Friday, November 25, 2011

हैरान सी,
परेशान सी,
बढे जा रही है,
पथ्थरो पे नंगे पाऊ...दौड़े जा रही है ...
ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी का देखो कैसा हाल किया !

दूर कही,
जैसे कोई,
मंज़र सा है,
शायद मंजिल का निशाँ,
रुक न जाये कोई कही, भरम का ऐसा जाल किया !

Thursday, November 10, 2011

नफरत ना सही,
कुछ कम भी नहीं..
असमंजस के सागर में गोते खा रहे हैं!
दो कदम उनकी तरफ,
दो कदम उलटे पैर ...
डगमाते रास्ते कहाँ जा रहे हैं !

कभी हवा के साए में,
कभी धुंए में कही...
धुंदली तस्वीर से रंग जा रहे है !
कौन कहता है अंधेरो में,
खो जाते हैं लोग...
चाँद से बेहतर ,वो नज़र आ रहे है !

उम्र  के दायरे में,
सब एहसास नहीं आते..
कुछ अरमान अब देखो कहाँ जा रहे हैं !
जिस मोड़ पे खाई थी,
हर कोशिश ने ठोकर...
होके बेलज्जा, सब वहा जा रहे है !