सुबह की पेहली किरन से पेहले
रौशनी कोई दिखाई दी
किसी न कही जो कही नहीं है
बात हमें वो सुनाई दी
मूंद कर आँखें किसी ने दिल में
याद हमें फरमाया है
बेसब्र आँखों के ठहरे हुए पानी ने
इस बात की हमें गवाही दी
वो ये ना समझे की हम भी है तनहा
मौसम जो हल्का गहरा हुआ
तेरे नाम को लेकर इस तन्हाई में
हमने नहीं अब दुहाई दी
पेहले कहा हर कदम साथ होगा
धीरे से फिर तुम कही खो गए
फेला के दामन जो माँगा कुछ तुमसे
फूलों में रख कर जुदाई दी
Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को, दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है! हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए, इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Wednesday, October 20, 2010
Tuesday, October 19, 2010
अनजाने बन जाना तुम,
सुनकर अब आवाज़ मेरी
इसी से किस्से सुलझेंगे
ऐसे ही हल आएगा
करना कुछ ताना जोरी
कुछ कडवी बातें केह देना
प्यार को थोडा रुसवा करना
ऐसे ही बल जाएगा
गुज़रे कल को ठोकर देकर
आज को सुन्दर कर देना
लेकर दिल का सपना कोई
ऐसे ही कल आएगा
गुज़र गया कुछ हसी ख़ुशी में
कुछ अश्कों में डूब गया
बाकी का भी जीवन ऐसे
यादों में ढल जायेगा
सुनकर अब आवाज़ मेरी
इसी से किस्से सुलझेंगे
ऐसे ही हल आएगा
करना कुछ ताना जोरी
कुछ कडवी बातें केह देना
प्यार को थोडा रुसवा करना
ऐसे ही बल जाएगा
गुज़रे कल को ठोकर देकर
आज को सुन्दर कर देना
लेकर दिल का सपना कोई
ऐसे ही कल आएगा
गुज़र गया कुछ हसी ख़ुशी में
कुछ अश्कों में डूब गया
बाकी का भी जीवन ऐसे
यादों में ढल जायेगा
प्रेम की पगडण्डी पर चलके, कच्ची राहें नापी थी
माटी की खुसबू में खोकर, निकल पड़े ये किस वन में
उम्र भर की तपस में भी जो, मिला नहीं है कितनो को
पा लिया वो अक्षत मोती, हमने अपने यौवन में
पत्तो की सर सर को सुनके, सबर के तिनके जोड़े थे
मौन जड़ो ने सिखा दिया, अचल है रहना कण कण में
मांगे वो जो, जिसके दिल में, पाने की कोई इच्छा हों
क्या मांगे हम, तुझको पाके, पा लिया सब जीवन में
माटी की खुसबू में खोकर, निकल पड़े ये किस वन में
उम्र भर की तपस में भी जो, मिला नहीं है कितनो को
पा लिया वो अक्षत मोती, हमने अपने यौवन में
पत्तो की सर सर को सुनके, सबर के तिनके जोड़े थे
मौन जड़ो ने सिखा दिया, अचल है रहना कण कण में
मांगे वो जो, जिसके दिल में, पाने की कोई इच्छा हों
क्या मांगे हम, तुझको पाके, पा लिया सब जीवन में
Friday, October 15, 2010
ना कर उसपे भरोसा, अपनी औकात से ज्यादा
करेगा जब वो रुसवा, दिल टूट जायेगा
हाथ उसका थामे , ये चल दिए कहा तुम
बीच रास्ते में साथ छूट जायेगा
सच की नहीं है कीमत, उसकी नज़र में कोई
कितना भी मनाओ, वो रूठ जायेगा
उसके आसरे पे ये कर चले हों क्या तुम
यकीं तुम्हारा तुमसे वो लूट जायेगा
शौख है ये उसका, शब्दों से चीर देना
ना करना प्यार उससे, दिल टूट जायेगा
करेगा जब वो रुसवा, दिल टूट जायेगा
हाथ उसका थामे , ये चल दिए कहा तुम
बीच रास्ते में साथ छूट जायेगा
सच की नहीं है कीमत, उसकी नज़र में कोई
कितना भी मनाओ, वो रूठ जायेगा
उसके आसरे पे ये कर चले हों क्या तुम
यकीं तुम्हारा तुमसे वो लूट जायेगा
शौख है ये उसका, शब्दों से चीर देना
ना करना प्यार उससे, दिल टूट जायेगा
Thursday, October 14, 2010
ईमान और कुफ्र में फर्क इतना है
तेरी और मेरी, सोच में जितना है
खुदा और ख्वाब, दोनों है यहाँ
देखें इनकी नियत में जोर कितना है
अश्को की आबरू तो, ऐसे उतर गयी
इल्म हुआ आज, दिल कमज़ोर कितना है
जूनून वस्ल का है, इरादे मोहब्बत
अफ़सोस प्यार में ये इंतज़ार कितना है
शमा और शराब, माहोल बन गया
तू नहीं मौजूद, बस ग़म इतना है
उल्फत मेरे दिल में, नफरत तेरे दिल में
फर्क दोनों दिल में बस प्यार जितना है
तेरी और मेरी, सोच में जितना है
खुदा और ख्वाब, दोनों है यहाँ
देखें इनकी नियत में जोर कितना है
अश्को की आबरू तो, ऐसे उतर गयी
इल्म हुआ आज, दिल कमज़ोर कितना है
जूनून वस्ल का है, इरादे मोहब्बत
अफ़सोस प्यार में ये इंतज़ार कितना है
शमा और शराब, माहोल बन गया
तू नहीं मौजूद, बस ग़म इतना है
उल्फत मेरे दिल में, नफरत तेरे दिल में
फर्क दोनों दिल में बस प्यार जितना है
इश्क हुआ रकीब से
तकदीर क्या करे
इसके आगे और हम
तक़रीर क्या करें
नजाकत उसकी ऐसी है
छूने का दिल करे
ऐसे में कोई मदद
तस्वीर क्या करे
करीबी दिल से दिल की हों
दिल को इतना चाहिए
देखें दूरी लाने को फिर
लकीर क्या करे ?
पेहले दिल चुरा लिया
फिर कहा गरीब हमें
तुम तक पहोच पाने को
ये फ़कीर क्या करे?
रकीब - दुश्मन
तक़रीर- बहस
तकदीर क्या करे
इसके आगे और हम
तक़रीर क्या करें
नजाकत उसकी ऐसी है
छूने का दिल करे
ऐसे में कोई मदद
तस्वीर क्या करे
करीबी दिल से दिल की हों
दिल को इतना चाहिए
देखें दूरी लाने को फिर
लकीर क्या करे ?
पेहले दिल चुरा लिया
फिर कहा गरीब हमें
तुम तक पहोच पाने को
ये फ़कीर क्या करे?
रकीब - दुश्मन
तक़रीर- बहस
Wednesday, October 13, 2010
Sunday, October 10, 2010
Friday, October 8, 2010
नजरो से दिल चुराया....इश्क है
दुश्मन से दिल लगाया.... इश्क है
वो जो हमारे नाम से भी खफा होते रहे
अपनी याद में उन्हें रुलाया.... इश्क है
कदमो की दूरी तक भी, जो आये ना कभी
सीने से उन्हें लगाया....इश्क है
एक बार जिसे छूने की तमन्ना थी बड़ी
हाथों से उसे सजाया.....इश्क है
वो रहे कही भी, अब मुझे क्या लेना
रूह उसकी ले आया...... इश्क है
दुश्मन से दिल लगाया.... इश्क है
वो जो हमारे नाम से भी खफा होते रहे
अपनी याद में उन्हें रुलाया.... इश्क है
कदमो की दूरी तक भी, जो आये ना कभी
सीने से उन्हें लगाया....इश्क है
एक बार जिसे छूने की तमन्ना थी बड़ी
हाथों से उसे सजाया.....इश्क है
वो रहे कही भी, अब मुझे क्या लेना
रूह उसकी ले आया...... इश्क है
Thursday, October 7, 2010
Wednesday, October 6, 2010
ना खन्न है
ना छन्न है
खाली सा मन है
कितना समेटोगे
ये गहरा वन है
पतझड़ के पत्तो की किर किर लगी है
बरसों के प्यासे ये लक्कड़ पड़े है
पानी और नदियों में रिश्ता नहीं है
सुखी सी माटी का उजड़ा चमन है
दूर तक सौंधी कोई खुसबू नहीं है
बुत बनके कबसे ये पत्थर खड़े है
म्रिगत्रिश्नाओ से हों जाते है घायल
मीलो तक फैला ये निर्दय सा रण है
ना छन्न है
खाली सा मन है
कितना समेटोगे
ये गहरा वन है
पतझड़ के पत्तो की किर किर लगी है
बरसों के प्यासे ये लक्कड़ पड़े है
पानी और नदियों में रिश्ता नहीं है
सुखी सी माटी का उजड़ा चमन है
दूर तक सौंधी कोई खुसबू नहीं है
बुत बनके कबसे ये पत्थर खड़े है
म्रिगत्रिश्नाओ से हों जाते है घायल
मीलो तक फैला ये निर्दय सा रण है
Monday, October 4, 2010
पेहली नज़र , पेहला ख़याल, पेहले ख़ाब सा कुछ नहीं
पेहला कदम, पेहला साहस , पेहली शुरुआत सा कुछ नहीं
पेहली मस्ती, पेहली उलझ, पेहली बात सा कुछ नहीं
पेहला गुस्सा, पेहली माफ़ी, पेहली मुलाक़ात सा कुछ नहीं
पेहली तड़प, पेहली जलन, पेहले इंतज़ार सा कुछ नहीं
पेहले अलफ़ाज़, पेहले एहसास, पेहले इज़हार सा कुछ नहीं
पेहली तकरार ,पेहला इनकार , पेहले इज़हार सा कुह नहीं
पेहला शुमार, पहला खुमार, पेहले प्यार सा कुछ नहीं....
पेहला कदम, पेहला साहस , पेहली शुरुआत सा कुछ नहीं
पेहली मस्ती, पेहली उलझ, पेहली बात सा कुछ नहीं
पेहला गुस्सा, पेहली माफ़ी, पेहली मुलाक़ात सा कुछ नहीं
पेहली तड़प, पेहली जलन, पेहले इंतज़ार सा कुछ नहीं
पेहले अलफ़ाज़, पेहले एहसास, पेहले इज़हार सा कुछ नहीं
पेहली तकरार ,पेहला इनकार , पेहले इज़हार सा कुह नहीं
पेहला शुमार, पहला खुमार, पेहले प्यार सा कुछ नहीं....
Saturday, October 2, 2010
रात ने कुछ गहरा कर लिया है मौसम, या के ये तेरी आँखों की उदासी है...
चाँद ने तारो को या केह दिया कुछ ऐसा, रंग आसमा का क्यों काली सिहाई है!
उल- फजूल बातें, जाने कितनी कहदी,दिल की वो बात मगर, हमने छुपाई है...
अरसा हुआ उसको, खयालो में बसाके, प्यार जताने में, फिर उम्र गवाईं है !
जवानी केह रही है, कहीं और उसको जाना, नियत तो लेकिन चिकनी सुराही है...
पलकों में,ख्वाबो में, बातों में साँसों में, हर अक्ष में उसकी तस्वीर समाई है !
फासले दरमियाँ के, तवील हों चले क्यों, इसमें भी बेशक- कुछ उसकी खुदाई है...
हम न भूले एक पल, उसकी मोहब्बत को, भूल जाएँ वो तो, इश्के- दुहाई है !
चाँद ने तारो को या केह दिया कुछ ऐसा, रंग आसमा का क्यों काली सिहाई है!
उल- फजूल बातें, जाने कितनी कहदी,दिल की वो बात मगर, हमने छुपाई है...
अरसा हुआ उसको, खयालो में बसाके, प्यार जताने में, फिर उम्र गवाईं है !
जवानी केह रही है, कहीं और उसको जाना, नियत तो लेकिन चिकनी सुराही है...
पलकों में,ख्वाबो में, बातों में साँसों में, हर अक्ष में उसकी तस्वीर समाई है !
फासले दरमियाँ के, तवील हों चले क्यों, इसमें भी बेशक- कुछ उसकी खुदाई है...
हम न भूले एक पल, उसकी मोहब्बत को, भूल जाएँ वो तो, इश्के- दुहाई है !
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