Friday, November 25, 2011

हैरान सी,
परेशान सी,
बढे जा रही है,
पथ्थरो पे नंगे पाऊ...दौड़े जा रही है ...
ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी का देखो कैसा हाल किया !

दूर कही,
जैसे कोई,
मंज़र सा है,
शायद मंजिल का निशाँ,
रुक न जाये कोई कही, भरम का ऐसा जाल किया !

Thursday, November 10, 2011

नफरत ना सही,
कुछ कम भी नहीं..
असमंजस के सागर में गोते खा रहे हैं!
दो कदम उनकी तरफ,
दो कदम उलटे पैर ...
डगमाते रास्ते कहाँ जा रहे हैं !

कभी हवा के साए में,
कभी धुंए में कही...
धुंदली तस्वीर से रंग जा रहे है !
कौन कहता है अंधेरो में,
खो जाते हैं लोग...
चाँद से बेहतर ,वो नज़र आ रहे है !

उम्र  के दायरे में,
सब एहसास नहीं आते..
कुछ अरमान अब देखो कहाँ जा रहे हैं !
जिस मोड़ पे खाई थी,
हर कोशिश ने ठोकर...
होके बेलज्जा, सब वहा जा रहे है !

Saturday, October 22, 2011

उसकी बेशर्मियत  की हद्द देखि
अपनी बेवकूफ़ियो का असर देखा !

विश्वास की धज्जियां उडी और जली
बय्मानी का धुआं दर बदर देखा !

आँख मूंदे चल दिए साथ उसके
धोके का जाल, न एक नज़र देखा !

सच के मुखोटे में झूट छूप गया
फरेबी ने प्यार से, इस कदर देखा !

उसकी आँखों से हर पहलु, चुना और बुना
नामुमकिन कुछ ख्वाबो का बसर देखा !

नियत मैं खोट का इल्म न हुआ,
जब तक न खुद पर टूटता, कहर देखा !

कहते  रहे लोग, कभी सुना  ही  नहीं 
प्यार मैं डूब जाने  का हषर देखा !

शहद में डुबोके जो हर शब्द कहता था
उसकी बातो में अब उगलता ज़हर देखा !

इस बात की तस्सली देके, खुद को संभाला है
शुक्र है उसके साथ ना, हर पहर देखा !

मगर एक अफ़सोस आखरी दम तक रहेगा
आखिर क्यों उस कमज़र्फ  का, शहर देखा  ! 

Thursday, July 7, 2011

रूख़ करो जिस ओर, हवाएं रेशम हो जाएँ 
कदमो के नीचे की मिटटी, मखमल बन जाएँ

खुशबू से यु महक उठे, गूंचे अरमानो के
गुल ख़्वाबो के सजा के लाये, लश्कर पैमानों के

कुबूल-सूरत वो हम-पाया, जिसने अरमानो को जोड़ा
सिफ़र सा धूल में खो जाए, जिसने कसमो को तोडा

बानसीब वो सख्सियत, जो हमराह बन चले हैं 
खुदा नवाज़े नसीब से, जो हमसे इतने भले हैं

न होना मुफ़ारकित  उनसे, न हो कभी ग़म का सामना
कुर्बत रहे उस सरोश से, हर पल दामन को थामना

असास ऐत्बार का हो, रहे ये मिलन अज़ल तलक
जो खुशियाँ तुमने है चुनी, रहे मुकम्मिल जैसे फलक

आफ़ताब-आलंताब करे, रोशन तुम्हारा आँगन हो
जो चाहो वो इतना आये, लद लद सारा दामन हो


पास-आब ये ख़याल आया, अब नाम तुम्हारा ले न कभी
बद-रफ़्तार गुज़र जाए, गुज़रे लम्हों के किस्से सभी

क़र्ब न इतना हावी हो, की हम फिर से कुछ कह जाए
फासले हममे इतने रहे, बस फासले ही रह जाए

पाश-पाश हो गए घुमान-ओ' फ़ैल गए थे अफ़साने
तजवीज़-आखिर ये तय हुआ, रहे बनके अब अनजाने

यकीन जानिए, बे सबब है, ये जो आया गुब्हारे-दिल
वरना तो हर लव्ज़ में फ़िदायी, है लाखो दुआ शामिल

मौका खुशनसीब है, जुड़ जाए है दो ज़िन्दगी
तौफे मैं ज़िया  देते है, और लेलो हमसे तिश्नगी

गफ़र चाहेंगे , नामुनासिब ज़िख्र, अगर कोई हमने किया
ये भी देदो जाते हुए, जब रहते हुए है इतना दिया        

कुबूल-सूरत - beautiful
हम-पाया -similar
सिफ़र-zero
बानसीब -lucky
मुफ़ारकित-separation
कुर्बत-closeness
सरोश -an agel
असास-foundation
अज़ल-eternity
आफ़ताब-आलंताब  -the sun illuminating the world
पास-आब-consideration of someone's reputation
बद-रफ़्तार- at the speed of wind
क़र्ब-pain
पाश-पाश -broken into pieces
तजवीज़-आखिर- last decision
फ़िदायी - lover
ज़िया-light
तिश्नगी -longing
गफ़र-forgiveness

Tuesday, July 5, 2011

तेज़ हवा ने चेहरे को जुल्फों से ढक दिया
नम आँखों ने पलकों में तेरा चेहरा रख दिया

भूल गए थे पीना, एक अरसे से प्यास रही
ऐसे याद आया कोई, हर मय को चख लिया

दामन में ख्वाबो का पलना कैसे हो मुमकिन
पल्ला मेरे सर का लेके, किसीने रख लिया

सुना था चाहतो का कोई स्वाद नहीं होता
हमने तेरे इश्क में, हर जाएका है चख लिया

ख्याल जो हर बार मिला देते है मुझे तुझसे 
आज उन सबसे मैंने,  कह दिया  तख़ लिया 
 

Saturday, July 2, 2011

तुझको देकर भूल गए
कुछ ख्वाब बड़े नाजुक से थे
आज दामन खोल के देखा
यादों के सिवा और कुछ भी नहीं

हाथ मैं साँसे रख्खी  है,
पैरो मैं हवा को बाँध लिया
जीने पर अफ़सोस नहीं तो
मर जाने का ग़म भी नहीं  
 
दिल मैं समां जाये, वो याद कैसी
लव्जो मैं बयान हो तो फ़रियाद कैसी
जाते हुए छोडे न जो कदमो के निशाँ
उनसे हुई ऐसी मुलाकात कैसी

  

Monday, June 27, 2011

बात कोई भी याद नहीं,
शायद सब कुछ भूल गए,
हमने भी करवट लेली
जब उसने आँखें मूंद लयी

माथे पर शिकन कैसी
ग़म तो कोई दीखता नहीं
हर सुबह तुम्हारी हँसती रहे
शिकवो की वो रात गयी    

जस्बातों का मेला है
थक कर फिर सो जायेगा
इतना क्यों घबराते हो
रिश्तो का ये मेल नहीं

आज भी है और कल भी होगा
फासला जो तेय न किया
सेतु कोई यहाँ भी बने
ऐसा तो मुमकीन ही नहीं  
बरसो पुराना रिश्ता, कहीं मिल गया 
ऐसी हुई टक्कर
ज़िन्दगी बदल गयी 

पीछे कुछ सपने, आगे हकीकत
बीच दोराहे
साँसे मचल गयी

रिश्तो के धागे कच्चे सही
अब तक इन्ही से
आगे नसल गयी

बाकी सब बातें, भूल के भुलाई
बात मगर जिद्द की
खरी असल रही

ख्वाब भी टूटा, रिश्ते भी
मगर कुछ दुहाई
ऐसे अटल रही

हम भी वोही और वो भी वही
देखने की बेशक 
नज़र बदल गयी
 

Wednesday, May 18, 2011


कुछ  नज़र  में , कुछ  लबो  पर  सजा  दीजिये 
हमें  भी   नफरत  हो  जाये , वो  वजह  दीजिये

सुकून  के  मौसम  में  खूब  दिया  हमें 
बेचैनी  की  रस्मे  भी  अब  अदा  कीजिये 

होंश  में  रहे  हम , तो  दर्द  ही  बाटेंगे 
प्यार  करलें  कुछ  आपसे , कोई  नशा  दीजिये

न  रहा  कोई  ख्वाब , न  ख्वाबो  की  ज़मीन 
मिटटी  को  वो  महल , अब  मिटा  दीजिये

धुए  में  रासते  हैं , और  रास्तो  पर  हम
इक  तमाचा  जड़  के , हमें  जगा  दीजिये

शायद  बदकिस्मती  से,  फिर  देख  लो  हमें
न  हो  ग़म  दुबारा ,  शक्ल  भुला  दीजिये

माफ़ी  तो  नहीं  बनती , और  न  ही  कभी  देना 
मगर  हक  बनता  है , कुछ  सज़ा  दीजिये

Monday, April 18, 2011

खुली आँखों से देखे ख्वाब का , हकीकत से ज़्यादा वजूद हो,
पलकों से कोई चुरा न ले जाए, पहरेदार खुदा खुद हो
आईने मैं दीखते चेहरे की लाली, किसी के ख़याल से खिल जाए
किसी की मुस्कराहट में, जीने की वजाए मिल जाए
बातों के किस्से अनगिनत, बात वो फिर भी रह जाए
इक स्पर्श किसी का पल भर में, किस्सा सारा कह जाए



Tuesday, March 8, 2011

इक सुबह ऐसी हो,
तूझे जागते मैं देखू,
सूरज की नर्म किरणों में  तेरी आंखें खुल रही हो,
तेरे चेहरे की मासूमियत यु धीरे धीर उभर के मुस्कुराये
तेरी अंगडाइयों  की सिलवटो को कुछ बेचैन पाऊं  
तेरी शांत धडकनों को मेरे खयालो में खोया देखू
सुबह के पहले पहर तुझे में अपनी यादों में शामिल देखू,
कितना खूबसूरत वो पल हो, जब तेरे अक्ष मैं सिर्फ मेरी झलक हो,
और जिस मौड़ बेचैनी चरम पे हो,
मैं आके तुझे गले लगालू, और तेरे आघोष में खुदको खो दू...

Monday, March 7, 2011

क्या है तुझमे वो, जो बेकरार किये जाता है
कौन है मुझमे वो, जो इंतज़ार किये जाता है
समय के दोराहो ने,मुझसे हक छीन लिया
फिर भी ये दिल है, जो प्यार किये जाता है   

Thursday, March 3, 2011

चिलमन से चेहरा छुपा तो लिया
धड़कन को कैसे छुपाओगे  तुम
खुसबू तुम्हारी जो साँसों मैं हो
इसको कहाँ लेके जाओगे तुम

होतीं अगर राहें इतनी सरल
चाहतो मे मज़ा फिर क्या आता सनम 
कभी हार को भी सर-आँखों पर लो,
हर बाज़ी फिर देखो, जीत जाओगे तुम..

तकल्लुफ न करना मोहब्बत में कभी,
उल्फत में खुदको मिटा देना है 
फासलों को जितना, नज़र-अंदाज़ करोगे
उतना मेरे पास, खुदको पाओगे के तुम....
 
बेमतलब,
नाजुक बड़ी,
कमज़ोर सी है,
हमारे बीच जो खड़ी,
बेकाम की दीवार...
बस नाम क दीवार....

मौन है तो क्या,
वजह भी खूब है,
खुद हमने है चुनी,
कुछ ख़ामोशी और ये,
बेकाम की दीवार...
बस नाम की दीवार...

समय को रोका है,
या रुक गए खुद हम,
या रोक दिया रास्ता,
लकीरों का, मढ़कर
बेकाम की दीवार...
बस नाम की दीवार...     

कुछ तनहा लम्हे,
थोड़ी नजदीकियां,
एक नज़र प्यार की,
देखो कैसे गिरती है,
बेकाम की दीवार...
ये नाम की दीवार 
 

Monday, February 14, 2011

सहज भाव से बहला  देना
आऊं कभी तो सहला देना
जिस भी जीवन में मिलो तुम
प्यार मुझे ही पेहला देना



Thursday, February 10, 2011

हसीन  एक किताब हैं,
हर किसी के लिए मगर, 
इस ज़िन्दगी को जाने कितने पढ़ पाते हैं !
कुछ जीतें है प्यार से,
हर एक कहानी..
और कुछ,
बस..पन्ने पलटकर आगे बढ़ जाते है !

Wednesday, February 9, 2011

हार का एक रंग, तुम भी देखोगे
जीत का  एक रंग, यहाँ भी आयेगा
किसके रोके रुकी है, लकीरों की कश्तियाँ
लेखा - जोखा सारा, यही निभ जायेगा


कागज़ के फूलो पर, इत्र ना छिडको
धुप की दो किरणों में, सबकुछ  उड़ जायेगा
जो मान के बैठे हैं, हर बात तुम्हारी सच्ची
वक़्त आने पर, उनका भरम टूट जायेगा

रिश्तो को तोलते तोलते, वो वक़्त गुज़र गया
उन पलों की मासूमियत, कौन लौटाएगा
फितरत है की वादा, कभी छोटा नहीं किया 
बस ये नहीं मालूम, की उसे कौन निभाएगा

Saturday, January 29, 2011

गुब्बारों सा फोड़ दिया
ख्वाबो का रुख मोड़ दिया
सिने से लगा का कहा था
हाथ कभी ना छोड़ेंगे
जाने ऐसा क्या हुआ
पल में साथ छोड़ दिया

सनम से ज़िरह की फेरिस्त नहीं बनती 
इश्क लौटने की कोई किश्त नहीं बनती
तुम ये सोचो, गलती काबिल-ए- माफ़ नहीं
हम ये सोचे, ऐसी सज़ा हरगीज़ नहीं बनती

ख्वाब और हकीकत में जो दरमियान रहे 
तुमसे इश्क में जाने कितने इम्तेहान रहे
अब तक तो रहे इस दिल के आस पास ही कहीं
गए जो हमसे दूर, अब जाने कहाँ रहे

Sunday, January 23, 2011

शब्दों की कुछ कमी सी है
दिल में आज नमी सी है
लिखना बहोत चाहती हु मगर
साँसे उलझ में रमी सी है 
             शब्दों की कुछ कमी सी है


ज़हन में बातें झूझ रही
मुझसे क्या क्या पूछ रही
पन्नो पर कैसे में लाऊं 
कलम मेरी कुछ थमी सी है
             शब्दों की कुछ कमी सी है


चुप कहाँ  रहती हूँ  में
कितना कुछ कहती हूँ  में
आज मगर आँखों के आगे
माटी की परत, जमी सी है
              शब्दों की कुछ कमी सी है

कहते कहते कितना कहा

बात मगर वो रह ही गयी 
जिससे मन व्याकुल सा है
जिससे दिल में नमी सी है
               पर, शब्दों की कुछ कमी सी है 

क्यों ख्वाबो के कारवां थमते नहीं
क्यों उमीदों की डोर कटती नहीं
क्यों आँखों का पानी सुख जाता नहीं
क्यों किसी को भूल जाना आता नहीं
क्यों रास्तो से राहें खो जाती है
क्यों मौन में भी बातें हों जाती है
क्यों दूरी भी इश्क में अखरती नहीं 
क्यों यादों पर कभी धुल चढ़ती नहीं

Friday, January 21, 2011

सुबह  तक जो "है " में था , वो "था " में हों गया
फिर किसी का "अपना", कही खो गया
ये कैसी प्रथा , यह कैसा नियम
कुछ पलों के फासलों  में फैसला हों गया


वो जिए, हसें, संग रहे, और अब चल दिए
कहाँ , क्यू, किसलिए, कोई कहता ही नहीं
बस इतना इल्म है सबको, जो मुझे भी हुआ
की हमेशा के लिए कोई यहाँ रहता ही नहीं


एक शारीर, जिसे हम इक रिश्ते से पुकारते रहे
आज उसी को कुछ लोग अग्नि को सौंप आये
लेकिन उसमे जो इनसान बस्ता था, वो कहा गया
कैसे क्या करें, की वो फिर लौट आये



उसकी आवाज़, उसकी यादें, उसकी बातें
कभी दूर ना जाएँगी
कई मोड़ पर, कई राह में, उसकी हिदायतें
अक्सर याद आएँगी


यु तो कई अपनों, कई परायों को ऐसे जाते देखा है
फिर भी आज जाने क्यों, ये ख़याल आ गया
कुछ और लोग आने वाले समय में जायेंगे
कुछ और अपने, साथ अपना छोड़ जायेंगे
हर बार, एक दर्द, एक कमी, एक खलल रह जाता है
जाने कैसे इस दर्द को, ह़र सख्श सह जाता है
ऐसे एक दिन में भी तो जाउंगी
कैसा होगा एहसास, उन सबको छोड़ के जाने का, 
जिन्हें खुद से भी ज्यादा प्यार किया हों 
मुझे पता है ये सब सोचना व्यर्थ है, 
क्यूंकि मौत बताकर नहीं आती, 
लेकिन फिर भी ये ख़याल आ रहा है,
की क्या में मौत से हार जाउंगी, डर जाउंगी
या फिर हस्ते हुए, औरो की तरह, 
ज़मीन के उस और, जाने कहाँ,
उस श्रुजन करता में खो पाऊँगी ..
क्या में भी सब के मन  में याद बनकर  रह जाउंगी
या कहीं, किसी के दिल में, हर पल जीती जाउंगी
पता नहीं, कैसे होगा मेरे इस जीवन का अंत,
पता नहीं कब ये माटी फिर माटी में भल जाएगी
पता नहीं वो सुबह किस रंग में आएगी

Wednesday, January 19, 2011

अमन के पंछी, कहरों में नहीं आते
सागर के मोती, लहरों में नहीं आते
जो आते है खुशनूमा, आज़ाद खयालो में 
वो हसीं खाब , पहरों में नहीं आते

Saturday, January 8, 2011

एक आवाज़ पे हमारी, लौट आएंगे वो..
समेट लेंगी फिरसे, वो बाहें हमें..
भुलाके वो शिकवे और सारे गिले 
शर्त है जो फिर ना, वो चाहे हमें ..

मगर बात सारी, थम जाती है यहीं
की आवाज़ हमारी उनतक, अब जाती ही नहीं..