Thursday, September 30, 2010

शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजाते है....
आओ तुम्हे हम बीती बातें याद दिलातें हैं....

आँखों के तरकश से कैसे तीर चलाये थे
होठों की चुप्पी से कैसे गीत सजाये थे
धड़कन की तेज़ी से कैसे पास आये थे
खयालो में इन सबको आओ फिर दोहरातें है....
देखें अबके मिलके  दोनों कहाँ तक जातें हैं....

लम्हों की गुथ्ही से गुज़रे किस्से चुरातें हैं....
बंद मुठी से यादों की कुछ रेत गीरातें है ....

हाथों की नरमी ने जीद को मोम बना दिया
ख्वाबो की गर्मी ने मौसम और सजा दिया
साँसों ने साँसों को सारा हाल बता दिया
इस खेल की कोई बाज़ी आओ फिर लगातें है....
देखें इस बारी हम कितना  जीत के जातें हैं .... 

होसले के दम को थोडा और बढ़ातें हैं...
बातों को बातों से आगे लेकर जाते हैं....
जो ना किया था मिलकर दोनों  कर ही जातें हैं....
धुल में घुलकर संग हवा के उड़ ही जातें हैं...
आओ तुम्हे हम बीतें बातें याद दिलातें हैं
थोडा सा हसतें  है थोडा नीर बहातें है....
शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजातें है ....

Saturday, September 25, 2010

खयालो के देश में दंगा मच गया
ख्वाबो के शहर में तबाही हों गयी
ग़ालिब ने अपने ग़म को शब्दों में क्या रखा
ग़ज़ल की दुनिया में वाह-वाही हों गयी

Wednesday, September 22, 2010

गीले, शिकवे, शिकायतों के मौसम गुज़र गए
सहमती  से आज कुछ  समझौते सुधर  गए
                       ना वो हमारे नाम की दुहाई देंगे
                      ना हम सरे-आम उनका नाम लेंगे    
           ना वो  इस दामन को छु पाएंगे कभी
           ना हम उस आँगन में अब जायेंगे कभी
                       वो अपनी मंजील को चाहे जैसे पायें
                       हम उनके रास्ते में कभी ना आयें
          चाहे उनके खयालो  में चूर रहेंगे
          फिर भी उनकी यादों से दूर रहेंगे
                      उनके फैसलों से हमें, इख्तियार ना रहेगा
                     बेशक उन्हें भी हमसा इंतज़ार रहेगा
           ज़िन्दगी में अब चाहे कोई मुकाम आये
           शर्त है की उनका कभी नाम ना आये
                      उम्र भर उस चेहरे का दीदार ना करेंगे
                      वो भी हमसे पहले सा, अब प्यार ना करेंगे
कलमों  के ये पन्ने ज़हन में उतर गए
वाकई हमारे प्यार के वो दिन गुज़र गए

Monday, September 20, 2010

कुछ खुदा की खुराफात
कुछ तकदीर ऐसी जनाब
कितना भी अच्छा कीजिये
काम हों जाता खराब
       कब तक बे गुनाही की कसमे खाते रहे
       कब तक हर बात का यकीं दिलातें रहे
       कब तक खुद ही खुदके अरमानो को कोसें
       कब तक चुनते रहे हम बिखरे हुए ख्वाब
तारो का ये खेल है शायद
या मनहूसियत कुछ हम में है
क्युकी वोह तो येही कहतें है
हमने पहने है कई नकाब
        सज़ा का डर तो कभी ना था
        खुदको बेगुनाह समझते रहे
        आज जब खुद उसने सुनाई है सज़ा
        दर्द पर छाया  है कुछ और ही शबाब 
काँटा निकाले या फूल संभाले
तुम ही बताओ की अब  क्या करें
चमन तो बाघी हों ही चला है
दामन संभाले या सजदा करें


कदमो की आहट से पहचान लेना
छूने का मौका ना देगा कोई
महफ़िल में गैरों का ताता लगा है
लाज़मी है की हम भी पर्दा करें


राह में मिलेंगे इम्तिहाँ कई
भरम की लकीरें गुमराह करेंगी
सहूलियत से तो इश्क फरमाते है सभी
माने आपको, ऐसे में अकीदा करें

अकीदा - विश्वास

Sunday, September 19, 2010

आज फिर कुछ रिश्ते देखो, छुट गए मेरे हाथों से
लूट गया ले जाना वाला, सपने मेरी रातों से

चोरी हुई मेरी मर्ज़ी से
हाथ छोड़ा  मुझे पूछ कर
लेकर मेरी ही इजाज़त
चला गया वोह रूठ कर

ये  भी कहा था उसने मुझसे, कहते कहते बातों में
आँख में आंसू कभी ना लाना, रोकर मेरी यादों में

इतना कहकर चल दिया वो
रुका नहीं उन राहों में
कहनो को मुझे छोड़ गया पर
ले गया अपनी बाँहों में

प्रेम के सबब सिखा गया वो, चंद ही मुलाकातों में
उम्र भर की याद दे गया, प्यार की सौगातों में

Saturday, September 18, 2010

एक सुबह तुम्हारे साथ हों
एक शाम तुम्हारे साथ हों
एक दिन तो ऐसा गुज़रे मेरा
एक रात तुम्हारे साथ हों

तुम बैठी रहो मेरे सामने
आँखों में आंखें डाले हुए
साँसे तुम्हारी सुनाई दे
कभी तुम इतनी पास हों

मेरे लिए हों  हंसी  तुम्हारी
आंसू हों तो मेरे लिए
संग मेरे दुःख सुख में रहो
कभी इतनी आज़ाद हों

कहीं और ना जाना हों तुम्हे
मुझसे ही मिलने आओ तुम
फिक्र ना हों किसी और की
ऐसी कोई मुलाक़ात हों

प्यार तुम्हारा बाटू ना कभी
सिर्फ मुझसे ही प्यार करो
जाँ देदु एक हसी पे तुम्हारी
ऐसी कभी कोई बात हों

जाने वो मुमकीन कब होंगी
ख्वाइश जो तुम्हारे साथ हों
हर पल तुम मेरे साथ रहो
ऐसे भी कभी दिन रात हों

Thursday, September 16, 2010

             ख्वाहिशें तो बहोत सी है
ख्वाहिशो का क्या करें
मृगतृष्णा सी होती हैं
प्यास बढाकर खो जाएँ

             छोड़ो इनका तोल मोल
रहने दो गलियारों में
इनको पाने की कोशिश में
और क्या जाने खो जाए

              कितनो का कोई मोल नहीं
कई बहोत अनमोल हैं
पूरी ना होने पर लेकिन
सारी एक सी हों जाएं

               ना चलना इनके नक़्शे कदम
राहें भूलभुलैया हैं
दीवानां तो कर देंगी
ना जाने और क्या हों जाएँ

Wednesday, September 15, 2010

साँसे तो रोज़ ही लेते है मगर
आज हवा में कोई और बात है
शामिल है तू भी इस शहर में शायद
तेरी साँसों की खुसबू का एहसास है

Thursday, September 9, 2010

कुछ लम्हों के लिए ही मगर
आप आये तो सही,
ये बात और है की लम्हे बिखर गए

कुछ बीतें शर्म की दीवार हटाने में
बाकी बचे लम्हे,
शिकायतों में गुजर गए

Friday, September 3, 2010

रुकमणि को जोड़ा रिश्ते ने
राधा से जुड़ गए कान्हा खुद
प्रेम का बंधन जुड़ गया जब तो
क्या करनी है फिर सुध बुध
ज़मीन-दोस्त हुए सब ख्वाब
रात में जो भूचाल आया
तेरी नियत क्या बिगड़ी ज़रा
कलयुग पर भी काल आया

Thursday, September 2, 2010

तुम रचाओ रास जहा
हम दौड़े चले आएंगे
राधा बनके कान्हा तेरे 
प्यार में खो जायेंगे


बांसुरी की ले पैर थिरकते
कदमो को घायल कर देंगे
जो ना पुकारो नाम हमारा
सुध बुध ही खो जायेंगे


रास रचेंगे साथ तुम्हारे
झूमेंगे काले पहरों हम
खुसी जो तुमसे ही मिलती है
खुसी में ही रो जायेंगे


कान्हा मेरे साथ चलो तुम
प्रेम के सब रंग फीके है
बाँध लो प्रीत की लडियो से फिर
फिर हम एक हों जायेंगे

Wednesday, September 1, 2010

लम्हों की सिलवटो को हाथों से ना सुलझाओ
रेशम सी नजाकत है, कुछ और ना उलझ जाए
       कतरा भी कुरेदोगे, कहानी गिर पड़ेगी
बेकार ही ये दुनिया कुछ और ना समझ जाए


होले से थामो इसको, ज़र्रा भी मचलता है
हलकी जो ली करवट , सब ना मुकर  जाए
         तार तार में बहती साँसों की सिहाई है
टूटे जो ये लम्हे, खुसबू ना बिखर जाए