Tuesday, July 3, 2012

शाम काजल फेला ही गयी
भूले भटके कुछ आ ही गयी
रुखी सी , बिखरी सी कडवी हवा
आँखों से पानी बहा ही गयी

मैंने अब दिए जलाये नहीं
उजाले कभी रास आये नहीं
मासूम से बादल आंधी ले आये
साथ अब कोई हमसाये नहीं

गरजे कहीं , बरसे कहीं
मन के फुहारे लर्ज़े कहीं
जस्बातों का खून हो ही गया
बिन बोले अल्फाज़ तरसे कहीं

क़त्ल तो हुआ था , मानों  या नहीं
ऐतबार को दफ्न कर दिया कहीं
सोचो तो नफरत भी कम पड़ती है
भूल जाओ तो प्यार कभी किया ही नहीं

ख्वाबो की नींदों से बेरूखी सही
कमसेकम वो ख्वाब आते नहीं
आँखों मैं आंखें वो डाल  कर कहें
दिल मैं अब और प्यार रहा ही नहीं