Sunday, August 24, 2014

यूँ भी होगा, ये सोचा न था 
सोचा हुआ, होता है क्या ?
वस्ल की तमन्ना, थी मगर 
वस्ल का इनाम, सोचा न था 

तअल्लुक़ को वज़ह की, हूँफ नहीं 
क़ुर्बत को किसी का, ख़ौफ़ कहा 
यूँ डूबती नब्ज़ ही, दे देगी 
हौसलों का सिला, सोचा न था 

ख़्वाहिशों के भी,पर होते है 
आसमाँ से इश्क़, लड़ाते हैं
हसरतों को, यूँ भी मूझसे 
कोई देगा मिला, सोचा न था 

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