Friday, August 30, 2013

कुछ रखते तुम ईमान 
कुछ अपनी वफ़ा ही होती 
न होते गिले दरमियाँ के 
यु मोहब्बत खफा न होती'

रहते बनके अगर गैर ही 
नजदीकियां करतीं न होंसले 
क़रीबी आयी और यूँ गयी 
दरमियाँ में ही रहे फ़ासले 

शोले उठे, कुछ लगी आग भी 
लुफ़्त उसका और भी आता, अगर 
चिंगारी कोई जो यहाँ हो गुज़रती  
दर्द उसकी आँखों में मिलता अगर 

बेरुखी पर भी लरज़ जातें अरमाँ 
जो होता वस्ल -ए -यार , तो क्या हाल होता 
रोंध देते शिकवे , जो आघोष में होते 
न होता कोई बैर ,वाकई कमाल होता 

दर्द दर्द ही रहता
प्यार प्यार ही रहता 
न मिलती दो शराब, नशा कुछ और ही होता 

हम हम ही रहते 
यार यार ही रहता 
न देते नए ख़िताब , मज़ा कुछ और ही होता 





 

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