Thursday, September 11, 2014

मेरे मन के पंछी 
थम ज़रा 
दिखता हैं  मगर 
आकाश नहीं 

कुछ बदलियों ने, घर बनाया है 
वो लम्हा अभी, नहीं आया है 
ये दर्द उसके, दिल में भी हो 
इन आँखों में, जो भर आया है 

कोई आह कसक की, यूँ भी तो हो 
हर साँस में मेरी, याद आये 
एक नज़र को तरसे, नज़र उसकी 
हर चाह में मेरा, नाम आये 

तरसते ख़्वाब को, थाम तू ले 
ऐ मन सब्र से, काम तू ले 
इम्तिहाँ ऐसे, और भी है 
अभी और आएंगे, मक़ाम ऐसे 

ये दिल उसके, क़दमों में रख 
कहीं और का, मन, रुख करते हैं 
दीखता है मगर, आकाश नहीं 
कहीं और की उड़ान, भरते है 

मेरे मन के पंछी 
थम ज़रा 
किसी और दुनिया में चलते हैं 

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