Saturday, March 31, 2012

शायद  कोई  ख्वाब था,
शायद इक  याद!
बीते हुए वक़्त से, झाँक रहा था कोई.

बरसो  पुराना, एक निश्छल लम्हा,
बेक़सूर आंखें, मासूम सी हसी ...
यकीन न हुआ, ये उसका चेहरा था !

उसको अब भी देखा है,
उसको तब भी देखा था
फिर भी जाने क्यों,
हर बार मेरे खाब में वो पहले सा आता है.

बीते कल और रहते आज  में, कहीं खो जाती हूँ..
छूकर उसे खुदको, मैं यकीन दिलाता हूँ..
ख्वाब ही है, ख्वाब ही था, ख्वाब ही रह जाएगा,
वो निर्दोष चेहरा, बस ख्वाब ही मैं आएगा !


इस बात पर यकीन करना, बेहतर तो नहीं लगता...
गुज़रे पलों में फिर भी हो आना, अच्छा लगता है..!