Wednesday, August 27, 2014

बेख़ुदी में 'जाना' तुम, कमाल करते हो
ख़ामोश रहकर भी, हमसे, सवाल करते हो

कुछ अल्फाज़ों से, अदा करते
कुछ इशारों में, बयाँ करते
तब देते हम भी, जवाब क़ोई
तुम्हे तोहफ़ा, लाज़वाब कोई

ऐसे रूठे रहने से, तक़दीर नहीं बनती
हँसी बिना ख़ूबसूरत, तस्वीर नहीं बनती
तुम तो मेरे दिल के, सबसें करीब रहते हो
फिर भी 'जाना', बेरूख़ी क्यूँ, बातें कहते हो

चलो, भूलो,जो हुआ, दिल अपना साफ़ करो
हम भी तुम्हारे अपने है, अब तो हमें माफ़ करो
क्या उम्र भर यूही मुँह, फुलाये रखोगे
दिल में हमसे नफररत, बनाये रखोगे 

क्या नींद आती है तुम्हे, नाराज़ रहकर
क्या सुकूँ मिलता है, कड़वी बात कहकर
क्या कभी दिल तुम्हारा, तड़पता ही नहीं
बात करने के लिए, कभी तरसता ही नहीं

क्या सच में तुम अब इतने, बेपरवाह हो गए
या उम्र दराज़ के लिए, हमसे ख़फ़ा हो गए 
एकबार मिली ये ज़िन्दगी, ऐसे न इसे बर्बाद करो 
प्यार न सही, नफ़रत की, क़ैद से हमें आज़ाद करो 

ख़ामोश रहकर भी हमसे , यु न तुम सवाल करो 
जो भी है दिल में तुम्हारा, एक बार तो 'जाना' बात करो 

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