Saturday, June 28, 2014

चुनकर, बुनकर, स्वपन सजाऊँ
शब्द तू दे, मैं गीत बनाऊँ

कुछ ख्वाब तेरे, कुछ रंग हो मेरे
सात नहीं , अनगिनत हो फेरे
हर फेरे में, एक जनम बिताऊँ 
हर जनम में तुझको अपना पाऊँ
        यूँ रम लेना, सांसों  में अपनी,
        तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं 

मैं रेशम, और तू सूत की  डोर 
मील गाँठ लगायें, दोनों छोर 
बन खुलता रेशम, तुझे सताऊँ 
जुड़ सूत में ,तुझपे, हक़ मैं जताऊं 
        बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको 
        फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ 

तेरे अँश हैं मुझमें, मुझसे ज़्यादा 
रुक्मणी ना सही, बना ले राधा 
संग तेरे, रंगलीला, रास रचाऊँ 
तेरे तन मन, मैं ही मैं रम जाऊं 
        जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी 
        तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं 
        
        यूँ रम लेना, सांसों  में अपनी,
        तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं 
        बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको 
        फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ 
        जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी 
        तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं     


Friday, June 27, 2014

'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 

          सोचा तपते ह्रदय को सुकूँ ,इक शाम हम देते 
          चीरते उसके घावों को, कुछ आराम  हम देते 
          बहोत निभाया उसने, डोर थाम हम लेते 
          यक़ीनन इस बार ह्रदय से, काम हम लेते 
ना जाने कब तक्दीरों में वो इक़रार हो गया 
उन लम्हों का तो उम्र भर इंतज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


          ख़याल की उनके गालों पर, कुछ अपने रंग देते 
          आग़ोश में खोकर उनके , कुछ उनके रंग लेते 
          बहोत कहा हमने, इक मौका उनको भी देते 
          ज़ख्म उनके सीने के, इस दिल पे ले लेते 
पर कर्कश वक़्त के चलते, इंकार हो गया 
हर ख्वाब,हर ख़्याल हमारा, बेज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' -  Abnormal

Thursday, June 26, 2014

बख़्शे जो तूने
हम सर आँखोँ पर ले आए
बाकि लम्हें उल्फ़त के .... तेरी सल्तनत पे क़ुर्बान

मिलते है औरों से
अब मुस्कुराकर  हम
नशा तेरे नाम का.… वाह वाही लेता है ज़ाम