Friday, July 10, 2015

टकरा जाता हूँ 
मैं ठोकर खाता हूँ 
लड़खड़ाता हूँ 
निराशाजनक 
मैं अक़्सर हार जाता हूँ 
तू क्यूँ मग़र 
ये बोझ उतारती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

कभी दुनियादारों से 
कभी रिश्तेदारों से 
कभी लख़्ते रूह से 
कभी अज़ीज़ यारो से 
मैं ही मात खा जाता हूँ 
तू क्यूँ मगर 
मात खाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

यूँ तो दम बहोत हैं 
मेरे ख़ूने जिग़र में 
शोले मगर अपनों के 
वो दाग़ दे जाते हैं 
मोम सा दर मैं पिघल जाता हूँ 
तू क्यूँ मगर 
सर झुकाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

मेरा दामन भरा है 
तेरी आज़माइशों से 
मेरी साँसे चलतीं हैं 
तेरी ही ख्वाइशों से 

कभी मेरे भी ख्वाबों की डोर थामे 
तू क्यूँ मगर 
क़दम बढ़ाती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

कश्मकश में जीता हूँ 
तिनका तिनका मरता हूँ 
सूरज की तीख़ी किरणों से 
ख़ुदको ज़िंदा करता हूँ 
जीने मरने के बीच कहीं खो जाता हूँ 
मौत क्यूँ मगर मुझे आज़माती नहीं 
क्यूँ ज़िन्दगी तू मुझसे 
कभी हारती नहीं 

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