Thursday, November 20, 2014

तुम साथ नहीं ये हार नहीं 
कहीं जीत मेरी ही है 'जाना'
ना होकर भी हो साथ मेरे 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

ढलते दिन के साये में जब 
महफ़िल सजाये बैठे हो 
तुम जाम बनाये बैठे हो 
किसी घूंठ में मेरा स्वाद आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कुछ गीत तुम्हारे दिल अज़ीज़ 
कोई ग़ज़ल जो मैंने गायी हो 
कभी उनकी धून में खो जाओ 
और कही मेरी आवाज़ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

मस्ती से हो मन भरा 
और दिल को सूझे अठखेली 
किसीको सताके हो रुलाना 
और चेहरा मेरा नज़र आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कोई बात से दिल परेशान हो 
भीड़ में भी तन्हाई लगे 
सीने से लगाके रोना हो 
और याद जो मेरी बाह आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

किसी हार में, ग़म में 
किसी जीत में,जश्न में 
कहना हो कुछ दिल का हाल 
और याद जो मेरा नाम आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

कभी होंठ तुम्हारे शोर करें 
भीग जाने का वो ज़ोर करें 
मदहोशी में खो जाना हो 
और ख्यालों में मेरे होंठ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

तम्मनाएँ कभी जो बेहक जाएं 
आग़ोश में बदन महक चाहे 
ख्वाइश हो ज़िद्दी, लहू गरम 
और याद जो मेरा साथ आये 
वो  जीत मेरी ही है 'जाना'
तुम साथ नहीं, ये हार नहीं 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

ना होकर भी हो साथ मेरे 
ये जीत मेरी है है 'जाना'

Monday, November 17, 2014

उल्फ़त सा बहरहाल कोई दर्द ही नहीं 
शायद इस दर्द सा कोई ज़र्द ही नहीं 
उनसे क़ुर्बतों के है हासिल भी अज़ीब
ला-इलाज़ बेबसी सा कोई मर्ज़ ही नहीं 

Saturday, November 15, 2014

तुमसे मिलना सबसे ख़ूबसूरत इत्तेफ़ाक़ 
तुमसे प्रेम करना आत्मीय अनुभूति रही 

शुक्रगुज़ार है दिल एहतराम के लिए 
नवाज़िश के लिए, इस्तक़बाल के लिए 

गद गद है मन आज, ख़ुशी से भर आया है 
तुम संग बिता इक लम्हा प्यारा याद आया है 


फ़ासले दरमियाँ के मुक्कमिल रहे 
ज़ेह्न -ओ-ख़्वाब में तब भी हासिल रहे 
ज़ेहर हो, लत हो, क्या चीज़ हो 'जाना'
ना होकर भी ज़िन्दगी में शामिल रहे 

Friday, November 14, 2014

सोचूँ तो वजहों की फ़ेरिश्त बन जाएगी 
न सोचूँ तो तुमसे कोई खला ही नहीं 
मिलने को तो मिले हमें हर मोड़ पे आशिक़ 
मुख्तलीफ़ , तुमसा मगर कोई मिला ही नहीं 

Thursday, November 13, 2014

ना हो तेरी खुशी 
मेरे रुख़्सत की मोहताज़ 
नज़र जो फेरी तूने 
कदम वही थम जायेंगे 
ये तो ख्वाहिशें-वस्ल है 
जो अब तक यही हु मैं 
लबोँ से कहदो 'जाना'
उस ओर भी नज़र ना आयेंगे 

Saturday, November 1, 2014

एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे
ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे

धुंदले कुछ ख्वाबों के साये
अक्सर मिलने आते हैँ
हम इस इन्तेज़ार में हैं
तुम कब मिलने आओगे

कुछ शौख़ आला तुम्हारे थे
कुछ हसीं नाज़ हमारे हैं
हम न रहेंगे तब 'जाना'
हम से ही जाने जोआगे

एक शायर का इश्क़ हो तुम
शब्दों में पिरोये जाओगे 
शेरों में तुम्हारा अक्ष होगा 
नज़्मों में नज़र तुम आओगे 

ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे
एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे







कुछ मेरी ही तरह है ये इश्क़ बावरा 
उसे चाहता भी है 
और वो चाहिए भी नहीं