मैं, मैं ही हु
या कोई और
पता नहीं
क्यों मेरा परिचय इतना धुँधला हो गया है
या मेरा
कभी कोई
परिचय था ही नहीं
और भ्रम के धुँए को मैं आप समझती रही
क्या मेरा नाम
या मेरा काम
या मेरे रिश्ते
मुझे औरो से अलग स्थापित करते है
या मैं भी
सब की तरह
देह में बसी
खुदको खोजती एक अभिन्न ऊर्जा हु
क्या मेरे शब्द
मेरे अश्रू
मेरी भावनाओं का
कोई भी मोल है इस अनंत सफर में
या ये बस मोह है
जो व्यर्थ है
और अंत में
सब त्याग मैं भी लुप्त हो जाउंगी
किसी अखंड अनंत विस्तार में
या कोई और
पता नहीं
क्यों मेरा परिचय इतना धुँधला हो गया है
या मेरा
कभी कोई
परिचय था ही नहीं
और भ्रम के धुँए को मैं आप समझती रही
क्या मेरा नाम
या मेरा काम
या मेरे रिश्ते
मुझे औरो से अलग स्थापित करते है
या मैं भी
सब की तरह
देह में बसी
खुदको खोजती एक अभिन्न ऊर्जा हु
क्या मेरे शब्द
मेरे अश्रू
मेरी भावनाओं का
कोई भी मोल है इस अनंत सफर में
या ये बस मोह है
जो व्यर्थ है
और अंत में
सब त्याग मैं भी लुप्त हो जाउंगी
किसी अखंड अनंत विस्तार में
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