Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Monday, September 9, 2013
ज़िक्र में वो ज़हन में वो दुआ में न कैसे नाम आये
संग रहके न कोई सुकूँ दे सके दूर जाये,अगर उन्हें आराम आये
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