Saturday, September 14, 2013

थक गयी हु आपके पीछे आते आते 
थक गयी हुई सर अपना यु झुकाते 
थक गयी हु खुद को यु रात भर जगाके 
थक गयी हु आपको यु कबसे मनाते 
थक चुकी, बिखर चुकी, टूट चुकी हु मैं 
खुदसे ,आपसे,सबसे रूठ चुकी हु मैं 


मन भर गया है मेरा,मुझे रोना है बहोत 
किसी के काँधे रख सर, मुझे रोना है बहोत 
सालो से सोई नहीं,मुझे सोना है बहोत 
कोई रख दो सर पे हाथ,मुझे सोना है बहोत 
किसी के गले लगकर, मुझे रोना है बहोत 
गोदी मैं रख सर , मुझे सोना है बहोत 

खो जाना है भीड़ मैं 
मैं दिखना नहीं चाहती 
आपको ढूँढना नहीं चाहती 
आपको सुनना नहीं चाहती 
कुछ नहीं चाहिए मुझे 
बिलकुल नहीं चाहिए 
आपकी नफरत आपकी याद
मुझे कुछ नहीं चाहिए 

क्या है मेरी गलती 
की प्यार कर लिया 
रखो अपना प्यार 
मुझे वो भी नहीं चाहिए 
कुछ नहीं चाहिए 
मुझे आप भी नहीं चाहिए 
आज नहीं अभी नहीं 
आप कभी नहीं चाहिए 

 

Friday, September 13, 2013

सुना है सुबाह के ख्व़ाब,
झूठ नहीं बोलते 
दो अगर इज़ाज़त 
तुम्हे मांगलें 

 

लोगो के सवालों को,
नज़रन्दाज़ किया तो क्या
आँखें ऐसी बद्तमीज़ है
दिल का हाल बता देती है

मैं चाहू न चाहू
मेरे चाहने का क्या
भूलने की हर एक कोशिश
और यादें जगा देती है


Thursday, September 12, 2013

जो होती इतनी समझ 
तो क्यू जाने देते 
क्यों अपने ही हाथो 
मोल ये ग़म लेते 
 

Monday, September 9, 2013

न हूनर से, न होंश से 
न प्यार से, न जोश से 
उनसे उनकी बात कहें ,इतना होंसलों में दम नहीं 

हम चुप ही रहें,कुछ न कहें 
वो जैसे खुश, वैसे ही रहे 
बशर्ते इतना इल्म हो, की प्यार हुआ है कम नहीं 



 
बीमार-ऐ-मोहब्बत, अब ये मरीज़ कौन है 
आईने में कुछ अपनी सी तस्वीर दिखती है 
अश्कों से भीगी आंखें,मोहब्बत कमाल है 
मुस्कुराता था चेहरा, उफ़ ये क्या हाल है 




 
ज़िक्र में वो 
ज़हन में वो 
दुआ में न कैसे नाम आये 

संग रहके न कोई 
सुकूँ दे सके 
दूर जाये,अगर उन्हें आराम आये 

 

Sunday, September 8, 2013

इल्म था उसे भी
हम रास्ता न छोड़ेंगे 
आँखें मूंद हमारी 
जाने वो किधर गया 

न कदमो के निशाँ 
न बातों के गवाह 
साँसों को मेहका 
हवाओं में बिखर गया 

Friday, September 6, 2013

हद्द हो गयी यार 
क्या इसे कहतें हैं प्यार 
 दीवानगी ,सरासर बेवकूफी है 
जाग मेरे अंतर, ये खुद्खुषी है


कभी कभी यु लगता है 
हद्द है बेशर्मी की 
अपनी नज़रों में खुदको बहोत छोटा पातें हैं 
क्यों, आखिर क्यों, हम उसके पीछे जातें हैं 

उलझन और उलझाती है 
उसकी आहट जो आती है 
छोड़ सारी लाज-शर्म,फिर नहीं रुक पाते हैं 
बेशर्म ये हैं कदम, क्यों पीछे चले जाते हैं 
  
बातें खुद को दोहरातीं हैं 
मन चिड़िया लौट आती है 

टूटे तिनके साथ लिए 
फिर भी झूटी आस लिए 

कल सुबह कुछ लाएगी 
उम्मीद न तोड़ी जाएगी 

शायद उसको हँसता देखे 
वो भी ख़ुशी से रस्ता देखे 

पागल है,'मन' पागल ही रहेगा 
 प्रेम पीड़ा को, हँस के सहेगा 

न कहे बेशरम तो, क्या कहें इसे 
छोटी सी बात, न समझ आये जिसे 

कुछ बातें बिगड़ती हैं, खुदके ही हाथ 
कुछ चीज़ें चलती हैं, तकदीर के साथ 

बाकी तो खेल है 'मोह' ने बिछाये 
तुझसे बढ़के भी हैं 'इश्क' के सताए 

अब आँखों से पट्टी उतारो ज़रा 
देखो, सितारों से नभ है भरा 

हम ये नहीं कहते, ऐ व्याकुल 'मन' मेरे 
की याद न करो, तुम प्यार न करो 
खूब याद करो, जी भर के प्यार करो 
हाँ मगर, किसीका इंतज़ार न करो 

खुदको इस तरह बेशरम न कहाओ
अब और उसके पीछे, पीछे न जाओ
इश्क को इश्क ही रहने दो
जीते जी सज़ा न बनाओ

न करो ऐसे काम की 
खुदसे नज़र न मिला पाओ 
इश्क को इश्क ही रहने दो-'ए मन' 
दर्दे दिल की वजह न बनाओ 
किस कर्म के हिसाब बाकि रहे 
किस जन्म के लेन देन पुरे न हुए 
ये तेरा ये मेरा खुदा  जाने 

मुझे बस इतनी समझ है अभी 
तुझे भूल जाना इतना आसाँ नहीं 
हाँ मगर कोशिशे -थकी नहीं 

पता नहीं आगे क्या होनेवाला है 
दिल या दिमाग रोने वाला है 
हा मगर कुछ ज़रूर खोने वाला है 


 
तंग रिश्ते भी उनसे
मोहब्बत है जिनसे 
करे दिल बेचारा तो 
'उफ़' क्या करे 

बहोत कुछ है कहना 
मगर चुप भी रहना 
न ढाये क़हर 'अश्क़' तो  
'उफ़' क्या करे