आज क्यों इतना ,सुखा सा रुदन
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही
या थक गयी हो तुम, रो रो कर
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही
यु तो शामो - सेहर रहता था
शिकन का चोला, इस चेहरे पर
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही
कहने को तो, बातें कितनी थी
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही
इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही
यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही
ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही
या थक गयी हो तुम, रो रो कर
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही
यु तो शामो - सेहर रहता था
शिकन का चोला, इस चेहरे पर
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही
कहने को तो, बातें कितनी थी
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही
इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही
यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही
ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही
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