चुनकर, बुनकर, स्वपन सजाऊँ
शब्द तू दे, मैं गीत बनाऊँ
कुछ ख्वाब तेरे, कुछ रंग हो मेरे
सात नहीं , अनगिनत हो फेरे
हर फेरे में, एक जनम बिताऊँ
हर जनम में तुझको अपना पाऊँ
यूँ रम लेना, सांसों में अपनी,
तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं
शब्द तू दे, मैं गीत बनाऊँ
कुछ ख्वाब तेरे, कुछ रंग हो मेरे
सात नहीं , अनगिनत हो फेरे
हर फेरे में, एक जनम बिताऊँ
हर जनम में तुझको अपना पाऊँ
यूँ रम लेना, सांसों में अपनी,
तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं
मैं रेशम, और तू सूत की डोर
मील गाँठ लगायें, दोनों छोर
बन खुलता रेशम, तुझे सताऊँ
जुड़ सूत में ,तुझपे, हक़ मैं जताऊं
बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको
फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ
तेरे अँश हैं मुझमें, मुझसे ज़्यादा
रुक्मणी ना सही, बना ले राधा
संग तेरे, रंगलीला, रास रचाऊँ
तेरे तन मन, मैं ही मैं रम जाऊं
जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी
तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं
यूँ रम लेना, सांसों में अपनी,
तुझसे अलग, मैं ज़ी न पाऊं
बांध लेना कसके ख़ुदसे मुझको
फिर न मैं तुझसे, जुदा हो पाऊँ
जब जब प्रेम की प्रसर हो बानी
तेरे नाम से जुड़के मैं ही आऊं