Tuesday, July 1, 2014

मेरे पूछने पर की कितना प्यार है मुझसे 
किसी ने कहा था..... "नमक जितना"
उस बात को समझने में बरसो गए 

अब जब भी उस बात का स्मरण होता है 
याद आती है वो ज़िरह, वो मर्म उसमें 
ज्यो बिन नमक के बेस्वाद लगे हर भोज 
बेमानी होजाता उसका जीवन मुझ बिन 

आज नमक और उस बात का निरंतर ध्यान है 
उसके ध्येय और प्रयोजन दोनों का ज्ञान है 

अब इसे नियति का प्रपंच कहें 
या समय की कठोरता 
या अठखेलि तेरे मेरे सम्बन्धो कि....  
के स्मरणों की तपन ने मेरे मन को जला रखा है 
जो निरंतर तेरी प्रेम वर्षा को उत्सुक रहता है 
और तेरे ही प्रेम ने ह्रदय को समंदर बना दिया 
की लहू की हर बूँद में  बनके नमक तू रेहता है .... 
सच्चा प्रेम नहीं होता अब.…कौन ये कहता है ?
देख मेरी आँखों से.. तू बनके नमक ही बेहता है .... 

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