Wednesday, July 31, 2013

बारिश में भीगा है जिस्म मगर 
आँखों का पानी है, कहता कुछ और 
अभी बरसने है, बाकी कुछ सावन 
अभी यु सुखा, पड़ा मन का आंगन 

ठेहरी नहीं बूंदे, कोरी हथेली पर 
अभी ज़ुल्फ़ से पानी, छटना है बाकी 
अभी खुलके बरसा, नहीं कोई बादल 
अभी यादों से दिल का कटना है बाकी 

ज़मीं के कलेजे पे, पैरो से छब छब 
हाथों से बारिश का तन चूमलू 
उस ज़ालिम के जैसे, जो बरसे ये पानी 
बिसरे हुए लम्हों में,मैं फिर झुम्लू 

गुज़रती हें बूंदे, जब होकर के मुझसे 
लगता है जैसे, वो छुकर गया 
बहता है मुझमे, वोह बनकर लहू 
आदत मेरी वो, ये क्यों कर गया 

Saturday, July 27, 2013

तकदीर

या न थी मुक्कमिल,
           लकीरों में ख्वाहिशें 
या शायद रज़ामंद,
          न रहा वो ख़ुदा 

वर्ना तो कोशिशे,
          हमने भी लाख की,
तकदीर, के मिलकर भी 
          वो हो गया जुदा 
 

Wednesday, July 24, 2013

यु न दौड़ ज़िन्दगी

धीमी कर रफ़्तार ज़रा 
युही, न दौड़ ज़िन्दगी 
अभी तो करना, बाकि रहा 
काफी और ज़िन्दगी 

खुलके अभी तक जीया ही नहीं 
मर्जी से साँसों को लिया ही नहीं 
औरो के लिए ही, है दम भरा 
खुदके लिए है, बहोत कम करा 
होना है बाकि, अभी बेफ़िकर
बटोरने-ख्वाब, जो गए है बिखर 
            वक़्त की न ऐसे, लगा बंदिशे 
            न कर इस कदर, तू ज़ोर ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा 
            काफी और ज़िन्दगी

अभी तो बाकी निखरना रहा 
बा-तमन्ना और संवरना रहा 
ख्वाहिशों को होना है, कुछ मनचली 
अरमानो को अब तक, ज़बाँ न मिली 
पुराने ज़ख़्म है, अभी तक हरे 
शिकवो के कितने, ख़ज़ाने भरे 
              दे परवानगी, की सुलझाऊ इन्हें 
              जल्दबाज़ी मे, न मरोड़ ज़िंदगी 
              अभी तो करना बाकि रहा 
              काफी और ज़िन्दगी

अपनों से टूटी जो, कडिया न जोड़ी 
पागलपन की कोई, सीमा न तोड़ी 
मस्तियों की पिटारी, कही खो रखी 
सालों से दोस्तों की, डांट न चखी 
खेल कर खुद को, थकाया नहीं 
कुछ समय से खुदको, आज़माया नहीं 
              जी भर के करलू, मनमानिया 
              दे  इज़ाज़त, कुछ और ज़िन्दगी 
              अभी तो करना बाकि रहा
             काफी और ज़िन्दगी

जवानी को दामन में, छुपाये रखा 
अटखेलियो से भी, बचाए रखा 
सब कहते गए, हम करते गए 
मूँद आँखें, हर कदम, बढ़ते गए 
'हीर' बन हवाओं में उड़ना रह गया
मनचाहे 'रांझे' से जुड़ना रह गया 
             बन तितली, मैं फिरसे उडाने भरूँ
             बदल तरीके, कुछ तौर ज़िन्दगी 
             अभी तो करना बाकि रहा
             काफी और ज़िन्दगी

अभी उसको बाकी, बताना भी है 
शिक्वें और प्यार, जताना भी है 
कुछ नखरे, कुछ हाम़ी, दिल की बातें हैं बाकी 
कुछ खुली, कुछ छुपी, मुलाकातें हैं बाकी 
पूरी है करनी, कई फरमाइशें
बाकी है उसकी, आज़माइशें
            बाँहों मैं उसकी, सिमट जाएँ हम 
            लम्हों को ऐसे, कुछ जोड़ ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा
            काफी और ज़िन्दगी

उसके साथ, थामे हाथ, ढलती शाम   
कभी टेहेलना, कभी दो जाम 
उसके काँधे, रखकर सर, आंखें नम 
कभी रफ़्तार, कभी बस थम 
बाकी है उसे, अभी और सताना 
बाकी है उसे, अभी गले लगाना 
            लग जायें गले, जी भर के हम 
            कुछ देर अकेला, हमें छोड़ ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा
            काफी और ज़िन्दगी

बैठ ऊँची ईमारत पर, हवां में पैर हिलाते हुए
ज़मीं पर लेटे हुए, नभ से नज़र मिलाते हुए 
समंदर की लहरों पर, साथ कदम बढ़ाते हुए 
देखना है संग उसके, खुदको मुस्कुराते हुए 
कुछ रात-ओ-दिन, कुछ शाम-ओ-सहर, ऐसे हो 
मेरे ख्वाब, मेरे ख्याल, मेरी चाहत जैसे हो 
              फिर चाहे आग़ोश में उसके, तोड्लू मैं दम 
              ले आ ऐसा अब कोई, मोड़ ज़िन्दगी 
              अभी तो करना बाकि रहा
              काफी और ज़िन्दगी

यु न खेल, आंख मिचोली 
न हाथ, छोड़ जिन्दगी 
ऐसे भी न तोड़ दिल ये 
न साथ, छोड़ ज़िन्दगी 
धीमी कर रफ़्तार ज़रा
यु न दौड़ ज़िन्दगी
अभी तो करना बाकि रहा
काफी और ज़िन्दगी

Friday, July 19, 2013

काश

झूठी  उसकी चाहत पर, इतराते रहे
सच होते एहसास 
तो क्या कर जाते हम ..........

उसकी बे-परवाही पर भी, प्यार आता है
प्यार कर लेता वो
तो मर ही जाते हम.............  

Thursday, July 18, 2013

किस्सा तेरी बातों का

नया सा कुछ नहीं 
फिर वही ले आये हैं 
बुरा न मानो जानेमन 
किस्सा तेरी बातों का 

शाम ढले तारो तले 
हलकी आँखें मूंदकर 
सो बार होठों से लिया 
स्पर्श तेरे हाथों का 

धडकनों पर कान धरे 
रूह से तेरी मिल लिए 
वो मिलन भी हिस्सा रहा 
तुझसे मिली सौगातों का 

ये क्या लिखकर लाये हो 
गिनती दिन दिन मिलने की 
क्या हिसाब कर पाए तुम 
तनहा रुदलती रातों का 

मुट्ठी मेरी खोल कर 
क्यों लकीरें ढूंढते हो 
रंग अभी उतरा नहीं 
प्यार की बरसातों का 

मत्थ्हे मेरे चढ़ गए 
जुगनू है बीतें कलके 
दिल मैं मेरे रोशन रखते 
दिया तेरे जस्बातों का 

जाना था, तू चला गया 
शायद यूँही होना था 
पर समय दोहराता रहा 
मर्म हसीं मुलाकातों का 

मुझसे जो ले जा सको 
'जाना' अबके ले जाना 
और नहीं थामा जाता 
समंदर तेरी यादों का 

मौका चाहे कोई हो 
चाहे कोई दस्तूर 
हर जगह ले आतें हैं 
किस्सा तेरी बातों का 
बुरा न मनो जानेमन 
बस किस्सा तेरी बातों का 

Monday, July 8, 2013

पहोंच से अपनी दूर है

हाथों से क्या पलटे जायें 
वक़्त ने जो फेकें पाशे 
कदमो से ही नाप ले आ 
वो मंजिल कितनी दूर है 

 किन आँखों में ख़ाब नहीं 
किसका दिल ख़ाली घड़ा 
कुछ दम भरके निकल गए 
जो बिखर गए, मजबूर है 

ख्वाहिशों की होड क्या 
बे-लगाम वो घोड़े है 
थमते तब, जब सांस रुके 
बेइन्ताहि सा फ़तुर है 

चिलम से बढ़कर चराग़ भी 
हल्ला मचा है सिने में 
ख्याल भी ऐसे आग लगा दे 
तपीश कुछ उसमे ज़रूर हैं 

नज़र ने लेकर दिल में रखा 
दिल का हाल बेहाल है
इसमें उसकी क्या खता 
नजरो का ही कसूर है 

बेपरवाही कडवी इतनी 
मिसरी भी मुहं में ज़ेहर लगे 
लबों से उसके पीतें है हम 
उसके रस में चूर है 

युही नहीं तारीफें होती 
कहतें हमें हसीन लोग 
छा जाता इन आँखों में  जो 
उसके स्पर्श का नूर है 

गद गद ख्वाइश हो उठती है 
सीने से उसके लग जाए 
खो भी देते खुदको उसमे 
पहोंच से अपनी दूर है 
 

Sunday, July 7, 2013

बातों मे निकली बात

बातों मे निकली बात
और एक बात आ गयी
अठरा बरस पुरानी
एक याद आ गयी
अभी तो जवाँ हुआ न था
और ये किस्सा हो गया
एक अन्जाना  चेहरा
दिल का हिस्सा हो गया
यु अचानक एक दिन
वो कहीं से आ गयी
न कोइ था भाया  इतना
वो जितनी भा गयी
साँठ मिनट के साथ में
ये कमाल हो गया
उसने देखा भी नहीं
मेरा बुरा हाल हो गया
जाते हुए वो अदब से
ऐसी उलझन दे गयी
सँवर के बिखर गया मैं
मानो जान ही ले गयी
होंसलो ने कदम बढ़ाये नहीं
कभी ज़िकर कर पाए नहीं
दूरियाँ युही बढती रही
चाहत पर मिटटी चढती रही
रिश्तों के भँवर में उलझता गया
हर खाब मेरा झुलसता गया
दिन बने महीने
महीनो में बीतें साल
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पर
बदली अपनी चाल
देखा नहीं इक अरसा उसे
न किया कभी इकरार
कह ही नहीं पाया कभी
उससे हुआ था प्यार
सदियों से लम्बी राहों पर
दोनों ही कहीं खो गए
अपने बनाये घरोंदो में
दोनों मशरूफ़ हो गए
मिली कहीं एक बार मुझे
वो अनजान मेरे प्यार से
खुशी में बदला ग़म मेरा
मिला था जो हार से
ये ख़ुशी इस बात की थी
वो बेहद खुशहाल थी
में भी आगे निकल चला था
ज़िन्दगी यहाँ भी निहाल थी
दोस्त बने हम-दोस्त रहे हम
फिर कुछ साल निकल गए
जाने क्यों देख दोबारा उसे
अब जस्बात मेरे मचल गए
इक तमन्ना फिर जागी
काश के ऐसा यार हो
वो मिले न मिले, ग़म नहीं
कमस्कम इकरार हो
उसे पानेकी चाहत
न थी न कभी होगी
ख्वाइश-की इक बार सही
उसे भी हमसे प्यार हो

Thursday, July 4, 2013

औरों का ग़म देखा

औरों का ग़म देखा 
            लगा की अपना कम है 
                       मोहबत्त के सिवा दुनिया में 
                                   'आशिक़ ' और भी ग़म है