Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Monday, August 4, 2014
मय को अपनी औक़ात से ज़्यादा ना पी ग़ज़ब होगा 'जाना' जो आँखें बोल पड़ी खँजर से सीने को चिर् तो दोगे तुम ख़ुदको उसमे देख होगी तक़लीफ़ भी बड़ी
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