Saturday, January 29, 2011

गुब्बारों सा फोड़ दिया
ख्वाबो का रुख मोड़ दिया
सिने से लगा का कहा था
हाथ कभी ना छोड़ेंगे
जाने ऐसा क्या हुआ
पल में साथ छोड़ दिया

सनम से ज़िरह की फेरिस्त नहीं बनती 
इश्क लौटने की कोई किश्त नहीं बनती
तुम ये सोचो, गलती काबिल-ए- माफ़ नहीं
हम ये सोचे, ऐसी सज़ा हरगीज़ नहीं बनती

ख्वाब और हकीकत में जो दरमियान रहे 
तुमसे इश्क में जाने कितने इम्तेहान रहे
अब तक तो रहे इस दिल के आस पास ही कहीं
गए जो हमसे दूर, अब जाने कहाँ रहे

Sunday, January 23, 2011

शब्दों की कुछ कमी सी है
दिल में आज नमी सी है
लिखना बहोत चाहती हु मगर
साँसे उलझ में रमी सी है 
             शब्दों की कुछ कमी सी है


ज़हन में बातें झूझ रही
मुझसे क्या क्या पूछ रही
पन्नो पर कैसे में लाऊं 
कलम मेरी कुछ थमी सी है
             शब्दों की कुछ कमी सी है


चुप कहाँ  रहती हूँ  में
कितना कुछ कहती हूँ  में
आज मगर आँखों के आगे
माटी की परत, जमी सी है
              शब्दों की कुछ कमी सी है

कहते कहते कितना कहा

बात मगर वो रह ही गयी 
जिससे मन व्याकुल सा है
जिससे दिल में नमी सी है
               पर, शब्दों की कुछ कमी सी है 

क्यों ख्वाबो के कारवां थमते नहीं
क्यों उमीदों की डोर कटती नहीं
क्यों आँखों का पानी सुख जाता नहीं
क्यों किसी को भूल जाना आता नहीं
क्यों रास्तो से राहें खो जाती है
क्यों मौन में भी बातें हों जाती है
क्यों दूरी भी इश्क में अखरती नहीं 
क्यों यादों पर कभी धुल चढ़ती नहीं

Friday, January 21, 2011

सुबह  तक जो "है " में था , वो "था " में हों गया
फिर किसी का "अपना", कही खो गया
ये कैसी प्रथा , यह कैसा नियम
कुछ पलों के फासलों  में फैसला हों गया


वो जिए, हसें, संग रहे, और अब चल दिए
कहाँ , क्यू, किसलिए, कोई कहता ही नहीं
बस इतना इल्म है सबको, जो मुझे भी हुआ
की हमेशा के लिए कोई यहाँ रहता ही नहीं


एक शारीर, जिसे हम इक रिश्ते से पुकारते रहे
आज उसी को कुछ लोग अग्नि को सौंप आये
लेकिन उसमे जो इनसान बस्ता था, वो कहा गया
कैसे क्या करें, की वो फिर लौट आये



उसकी आवाज़, उसकी यादें, उसकी बातें
कभी दूर ना जाएँगी
कई मोड़ पर, कई राह में, उसकी हिदायतें
अक्सर याद आएँगी


यु तो कई अपनों, कई परायों को ऐसे जाते देखा है
फिर भी आज जाने क्यों, ये ख़याल आ गया
कुछ और लोग आने वाले समय में जायेंगे
कुछ और अपने, साथ अपना छोड़ जायेंगे
हर बार, एक दर्द, एक कमी, एक खलल रह जाता है
जाने कैसे इस दर्द को, ह़र सख्श सह जाता है
ऐसे एक दिन में भी तो जाउंगी
कैसा होगा एहसास, उन सबको छोड़ के जाने का, 
जिन्हें खुद से भी ज्यादा प्यार किया हों 
मुझे पता है ये सब सोचना व्यर्थ है, 
क्यूंकि मौत बताकर नहीं आती, 
लेकिन फिर भी ये ख़याल आ रहा है,
की क्या में मौत से हार जाउंगी, डर जाउंगी
या फिर हस्ते हुए, औरो की तरह, 
ज़मीन के उस और, जाने कहाँ,
उस श्रुजन करता में खो पाऊँगी ..
क्या में भी सब के मन  में याद बनकर  रह जाउंगी
या कहीं, किसी के दिल में, हर पल जीती जाउंगी
पता नहीं, कैसे होगा मेरे इस जीवन का अंत,
पता नहीं कब ये माटी फिर माटी में भल जाएगी
पता नहीं वो सुबह किस रंग में आएगी

Wednesday, January 19, 2011

अमन के पंछी, कहरों में नहीं आते
सागर के मोती, लहरों में नहीं आते
जो आते है खुशनूमा, आज़ाद खयालो में 
वो हसीं खाब , पहरों में नहीं आते

Saturday, January 8, 2011

एक आवाज़ पे हमारी, लौट आएंगे वो..
समेट लेंगी फिरसे, वो बाहें हमें..
भुलाके वो शिकवे और सारे गिले 
शर्त है जो फिर ना, वो चाहे हमें ..

मगर बात सारी, थम जाती है यहीं
की आवाज़ हमारी उनतक, अब जाती ही नहीं..