Wednesday, March 13, 2013

ओझल निशाँ और राहें मुश्किल 
आज कुछ ज्यादा ही रोया है दिल 
 

Tuesday, March 12, 2013

मनभावन को देख, यु मचल सा जाये रे
गद गद हो झूमे, क्यों हाथ न आये रे
किये सब जतन, जो केह्ते हैं ज्ञानी
दिल ने  कहाँ कब, किसीकी है मानी
चंचल हो पल पल, वो अरमाँ से खेले है 
हर पल सजाये, मिलन को वो मेले है 
नाहक ही, चाहत की चाहत संजोता है 
कहता नहीं है, मगर वो भी रोता है 
यादें ले आती हैं, संग उसके साए भी 
अक्सर हुआ है, ना आकर वो आये भी 
यु तो समझता है, पागल नहीं है दिल 
देख के उसको, बस बढ़ जाती है मुश्किल 
आलम दोहराता है, वो बिखरी कहानी 
आँखों से बहकर, आंसुओं की ज़बानी 
तूफ़ान के आने में , सैलाब के जाने में  
झूटे उस कच्चे से, मौन के बहाने में  
नीन्द से रुसवा, मेरी तनहा सी रातों में 
बे-इन्तेहां दर्द की, रूहानी सौगातों में 
आते तो हैं, वो ऐसे आ ही जातें हैं 
बिन छुए , वो एहसास जगा ही जाते है 
जो आयी न समझ में अब तक, वो बात बस इतनी है'
तनहाइयों की ये लड़ियाँ और अब कितनी हैं 
वो है पक्की मिटटी के, उनके हैं और सलीकें 
उनसे बेहतर जाने हम उनके तौर तरीके 
वो तो जाने कब छुटेंगे, उनके अभिमान से 
छुट न जाए साथ मेरा, मेरे दिल-ओ- जान से 
मन की माने, इस पल ही, उनके सीने से लग जाएँ 
रो ले उसकी बाँहों में , वो चाहे या न चाहे