Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Monday, September 14, 2015
मुट्ठी में रेत सा रिश्ता है तेरा मेरा जितना कसती जाती हूँ , उतना बिखरता जाता है !!