Friday, July 25, 2014

कश्मकश है गुत्थी है 
कभी समझ नहीं पाया दिल
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

देता है वो बेक़रारी 
सुकूँ पर उसी से मिलता है 
दुश्मन भी वही दोस्त भी 
कैसे शख़्श पर देखो आया दिल 

पत्थर से भी ज़्यादा पत्थर 
है ह्रदय पर मोम सा 
क़ायनात का गुस्सा लेकिन 
फूंलों से भी नाज़ुक दिल 

माँगा नहीं ख़ुदा से मैंने 
लकीरों में मेरी छुपा था वो 
प्यार दिया जहाँ भर का 
फिर भी अपना दिया न दिल 

पास जाऊं तो दूर हो जाता है 
दूर जाऊँ तो पास आ जाता है 
भूल जाऊं तो और याद आता है 
बड़ी मुश्किल में है अपना दिल 

साँसों में मेरी घुल गया है 
अब जाँ जाये तो वो जाये 
रोज़ है क़त्ल वो करता मुझे 
किस कातिल पर आया दिल 

अब कर लिया प्यार तो क्या भूलें 
सच- ज़ालिम पर आया दिल 
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

Saturday, July 19, 2014

सुखी डाली को तीली लगा ही गए 
हताश हो चुके थे ख़याल उसके 
आग भी लगी 
धूआँ भी उठा 
तिनका तिनका अब रोज़ 
बिखरती है राख़ 

ढांचा डेह गया 
अस्तित्व बह गया 
भ्रमित मेरा अक्ष 
यतीम रेह गया 
भ्रम की तपन से 
निखरती है खाक़ 
तिनका तिनका अब रोज़ 
बिखरती है राख़ 

Wednesday, July 16, 2014

बिन दस्तक, जैसे कोई ख़्वाब
आये तुम और चले गए 
किसकी लिखूँ मैं जीत यहाँ , 
किसकी अब मैं हार लिखूँ 
तूम कहो तो 'नाम' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

वो भी कैसे दिन थे 'जाना'
आये और आकर चले गए 
कुछ लम्हों की जीवन गाथा 
क्या उनका हर तार लिखूँ 
तुम कहो तो 'साथ' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

तीक्ष्ण नज़र ओ मीठे अधर 
लहू पे केहर उठा गए 
आग़ोश मैं ख़ुशनुमा ज़िन्दगी 
या साँसों की तेज़ रफ़्तार लिखूँ 
तुम कहो तो 'स्पर्श' तुम्हारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार' लिखूँ 

किस्मत में आई वो तराई 
गिर ज़मीं पर आ गए 
है अभिलाषी दिल मगर क्यों 
उम्मीद उसे या एतबार लिखू 
तुम कहो तो 'दर्द' हमारा 
या इक शब्द मैं 'प्यार ' लिखूँ 



Thursday, July 10, 2014

केहते हैं, दर्द की बेहतर दवा यही 
दिलको नए दर्द से मिला दीजिये 
ख़फ़ा होता है, जिसे न पाके रूबरू 
नाम उस सख्श का, दोहरा दीजिये 

कभी तो दिलके, सब्र का बान टूटेगा 
कभी तो उस यकीं का, ईमान छूटेगा 
बताके अंजामे मोहब्बत, बार बार 
उसकी मोहब्बत का इम्तेहाँ लीजिये 

भर सके जो दामन में , नफ़रत की आग को 
धर सके जो माथे पे, तोहमत के दाग़ को 
उल्फ़त में हो दिल का, ऐसा ही जुनूँ अगर 
ऐसे ज़िद्दी दिल का, कोई क्या कीजिये 

केहते हैं, दर्द की बेहतर दवा यही 
दिलको नए दर्द से मिला दीजिये 
कहा की उन्हें भूलके, नया दर्द लिया जाए 
केहता है दिल, यूँ भी कर आज़मा लीजिये 



Wednesday, July 9, 2014

तस्वीर आपकी 'जाना" आप जैसी नहीं 
प्यारसे मनाने पर मान जाती है 
दो पल उन आँखों में देखना मेरा 
और हाल मेरे दिल का वो जान जाती है 

आपको तकलीफ़ है मेरे आने पर 
वो तो हंस कर प्यारसे गले लगाती है 
जो ज़ख्म मुझे आपका मौन देता है 
तस्वीर उन घावों पे मरहम लगाती है 
तस्वीर आपकी "जाना"आप जैसी नहीं 
प्यारसे मनाने पर मान जाती है 

देखो तो कितने प्यारे लगते हो इनमें 
आपसे बेहतर ये नज़र आती है 
ख़डूस हो आप,और बेहद नकचढ़े 
इन्हें देख़ो तो, स्नेह से मुस्कुराती है 
दो पल उन आँखों में देखना मेरा 
हाल मेरे दिल का वो जान जाती है 



Tuesday, July 8, 2014


मेरा प्यार समझनें में तुम्हे 
उम्र लगे शायद 

लगने दो 

उम्र के उस पार तो 
मिलोगे न हमें ?

Sunday, July 6, 2014

सेहज के , 
संजो के रखे थे मैंने 
कुछ तीखे बोल तेरे 

तब वो कड़वे लगते थे 

आज
जब भी उनको 
मन की पिटारी में देखती हु 

बेहद मीठे लगते हैं 

उन्हें मंद ध्वनि में 
दोहराती हू, सुनती हू 
मेहसूस करती हू 

और फिर धीरे से मुस्कुराती हू 

वाक़ई 
प्यार में कुछ तीखा नहीं होता 
कोई बात कड़वी नहीं होती 

सब कुछ सुखदाई ही होता है 


बस,
ये समझने में कभी कभी 
कुछ वक़्त लग जाता है 

प्यार में तो केवल प्यार ही होता है 

Friday, July 4, 2014

कोसों चले है तनहा 
अब आराम दीजिये 
कहतें है सब्र मेरे 
सब्र से काम लीजिये 

वो आप थे,ख़्वाब थे 
या इश्क़ का बेहलावा  
कहता है दिल मेरा 
एक तो नाम लीजिये 

आप ही से मिलके हुए 
होश-ओ-समझ लापता 
अर्ज़ है ढूंढ लाओ  
आप इंतेज़ाम कीजिये 

शर्त-ए-इश्क़ गर जुदाई है 
मंज़ूर, फ़क़त इक इल्तिज़ा 
भरके अपनी बाँहों में 
प्यार सरे-आम कीजिये 

प्यार ना दे सको ना सही 
उन आँखों में जो जलता है 
होंठों से होंठों को छूकर 
नफ़रत का ज़ाम दीजिये 

आपके बग़ैर भी जीके 
हमनें दिखा दिया 
अब संग हम मर सके 
ये एहसान कीजिये 

Wednesday, July 2, 2014

ठेहरा है एक अश्क़, बनके-लहू मेरी आँखों में 
बहा तो दूँ,
संग मगर, याद तेरी बह जाएगी 

ना पसंद जो है तुझे, बात वही इश्क़ की 
पलकें झुकीं तो 
तेरी मेरी कहानी दोहराएगी 

काफ़िले क़ुर्बत के, यु तो तुझसे कई मिले 
आरज़ू एक मगर 
मूमकिन न कभी हो पायेगी 

तेरी हँसी के सदके ,जानाँ ये जाँ भी कम है 
तेरी आँख में आँसू मैं दू 
ये बात बहोत सतायेगी 

काँटे ही जियें हैं,इस दिल के अंजुमन में 
अब गुलों की कोशिश 
शायद यूँ रास आयेगी 

तेरे क़ुर्बान मेरे इश्क़ की तमाम जूस्तजू 
इक इक ख़ुशी पे तेरी 
मेरी ख्वाईश तर जाएगी 




मैं, मैं ही हु 
या कोई और 
पता नहीं 
क्यों मेरा परिचय इतना धुँधला हो गया है 

या मेरा 
कभी कोई 
परिचय था ही नहीं
और भ्रम के धुँए को मैं आप समझती रही 

क्या मेरा नाम 
या मेरा काम 
या मेरे रिश्ते 
मुझे औरो से अलग स्थापित करते है 

या मैं भी 
सब की तरह 
देह में बसी 
खुदको खोजती एक अभिन्न ऊर्जा हु 

क्या मेरे शब्द 
मेरे अश्रू 
मेरी भावनाओं का 
कोई भी मोल है इस अनंत सफर में 

या ये बस मोह है 
जो व्यर्थ है 
और अंत में 
सब त्याग मैं भी लुप्त हो जाउंगी 

किसी अखंड अनंत विस्तार में 

Tuesday, July 1, 2014

मेरे पूछने पर की कितना प्यार है मुझसे 
किसी ने कहा था..... "नमक जितना"
उस बात को समझने में बरसो गए 

अब जब भी उस बात का स्मरण होता है 
याद आती है वो ज़िरह, वो मर्म उसमें 
ज्यो बिन नमक के बेस्वाद लगे हर भोज 
बेमानी होजाता उसका जीवन मुझ बिन 

आज नमक और उस बात का निरंतर ध्यान है 
उसके ध्येय और प्रयोजन दोनों का ज्ञान है 

अब इसे नियति का प्रपंच कहें 
या समय की कठोरता 
या अठखेलि तेरे मेरे सम्बन्धो कि....  
के स्मरणों की तपन ने मेरे मन को जला रखा है 
जो निरंतर तेरी प्रेम वर्षा को उत्सुक रहता है 
और तेरे ही प्रेम ने ह्रदय को समंदर बना दिया 
की लहू की हर बूँद में  बनके नमक तू रेहता है .... 
सच्चा प्रेम नहीं होता अब.…कौन ये कहता है ?
देख मेरी आँखों से.. तू बनके नमक ही बेहता है .... 

ये कैसी शून्यता है 
न भय न मोह 
मोक्ष तो किन्तु ये सरासर नहीं 
विचलित से परे  
हर्ष भी लापता 
मोक्ष जैसा किन्तु उजागर भी नहीं 
समतल हो चला है 
कारवां उम्मीदों का 
धीरे धीरे धैर्य भी अधीर हो जायेगा 
संपूर्ण संकल्पो से 
जो धर्म का वहन हो 
कदाचित तब बंधन मुक्त हो पायेगा 
अद्भुत है ईश की गाथा 
जो मनुष्य समझ नहीं पता 
शरणागति से ही, तार हो पायेगा