प्यार करना भी उनकी मर्ज़ी थी
न करना भी उनका ख़याल
हम तो बस उन हाथों की
कठपूतली ही रहें
नफ़रत भी यूँ करते हैं वो
कोई एहसान हम पर जैसे
कुछ कहके उनकी शान में और
गुस्ताख़ी क्या करें
न करना भी उनका ख़याल
हम तो बस उन हाथों की
कठपूतली ही रहें
नफ़रत भी यूँ करते हैं वो
कोई एहसान हम पर जैसे
कुछ कहके उनकी शान में और
गुस्ताख़ी क्या करें
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