उसकी बेशर्मियत की हद्द देखि
अपनी बेवकूफ़ियो का असर देखा !
विश्वास की धज्जियां उडी और जली
बय्मानी का धुआं दर बदर देखा !
आँख मूंदे चल दिए साथ उसके
धोके का जाल, न एक नज़र देखा !
सच के मुखोटे में झूट छूप गया
फरेबी ने प्यार से, इस कदर देखा !
उसकी आँखों से हर पहलु, चुना और बुना
नामुमकिन कुछ ख्वाबो का बसर देखा !
नियत मैं खोट का इल्म न हुआ,
जब तक न खुद पर टूटता, कहर देखा !
कहते रहे लोग, कभी सुना ही नहीं
प्यार मैं डूब जाने का हषर देखा !
शहद में डुबोके जो हर शब्द कहता था
उसकी बातो में अब उगलता ज़हर देखा !
इस बात की तस्सली देके, खुद को संभाला है
शुक्र है उसके साथ ना, हर पहर देखा !
मगर एक अफ़सोस आखरी दम तक रहेगा
आखिर क्यों उस कमज़र्फ का, शहर देखा !