Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Saturday, June 6, 2015
उस किताब मे कितने अल्फ़ाज़ मिले इस काग़ज़ पे मगर कोई निशाँ ही नहीं अब जब की नज़र आने लगीं मंज़िले तो राहों को मिलती कोई दिशा ही नहीं
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