Thursday, December 23, 2010

चाँद से होके नाराज़, एक तारा टूट गिरा
और मैंने सोचा आज,
कोई ख्वाइश पूरी होगी....
आँखें बंद किये, मांग लिया कुछ ऐसा
देखे कैसे खुदा की,
आज़माइश पूरी होगी.....


तारा हों गया ग़ुम, देके एक चिंगारी
काली रात को
और उलझे ख्वाब को.....
बाकी रहा आसमाँ,उमीदों से भरा
कैसे सुकूँ आये
किसी जस्बात को......
 
होगी फिर सुबह, और फिर रात होगी
चाँद भी आएगा
और शायद तारे भी
पर वो एक तारा, जो टूटा मेरे लिए
क्या सच कर पायेगा
खाब वो प्यारे भी ......


हर रात ये देखूंगी में, तारो से सजी महफ़िल
और याद करुँगी उसको
जो था मेरा अपना....
शायद फिर कोई तारा, टूट के मुझसे कहदे
आया हु में करने
मुमकिन वो मुश्किल सपना......

Tuesday, December 7, 2010

इतना खूबसूरत- कोई ख़त नहीं आया
बा-हर्फ़ सजा के भेजे, इलज़ाम रकीब ने..
खोया कुछ था हमने, इश्क-ए-गूमानी में,
बाकी लुटा हमसे, कमज़र्फ नसीब ने...

रेशम की रवाज़े, दिखावो के सलीके 
सुकून साँसों का भी, छीना ग़रीब से 
काबिल-ए-तव्वज्जू, सहूलियत के रिश्ते
दो लव्ज़ ना केह पाए, जाते हबीब से

ताकूब नहीं था मकसद, पीछे तुम्हारे आना
एक नज़र चाहिए थी, थोडा करीब से
ज़हानत तुम्हारी ऐसी, खंजर बिनो ज्यो कातिल
इश्क में डुबोके, मारा अजीब से

बा-हर्फ़ - inn alphabetical order
रकीब - rival
काबिल-ए-तव्वज्जू- noteworthy
हबीब- loved one
ताकूब - to follow
ज़हानत - talent

Monday, December 6, 2010

वफ़ा के इम्तेहान अभी, बाकी है कई
तूफाँ की एक लहर से ना,तू यु नज़र चुरा
छु के मुझको वादे ,जो किये थे तब कभी 
इस उम्र जो निभा दो, तो मानू में ज़रा 


गम का ये बिछौना, अब कैसे समेटा जाए 
सागर भी छोटा सा है, लगे है कम धरा
कुरेदे जा रहे हैं, ज़ख्म उँगलियों से
तू आये जब यहाँ तो मिले, हर ज़ख्म हरा


चुप रहना नहीं मुश्किल, मुश्किल है खुदसे कहना
सबर के घूँट पीले, काफिर वक़्त है बुरा
गुज़रा हुआ लम्हा, जो तुझसे मुझतक आया 
एहसास उस एक पल का, अब तक नहीं मरा