Wednesday, July 2, 2014

ठेहरा है एक अश्क़, बनके-लहू मेरी आँखों में 
बहा तो दूँ,
संग मगर, याद तेरी बह जाएगी 

ना पसंद जो है तुझे, बात वही इश्क़ की 
पलकें झुकीं तो 
तेरी मेरी कहानी दोहराएगी 

काफ़िले क़ुर्बत के, यु तो तुझसे कई मिले 
आरज़ू एक मगर 
मूमकिन न कभी हो पायेगी 

तेरी हँसी के सदके ,जानाँ ये जाँ भी कम है 
तेरी आँख में आँसू मैं दू 
ये बात बहोत सतायेगी 

काँटे ही जियें हैं,इस दिल के अंजुमन में 
अब गुलों की कोशिश 
शायद यूँ रास आयेगी 

तेरे क़ुर्बान मेरे इश्क़ की तमाम जूस्तजू 
इक इक ख़ुशी पे तेरी 
मेरी ख्वाईश तर जाएगी 




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