मुझे आप भी नहीं चाहिए 
आज नहीं अभी नहीं 
आप कभी नहीं चाहिए 

 

Friday, September 13, 2013

सुना है सुबाह के ख्व़ाब,
झूठ नहीं बोलते 
दो अगर इज़ाज़त 
तुम्हे मांगलें 

 

लोगो के सवालों को,
नज़रन्दाज़ किया तो क्या
आँखें ऐसी बद्तमीज़ है
दिल का हाल बता देती है

मैं चाहू न चाहू
मेरे चाहने का क्या
भूलने की हर एक कोशिश
और यादें जगा देती है


Thursday, September 12, 2013

जो होती इतनी समझ 
तो क्यू जाने देते 
क्यों अपने ही हाथो 
मोल ये ग़म लेते 
 

Monday, September 9, 2013

न हूनर से, न होंश से 
न प्यार से, न जोश से 
उनसे उनकी बात कहें ,इतना होंसलों में दम नहीं 

हम चुप ही रहें,कुछ न कहें 
वो जैसे खुश, वैसे ही रहे 
बशर्ते इतना इल्म हो, की प्यार हुआ है कम नहीं 



 
बीमार-ऐ-मोहब्बत, अब ये मरीज़ कौन है 
आईने में कुछ अपनी सी तस्वीर दिखती है 
अश्कों से भीगी आंखें,मोहब्बत कमाल है 
मुस्कुराता था चेहरा, उफ़ ये क्या हाल है 




 
ज़िक्र में वो 
ज़हन में वो 
दुआ में न कैसे नाम आये 

संग रहके न कोई 
सुकूँ दे सके 
दूर जाये,अगर उन्हें आराम आये 

 

Sunday, September 8, 2013

इल्म था उसे भी
हम रास्ता न छोड़ेंगे 
आँखें मूंद हमारी 
जाने वो किधर गया 

न कदमो के निशाँ 
न बातों के गवाह 
साँसों को मेहका 
हवाओं में बिखर गया 

Friday, September 6, 2013

हद्द हो गयी यार 
क्या इसे कहतें हैं प्यार 
 दीवानगी ,सरासर बेवकूफी है 
जाग मेरे अंतर, ये खुद्खुषी है


कभी कभी यु लगता है 
हद्द है बेशर्मी की 
अपनी नज़रों में खुदको बहोत छोटा पातें हैं 
क्यों, आखिर क्यों, हम उसके पीछे जातें हैं 

उलझन और उलझाती है 
उसकी आहट जो आती है 
छोड़ सारी लाज-शर्म,फिर नहीं रुक पाते हैं 
बेशर्म ये हैं कदम, क्यों पीछे चले जाते हैं 
  
बातें खुद को दोहरातीं हैं 
मन चिड़िया लौट आती है 

टूटे तिनके साथ लिए 
फिर भी झूटी आस लिए 

कल सुबह कुछ लाएगी 
उम्मीद न तोड़ी जाएगी 

शायद उसको हँसता देखे 
वो भी ख़ुशी से रस्ता देखे 

पागल है,'मन' पागल ही रहेगा 
 प्रेम पीड़ा को, हँस के सहेगा 

न कहे बेशरम तो, क्या कहें इसे 
छोटी सी बात, न समझ आये जिसे 

कुछ बातें बिगड़ती हैं, खुदके ही हाथ 
कुछ चीज़ें चलती हैं, तकदीर के साथ 

बाकी तो खेल है 'मोह' ने बिछाये 
तुझसे बढ़के भी हैं 'इश्क' के सताए 

अब आँखों से पट्टी उतारो ज़रा 
देखो, सितारों से नभ है भरा 

हम ये नहीं कहते, ऐ व्याकुल 'मन' मेरे 
की याद न करो, तुम प्यार न करो 
खूब याद करो, जी भर के प्यार करो 
हाँ मगर, किसीका इंतज़ार न करो 

खुदको इस तरह बेशरम न कहाओ
अब और उसके पीछे, पीछे न जाओ
इश्क को इश्क ही रहने दो
जीते जी सज़ा न बनाओ

न करो ऐसे काम की 
खुदसे नज़र न मिला पाओ 
इश्क को इश्क ही रहने दो-'ए मन' 
दर्दे दिल की वजह न बनाओ 
किस कर्म के हिसाब बाकि रहे 
किस जन्म के लेन देन पुरे न हुए 
ये तेरा ये मेरा खुदा  जाने 

मुझे बस इतनी समझ है अभी 
तुझे भूल जाना इतना आसाँ नहीं 
हाँ मगर कोशिशे -थकी नहीं 

पता नहीं आगे क्या होनेवाला है 
दिल या दिमाग रोने वाला है 
हा मगर कुछ ज़रूर खोने वाला है 


 
तंग रिश्ते भी उनसे
मोहब्बत है जिनसे 
करे दिल बेचारा तो 
'उफ़' क्या करे 

बहोत कुछ है कहना 
मगर चुप भी रहना 
न ढाये क़हर 'अश्क़' तो  
'उफ़' क्या करे 


 

Friday, August 30, 2013

कुछ रखते तुम ईमान 
कुछ अपनी वफ़ा ही होती 
न होते गिले दरमियाँ के 
यु मोहब्बत खफा न होती'

रहते बनके अगर गैर ही 
नजदीकियां करतीं न होंसले 
क़रीबी आयी और यूँ गयी 
दरमियाँ में ही रहे फ़ासले 

शोले उठे, कुछ लगी आग भी 
लुफ़्त उसका और भी आता, अगर 
चिंगारी कोई जो यहाँ हो गुज़रती  
दर्द उसकी आँखों में मिलता अगर 

बेरुखी पर भी लरज़ जातें अरमाँ 
जो होता वस्ल -ए -यार , तो क्या हाल होता 
रोंध देते शिकवे , जो आघोष में होते 
न होता कोई बैर ,वाकई कमाल होता 

दर्द दर्द ही रहता
प्यार प्यार ही रहता 
न मिलती दो शराब, नशा कुछ और ही होता 

हम हम ही रहते 
यार यार ही रहता 
न देते नए ख़िताब , मज़ा कुछ और ही होता