Wednesday, December 12, 2012

पढ़ा है खूब तुम्हे , अब किताब लिख रहे हैं
 मिले तो अँधेरे, पर आफताब लिख रहे हैं

हमारी वफ़ा पे यु, जो लागए हैं इलज़ाम 
तुम्हारी ही  जफ़ा से, जवाब लिख  रहे हैं 

जुदाई में जो बरसा, आँखों से खारा पानी 
न कोसेंगे तुम्हे, मिसरी सा आब लिख रहे हैं 

यादों का सिलसिला, कभी थमा ही नहीं 
दीवानगी का ज़ीम्मा, हम शराब लिख रहें है

 कुछ ऐसे ठेहर  जाती थी, नज़रे तुम्हारी हमपे
खुद ही खुदको हुस्न, और शबाब लिख रहे हैं

तुमसे बुरा ना कोई ,पर अच्छा भी नहीं 
भुलाये कैसे, मजबूरियों का साज़ लिख रहे हैं 

ऐसे चले गए तुम, ज्यो खो जाते है साए 
बिखरी उन परछाईयों से, ख्वाब  लिख रहे हैं 

तुम कहते होना जाना, तुम देते ही रहे
जो चाहे लेलो हमसे, हम हिसाब लिख रहे हैं

ये इश्क नहीं तो क्या है, न चाहते हुए भी क्यों हम 
नाम तुम्हारा लेकर, बेहिसाब लिख रहे हैं  

Sunday, November 25, 2012

'दिलगीर' , उनकी बज़्म से, दिल पे ख़ार ले आये 
समझे नहीं वो, हम लौटते, प्यार अपना ले आये 

'गमे -जाना' चेहरे पर, शिकन  तो ले आता है 
आँखों का पानी मगर, हम उनको तोहफा दे आये 

'सरे-अफ़्लाक' पर शब भर, चाँद-तारे रहे मगर,
सहर हुई, सूरज की तपन, फलक को तन्हाई दे आये 

'दहर' में होंगे, और भी, हमसे काबिल दीवाने 
'जू-ए -रवा' से इश्क को अपने, 'कतरा-ए-शबनम' कह आये 

'अफ़सू' है उसकी चाहत का,उसमे बुराई दीखती नहीं 
'गुरेज़ा ' होने की वजह , हम नाम अपना दे आये 




दिलगीर- sad
गमे -जाना-pain for lover
सरे-अफ़्लाक-sky
दहर-world
जू-ए -रवा-flowing river
कतरा-ए-शबनम-dew drop
अफ़सू-magic
गुरेज़ा-sad

Saturday, November 24, 2012

पैरो के नीचे ठंडी ज़मीं 
सर पर चढ़ा बुखार प्यार का 
इससे और प्यारी सुबह क्या होगी 
आँख खुले और दीदार यार का 

प्रत्यक्ष नहीं 
ख़याल सही 
सुबह मगर 
हँसीं तो हुई 

भरम टुटा 
खयालो का 
पैरो में आई 
जब ठंडी ज़मीं 

Sunday, November 4, 2012

उल्फत के दो पहलु, 
इक हम ,
इक तुम .

बाकी जो दरमियाँ में रहा ;
वो मौसम का तकाज़ा  था .

कभी आँखों से पिया था; 
कभी साँसों मैं जिया था ,

तीखी थी मुलाकातें कई पर;
बारीशें मिसरी ही रहीं .

गुब्बारों में छुपकर सोचा ;
ये दुनिया हमारी हुई ,

कांटो में उलझकर अरमां; 
मिटटी होकर बिखर गए .

हाथो की नज़दीकियों  में ;
मौसम नरमाई दे गया ,

दोनों उसी रास्ते पर है ,
दिशायें विरोधी हो गयी ..

बयानों के पर्चे ख़त्म ना होंगे 
हा मगर,
सुनने को अब हम तुम नहीं ..

Monday, October 22, 2012

ये क्या बात हुई,
                        की हर जगह मिल जाते हो,
कभी ख्वाब,
कभी खुश्बू ,
कभी ख़याल बनके !!!!!!!!

कभी ख्वाइशो का आसमां लिए ,
                         कभी वजूद-ए -इश्क का सवाल बनके !!!!!!!!!
 

Friday, October 19, 2012

कभी, कही, कोई अगर मुलाक़ात होगी 
 
अब आंसुओं से ही, शुरुआत होगी 

खुसी के या ग़म के, ये वक़्त बतायेगा 

मगर है यकीं , के बरसात होगी 
लकीरों से तकदीर की कहानी पूछी है
आँखों से इश्क की रवानी पूछी हैं
कैसी दीवानगी इस कम्बख़त ने की
उनसे ही उनकी बेमानी पूछी है

वक़्त के  इस पहर मैं तस्वीर देखकर
उनकी आँखों से क्यों इक  सवाल कर दिया
उम्मीद ऐसी है, कोई जवाब आएगा
नामुमकीन बातों पर नादानी सूझी है







 

Tuesday, September 25, 2012

इक शक़, इस ज़ेहन से जाता नहीं
इत्मीनान, वजहों को आता नहीं
दिल का तक़ाज़ा  है, ये हो नहीं सकता
सच के इस पेहलू को, हम नाकारा करतें हैं ...
हालात मगर, कुछ और ही इशारा करते हैं ...

बीतें लम्हों की सिलवटें, पलकों पर दिखतीं हैं
झूटे प्यार की कहानी, बे-मोल बिकती हैं
देखिये की,  प्यार ने यु मजबूर कर दिया
अब भी, उनकी यादों को ग़वारा करते हैं ...
हालात मगर, कुछ और ही इशारा करते हैं ...

ख्वाब भी जाने कैसे कैसे रंग बदलते हैं
गम हमारा ..., क्यों उनकी आँखों से ढलते हैं
यु देखें तो नफरत भी, अब छोटी लगती हैं
फिर क्यों नत-मस्तक, हम उनसे हारा करतें हैं ...
हालात मगर, कुछ और ही इशारा करते हैं ...

खामोशियाँ कभी, साँसों मैं उलझ सी जाती है
मन की नदिया, बिन पानी के सुलग सी जाती है
अल्फाज़ो का तूफ़ा, ज़बा को छलनी करता है
मौन का वास्ता देकर , हम गुज़ारा करते हैं ...
हालात मगर कुछ और ही इशारा करते हैं ....

सच के इस पेहलू को, हम नाकारा करतें हैं ...
हालात मगर, कुछ और ही इशारा करते हैं ...

Tuesday, July 3, 2012

शाम काजल फेला ही गयी
भूले भटके कुछ आ ही गयी
रुखी सी , बिखरी सी कडवी हवा
आँखों से पानी बहा ही गयी

मैंने अब दिए जलाये नहीं
उजाले कभी रास आये नहीं
मासूम से बादल आंधी ले आये
साथ अब कोई हमसाये नहीं

गरजे कहीं , बरसे कहीं
मन के फुहारे लर्ज़े कहीं
जस्बातों का खून हो ही गया
बिन बोले अल्फाज़ तरसे कहीं

क़त्ल तो हुआ था , मानों  या नहीं
ऐतबार को दफ्न कर दिया कहीं
सोचो तो नफरत भी कम पड़ती है
भूल जाओ तो प्यार कभी किया ही नहीं

ख्वाबो की नींदों से बेरूखी सही
कमसेकम वो ख्वाब आते नहीं
आँखों मैं आंखें वो डाल  कर कहें
दिल मैं अब और प्यार रहा ही नहीं

Saturday, March 31, 2012

शायद  कोई  ख्वाब था,
शायद इक  याद!
बीते हुए वक़्त से, झाँक रहा था कोई.

बरसो  पुराना, एक निश्छल लम्हा,
बेक़सूर आंखें, मासूम सी हसी ...
यकीन न हुआ, ये उसका चेहरा था !

उसको अब भी देखा है,
उसको तब भी देखा था
फिर भी जाने क्यों,
हर बार मेरे खाब में वो पहले सा आता है.

बीते कल और रहते आज  में, कहीं खो जाती हूँ..
छूकर उसे खुदको, मैं यकीन दिलाता हूँ..
ख्वाब ही है, ख्वाब ही था, ख्वाब ही रह जाएगा,
वो निर्दोष चेहरा, बस ख्वाब ही मैं आएगा !


इस बात पर यकीन करना, बेहतर तो नहीं लगता...
गुज़रे पलों में फिर भी हो आना, अच्छा लगता है..!