Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Wednesday, December 11, 2013
क्यों समर्पण के लिए भी, सार्थकता का परिचय़ देना आवश्यक है ?
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