Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Friday, September 13, 2013
लोगो के सवालों को, नज़रन्दाज़ किया तो क्या आँखें ऐसी बद्तमीज़ है दिल का हाल बता देती है मैं चाहू न चाहू मेरे चाहने का क्या भूलने की हर एक कोशिश और यादें जगा देती है
No comments:
Post a Comment