ये कैसी शून्यता है
न भय न मोह
मोक्ष तो किन्तु ये सरासर नहीं
विचलित से परे
हर्ष भी लापता
मोक्ष जैसा किन्तु उजागर भी नहीं
समतल हो चला है
कारवां उम्मीदों का
धीरे धीरे धैर्य भी अधीर हो जायेगा
संपूर्ण संकल्पो से
जो धर्म का वहन हो
कदाचित तब बंधन मुक्त हो पायेगा
अद्भुत है ईश की गाथा
जो मनुष्य समझ नहीं पता
शरणागति से ही, तार हो पायेगा
न भय न मोह
मोक्ष तो किन्तु ये सरासर नहीं
विचलित से परे
हर्ष भी लापता
मोक्ष जैसा किन्तु उजागर भी नहीं
समतल हो चला है
कारवां उम्मीदों का
धीरे धीरे धैर्य भी अधीर हो जायेगा
संपूर्ण संकल्पो से
जो धर्म का वहन हो
कदाचित तब बंधन मुक्त हो पायेगा
अद्भुत है ईश की गाथा
जो मनुष्य समझ नहीं पता
शरणागति से ही, तार हो पायेगा
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