Monday, October 7, 2013

आज क्यों इतना ,सुखा सा रुदन 
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही 
या थक गयी हो तुम, रो रो कर 
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही 

यु तो शामो - सेहर रहता था 
शिकन का चोला, इस  चेहरे पर 
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ 
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही 

कहने को तो, बातें कितनी थी 
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती 
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का 
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही 

इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे 
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर 
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं 
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही 

यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे 
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं 
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में 
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही 

ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती 
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है 
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये 
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही 

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