कुछ गुनाहों की
कोई सज़ा नहीं होती
कोई प्रायष्चित नहीं होता
कोई माफ़ी नहीं होती
ता उम्र वो गुनाह
साथ चलते हैं
दहकते अंगारों से
दिल में जलते है
आँखों का नासूर बन
रोने नहीं देते
ख़ौफ़नाक ख़्वाब बन
सोने नहीं देते
आईने में रूबरू,
होते हैं शाम-ओ-सेहर जो
शर्मशार निग़ाहों पे
ढाते है केहेर वो
सीने का दाग वो
दर्द का आलाप वो
बिरहा का राग वो
लेख जोख हिसाब वो
वो फेरिश्त उन गुनाहो की अनछुई रह जाती है
फिर भी हर घड़ी पल पल, समय वही दोहराती है
जीने नहीं देता सुकून से, एहसास उनके होने का
पैया पैया मोल कटता है, पाने का और खोने का
भर जाता है पीड़ा से जब, कण कण छलनी सीने का
हर गुनाह फिर पूछता है,"क्या आया मज़ा कुछ जीने का?"
तब भी कहाँ उतरते है
कंधो से बोझे आहों के
चिता तक साथ निभाते है
साये उन गुनाहों के
वाक़ई कुछ गुनाहों की
कोई सज़ा नहीं होती
क़तरा क़तरा बिक जाये
क़ीमत अदा नहीं होती
कोई सज़ा नहीं होती
कोई प्रायष्चित नहीं होता
कोई माफ़ी नहीं होती
ता उम्र वो गुनाह
साथ चलते हैं
दहकते अंगारों से
दिल में जलते है
आँखों का नासूर बन
रोने नहीं देते
ख़ौफ़नाक ख़्वाब बन
सोने नहीं देते
आईने में रूबरू,
होते हैं शाम-ओ-सेहर जो
शर्मशार निग़ाहों पे
ढाते है केहेर वो
सीने का दाग वो
दर्द का आलाप वो
बिरहा का राग वो
लेख जोख हिसाब वो
वो फेरिश्त उन गुनाहो की अनछुई रह जाती है
फिर भी हर घड़ी पल पल, समय वही दोहराती है
जीने नहीं देता सुकून से, एहसास उनके होने का
पैया पैया मोल कटता है, पाने का और खोने का
भर जाता है पीड़ा से जब, कण कण छलनी सीने का
हर गुनाह फिर पूछता है,"क्या आया मज़ा कुछ जीने का?"
तब भी कहाँ उतरते है
कंधो से बोझे आहों के
चिता तक साथ निभाते है
साये उन गुनाहों के
वाक़ई कुछ गुनाहों की
कोई सज़ा नहीं होती
क़तरा क़तरा बिक जाये
क़ीमत अदा नहीं होती