पढ़ा है खूब तुम्हे , अब किताब लिख रहे हैं
मिले तो अँधेरे, पर आफताब लिख रहे हैं
हमारी वफ़ा पे यु, जो लागए हैं इलज़ाम
तुम्हारी ही जफ़ा से, जवाब लिख रहे हैं
जुदाई में जो बरसा, आँखों से खारा पानी
न कोसेंगे तुम्हे, मिसरी सा आब लिख रहे हैं
यादों का सिलसिला, कभी थमा ही नहीं
दीवानगी का ज़ीम्मा, हम शराब लिख रहें है
कुछ ऐसे ठेहर जाती थी, नज़रे तुम्हारी हमपे
खुद ही खुदको हुस्न, और शबाब लिख रहे हैं
तुमसे बुरा ना कोई ,पर अच्छा भी नहीं
भुलाये कैसे, मजबूरियों का साज़ लिख रहे हैं
ऐसे चले गए तुम, ज्यो खो जाते है साए
बिखरी उन परछाईयों से, ख्वाब लिख रहे हैं
तुम कहते होना जाना, तुम देते ही रहे
जो चाहे लेलो हमसे, हम हिसाब लिख रहे हैं
ये इश्क नहीं तो क्या है, न चाहते हुए भी क्यों हम
नाम तुम्हारा लेकर, बेहिसाब लिख रहे हैं
मिले तो अँधेरे, पर आफताब लिख रहे हैं
हमारी वफ़ा पे यु, जो लागए हैं इलज़ाम
तुम्हारी ही जफ़ा से, जवाब लिख रहे हैं
जुदाई में जो बरसा, आँखों से खारा पानी
न कोसेंगे तुम्हे, मिसरी सा आब लिख रहे हैं
यादों का सिलसिला, कभी थमा ही नहीं
दीवानगी का ज़ीम्मा, हम शराब लिख रहें है
कुछ ऐसे ठेहर जाती थी, नज़रे तुम्हारी हमपे
खुद ही खुदको हुस्न, और शबाब लिख रहे हैं
तुमसे बुरा ना कोई ,पर अच्छा भी नहीं
भुलाये कैसे, मजबूरियों का साज़ लिख रहे हैं
ऐसे चले गए तुम, ज्यो खो जाते है साए
बिखरी उन परछाईयों से, ख्वाब लिख रहे हैं
तुम कहते होना जाना, तुम देते ही रहे
जो चाहे लेलो हमसे, हम हिसाब लिख रहे हैं
ये इश्क नहीं तो क्या है, न चाहते हुए भी क्यों हम
नाम तुम्हारा लेकर, बेहिसाब लिख रहे हैं