सहज भाव से बहला देना
आऊं कभी तो सहला देना
जिस भी जीवन में मिलो तुम
प्यार मुझे ही पेहला देना
आऊं कभी तो सहला देना
जिस भी जीवन में मिलो तुम
प्यार मुझे ही पेहला देना
Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को, दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है! हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए, इतना असर अपनी आहों में रखतें है!