Thursday, October 31, 2013

ख़ोने से कौन खुश होता है
रोने से किसकी यारी
ग़म जो सुकूँ दे जाये
हमने वो ग़म देखा है 

इतने गिले थे उनसे
शायद ही कम होते
देखा मुस्कुराते उन्हें
शिकवों को कम देखा है 

रिश्तों कि उलझी गुथ्थी
लगा न सुलझ सकेगी
कोशिशों के बढ़ते सफ़र में
उनको भी रम देखा है

इतने भी नहीं वो पत्थर
जितना था हमने सोचा
नाज़ूक भीगे लम्हो में
उनको भी नम देखा है 

हम ही नहीं रुके थे 
जब राहें मुकर रही थी 
बिछड़ते हुए तब हमसे 
उनको भी थम देखा है 

Monday, October 7, 2013

आप्का गुस्सा नफरत बन जाए 
या मेरा प्यार अफ्सोस
बेहतर है मैं उस्से पहले 
सम्भालु अपने होंश 
 
कुछ रिश्ते होते है
साये कि तरह 
छोड़दो तो
रुक जाते है
थामो तो 
छुप जाते है 
 
यादें होना ज़रुरी है 
पर इस तरह नही 
कि यादों मै यु खो जाएँ 
आज का पल , कल हो जाए 
अफसोस मै ही बीतें पल 
हर आज एक झूटा कल 
और जब वो पहर आए 
अन्त्  समक्ष नज़र आए 
लगे कि कुछ किया नही 
किसी आज को जिया नही 
 
जिन्दगी कि ढल्ती शाम मै
गम न हो इस बात का 
शिक्वो मै बिताया क्यो किए 
वो लमहा तेरे साथ् का 
इसिलिए एक काम करे
यहि जिन्दगी कि शाम  करें 
आपकी मुस्कुराहट के सद्के 
मेरे अरमान यहि रम जाएंगे 
आप बढ़िये, कि मंजीले बहोत है अभि 
मेरे कदम अब यहीं थम जाएंगे 

 
 
आज क्यों इतना ,सुखा सा रुदन 
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही 
या थक गयी हो तुम, रो रो कर 
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही 

यु तो शामो - सेहर रहता था 
शिकन का चोला, इस  चेहरे पर 
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ 
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही 

कहने को तो, बातें कितनी थी 
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती 
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का 
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही 

इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे 
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर 
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं 
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही 

यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे 
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं 
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में 
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही 

ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती 
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है 
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये 
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही 
इतनी जिराःह हुई 
करने को बातें न रही 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे और बात करें 

थक गयी है आंखें 
सर में मृदंग हो रहा 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनको और याद करें 

जब खुद का ही कसूर हो 
ज़बा को अलफ़ाज़ नहीं मिलते 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे ही फ़रियाद करें 

तबाही भी खूब मची 
जो रहा कुछ जीने में 
फिर भी जिद है दिल की 
उन संग ही बर्बाद करें 

अब वक़्त रहा न ऐसा 
मिलने से कोई हल निकले 
फिर भी ज़िद है दिलकी 
उनसे और मुलाकात करें 

रहा न दिल में उनके 
कतरा भी प्यार का बाकी 
फिर भी ज़िद है दिल की 
प्यार उन्ही के साथ करें 

कैसा इश्क, ये कैसी उल्फत 
जीने न दे, मरने न दे 
कर कुछ ज़िद्दी दिल अब ऐसा 
उनसे खुदको आज़ाद करें 
याद करते करते 
उस मोड़ पे आ गए 
प्यार का तो पता नहीं 
पर खुद को भूल गए 

उल्फत में रहे, की 
ऐसी गफ़लत में रहे 
उसके मन का पता नहीं 
हम खुद को भूल गए 

कोई समझ रही न सोच 
कुछ दीवानगी सी है 
चले थे उसको भूलने 
पर खुद को भूल गए