शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजाते है....
आओ तुम्हे हम बीती बातें याद दिलातें हैं....
आँखों के तरकश से कैसे तीर चलाये थे
होठों की चुप्पी से कैसे गीत सजाये थे
धड़कन की तेज़ी से कैसे पास आये थे
खयालो में इन सबको आओ फिर दोहरातें है....
देखें अबके मिलके दोनों कहाँ तक जातें हैं....
लम्हों की गुथ्ही से गुज़रे किस्से चुरातें हैं....
बंद मुठी से यादों की कुछ रेत गीरातें है ....
हाथों की नरमी ने जीद को मोम बना दिया
ख्वाबो की गर्मी ने मौसम और सजा दिया
साँसों ने साँसों को सारा हाल बता दिया
इस खेल की कोई बाज़ी आओ फिर लगातें है....
देखें इस बारी हम कितना जीत के जातें हैं ....
होसले के दम को थोडा और बढ़ातें हैं...
बातों को बातों से आगे लेकर जाते हैं....
जो ना किया था मिलकर दोनों कर ही जातें हैं....
धुल में घुलकर संग हवा के उड़ ही जातें हैं...
आओ तुम्हे हम बीतें बातें याद दिलातें हैं
थोडा सा हसतें है थोडा नीर बहातें है....
शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजातें है ....
Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को, दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है! हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए, इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Thursday, September 30, 2010
Saturday, September 25, 2010
Wednesday, September 22, 2010
गीले, शिकवे, शिकायतों के मौसम गुज़र गए
सहमती से आज कुछ समझौते सुधर गए
ना वो हमारे नाम की दुहाई देंगे
ना हम सरे-आम उनका नाम लेंगे
ना वो इस दामन को छु पाएंगे कभी
ना हम उस आँगन में अब जायेंगे कभी
वो अपनी मंजील को चाहे जैसे पायें
हम उनके रास्ते में कभी ना आयें
चाहे उनके खयालो में चूर रहेंगे
फिर भी उनकी यादों से दूर रहेंगे
उनके फैसलों से हमें, इख्तियार ना रहेगा
बेशक उन्हें भी हमसा इंतज़ार रहेगा
ज़िन्दगी में अब चाहे कोई मुकाम आये
शर्त है की उनका कभी नाम ना आये
उम्र भर उस चेहरे का दीदार ना करेंगे
वो भी हमसे पहले सा, अब प्यार ना करेंगे
कलमों के ये पन्ने ज़हन में उतर गए
वाकई हमारे प्यार के वो दिन गुज़र गए
सहमती से आज कुछ समझौते सुधर गए
ना वो हमारे नाम की दुहाई देंगे
ना हम सरे-आम उनका नाम लेंगे
ना वो इस दामन को छु पाएंगे कभी
ना हम उस आँगन में अब जायेंगे कभी
वो अपनी मंजील को चाहे जैसे पायें
हम उनके रास्ते में कभी ना आयें
चाहे उनके खयालो में चूर रहेंगे
फिर भी उनकी यादों से दूर रहेंगे
उनके फैसलों से हमें, इख्तियार ना रहेगा
बेशक उन्हें भी हमसा इंतज़ार रहेगा
ज़िन्दगी में अब चाहे कोई मुकाम आये
शर्त है की उनका कभी नाम ना आये
उम्र भर उस चेहरे का दीदार ना करेंगे
वो भी हमसे पहले सा, अब प्यार ना करेंगे
कलमों के ये पन्ने ज़हन में उतर गए
वाकई हमारे प्यार के वो दिन गुज़र गए
Monday, September 20, 2010
कुछ खुदा की खुराफात
कुछ तकदीर ऐसी जनाब
कितना भी अच्छा कीजिये
काम हों जाता खराब
कब तक बे गुनाही की कसमे खाते रहे
कब तक हर बात का यकीं दिलातें रहे
कब तक खुद ही खुदके अरमानो को कोसें
कब तक चुनते रहे हम बिखरे हुए ख्वाब
तारो का ये खेल है शायद
या मनहूसियत कुछ हम में है
क्युकी वोह तो येही कहतें है
हमने पहने है कई नकाब
सज़ा का डर तो कभी ना था
खुदको बेगुनाह समझते रहे
आज जब खुद उसने सुनाई है सज़ा
दर्द पर छाया है कुछ और ही शबाब
कुछ तकदीर ऐसी जनाब
कितना भी अच्छा कीजिये
काम हों जाता खराब
कब तक बे गुनाही की कसमे खाते रहे
कब तक हर बात का यकीं दिलातें रहे
कब तक खुद ही खुदके अरमानो को कोसें
कब तक चुनते रहे हम बिखरे हुए ख्वाब
तारो का ये खेल है शायद
या मनहूसियत कुछ हम में है
क्युकी वोह तो येही कहतें है
हमने पहने है कई नकाब
सज़ा का डर तो कभी ना था
खुदको बेगुनाह समझते रहे
आज जब खुद उसने सुनाई है सज़ा
दर्द पर छाया है कुछ और ही शबाब
काँटा निकाले या फूल संभाले
तुम ही बताओ की अब क्या करें
चमन तो बाघी हों ही चला है
दामन संभाले या सजदा करें
कदमो की आहट से पहचान लेना
छूने का मौका ना देगा कोई
महफ़िल में गैरों का ताता लगा है
लाज़मी है की हम भी पर्दा करें
राह में मिलेंगे इम्तिहाँ कई
भरम की लकीरें गुमराह करेंगी
सहूलियत से तो इश्क फरमाते है सभी
माने आपको, ऐसे में अकीदा करें
अकीदा - विश्वास
तुम ही बताओ की अब क्या करें
चमन तो बाघी हों ही चला है
दामन संभाले या सजदा करें
कदमो की आहट से पहचान लेना
छूने का मौका ना देगा कोई
महफ़िल में गैरों का ताता लगा है
लाज़मी है की हम भी पर्दा करें
राह में मिलेंगे इम्तिहाँ कई
भरम की लकीरें गुमराह करेंगी
सहूलियत से तो इश्क फरमाते है सभी
माने आपको, ऐसे में अकीदा करें
अकीदा - विश्वास
Sunday, September 19, 2010
आज फिर कुछ रिश्ते देखो, छुट गए मेरे हाथों से
लूट गया ले जाना वाला, सपने मेरी रातों से
चोरी हुई मेरी मर्ज़ी से
हाथ छोड़ा मुझे पूछ कर
लेकर मेरी ही इजाज़त
चला गया वोह रूठ कर
ये भी कहा था उसने मुझसे, कहते कहते बातों में
आँख में आंसू कभी ना लाना, रोकर मेरी यादों में
इतना कहकर चल दिया वो
रुका नहीं उन राहों में
कहनो को मुझे छोड़ गया पर
ले गया अपनी बाँहों में
प्रेम के सबब सिखा गया वो, चंद ही मुलाकातों में
उम्र भर की याद दे गया, प्यार की सौगातों में
लूट गया ले जाना वाला, सपने मेरी रातों से
चोरी हुई मेरी मर्ज़ी से
हाथ छोड़ा मुझे पूछ कर
लेकर मेरी ही इजाज़त
चला गया वोह रूठ कर
ये भी कहा था उसने मुझसे, कहते कहते बातों में
आँख में आंसू कभी ना लाना, रोकर मेरी यादों में
इतना कहकर चल दिया वो
रुका नहीं उन राहों में
कहनो को मुझे छोड़ गया पर
ले गया अपनी बाँहों में
प्रेम के सबब सिखा गया वो, चंद ही मुलाकातों में
उम्र भर की याद दे गया, प्यार की सौगातों में
Saturday, September 18, 2010
एक सुबह तुम्हारे साथ हों
एक शाम तुम्हारे साथ हों
एक दिन तो ऐसा गुज़रे मेरा
एक रात तुम्हारे साथ हों
तुम बैठी रहो मेरे सामने
आँखों में आंखें डाले हुए
साँसे तुम्हारी सुनाई दे
कभी तुम इतनी पास हों
मेरे लिए हों हंसी तुम्हारी
आंसू हों तो मेरे लिए
संग मेरे दुःख सुख में रहो
कभी इतनी आज़ाद हों
कहीं और ना जाना हों तुम्हे
मुझसे ही मिलने आओ तुम
फिक्र ना हों किसी और की
ऐसी कोई मुलाक़ात हों
प्यार तुम्हारा बाटू ना कभी
सिर्फ मुझसे ही प्यार करो
जाँ देदु एक हसी पे तुम्हारी
ऐसी कभी कोई बात हों
जाने वो मुमकीन कब होंगी
ख्वाइश जो तुम्हारे साथ हों
हर पल तुम मेरे साथ रहो
ऐसे भी कभी दिन रात हों
एक शाम तुम्हारे साथ हों
एक दिन तो ऐसा गुज़रे मेरा
एक रात तुम्हारे साथ हों
तुम बैठी रहो मेरे सामने
आँखों में आंखें डाले हुए
साँसे तुम्हारी सुनाई दे
कभी तुम इतनी पास हों
मेरे लिए हों हंसी तुम्हारी
आंसू हों तो मेरे लिए
संग मेरे दुःख सुख में रहो
कभी इतनी आज़ाद हों
कहीं और ना जाना हों तुम्हे
मुझसे ही मिलने आओ तुम
फिक्र ना हों किसी और की
ऐसी कोई मुलाक़ात हों
प्यार तुम्हारा बाटू ना कभी
सिर्फ मुझसे ही प्यार करो
जाँ देदु एक हसी पे तुम्हारी
ऐसी कभी कोई बात हों
जाने वो मुमकीन कब होंगी
ख्वाइश जो तुम्हारे साथ हों
हर पल तुम मेरे साथ रहो
ऐसे भी कभी दिन रात हों
Thursday, September 16, 2010
ख्वाहिशें तो बहोत सी है
ख्वाहिशो का क्या करें
मृगतृष्णा सी होती हैं
प्यास बढाकर खो जाएँ
छोड़ो इनका तोल मोल
रहने दो गलियारों में
इनको पाने की कोशिश में
और क्या जाने खो जाए
कितनो का कोई मोल नहीं
कई बहोत अनमोल हैं
पूरी ना होने पर लेकिन
सारी एक सी हों जाएं
ना चलना इनके नक़्शे कदम
राहें भूलभुलैया हैं
दीवानां तो कर देंगी
ना जाने और क्या हों जाएँ
ख्वाहिशो का क्या करें
मृगतृष्णा सी होती हैं
प्यास बढाकर खो जाएँ
छोड़ो इनका तोल मोल
रहने दो गलियारों में
इनको पाने की कोशिश में
और क्या जाने खो जाए
कितनो का कोई मोल नहीं
कई बहोत अनमोल हैं
पूरी ना होने पर लेकिन
सारी एक सी हों जाएं
ना चलना इनके नक़्शे कदम
राहें भूलभुलैया हैं
दीवानां तो कर देंगी
ना जाने और क्या हों जाएँ
Wednesday, September 15, 2010
Thursday, September 9, 2010
Friday, September 3, 2010
Thursday, September 2, 2010
तुम रचाओ रास जहा
हम दौड़े चले आएंगे
राधा बनके कान्हा तेरे
प्यार में खो जायेंगे
बांसुरी की ले पैर थिरकते
कदमो को घायल कर देंगे
जो ना पुकारो नाम हमारा
सुध बुध ही खो जायेंगे
रास रचेंगे साथ तुम्हारे
झूमेंगे काले पहरों हम
खुसी जो तुमसे ही मिलती है
खुसी में ही रो जायेंगे
कान्हा मेरे साथ चलो तुम
प्रेम के सब रंग फीके है
बाँध लो प्रीत की लडियो से फिर
फिर हम एक हों जायेंगे
हम दौड़े चले आएंगे
राधा बनके कान्हा तेरे
प्यार में खो जायेंगे
बांसुरी की ले पैर थिरकते
कदमो को घायल कर देंगे
जो ना पुकारो नाम हमारा
सुध बुध ही खो जायेंगे
रास रचेंगे साथ तुम्हारे
झूमेंगे काले पहरों हम
खुसी जो तुमसे ही मिलती है
खुसी में ही रो जायेंगे
कान्हा मेरे साथ चलो तुम
प्रेम के सब रंग फीके है
बाँध लो प्रीत की लडियो से फिर
फिर हम एक हों जायेंगे
Wednesday, September 1, 2010
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