Monday, June 27, 2011

बात कोई भी याद नहीं,
शायद सब कुछ भूल गए,
हमने भी करवट लेली
जब उसने आँखें मूंद लयी

माथे पर शिकन कैसी
ग़म तो कोई दीखता नहीं
हर सुबह तुम्हारी हँसती रहे
शिकवो की वो रात गयी    

जस्बातों का मेला है
थक कर फिर सो जायेगा
इतना क्यों घबराते हो
रिश्तो का ये मेल नहीं

आज भी है और कल भी होगा
फासला जो तेय न किया
सेतु कोई यहाँ भी बने
ऐसा तो मुमकीन ही नहीं  
बरसो पुराना रिश्ता, कहीं मिल गया 
ऐसी हुई टक्कर
ज़िन्दगी बदल गयी 

पीछे कुछ सपने, आगे हकीकत
बीच दोराहे
साँसे मचल गयी

रिश्तो के धागे कच्चे सही
अब तक इन्ही से
आगे नसल गयी

बाकी सब बातें, भूल के भुलाई
बात मगर जिद्द की
खरी असल रही

ख्वाब भी टूटा, रिश्ते भी
मगर कुछ दुहाई
ऐसे अटल रही

हम भी वोही और वो भी वही
देखने की बेशक 
नज़र बदल गयी