Saturday, November 1, 2014

एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे
ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे

धुंदले कुछ ख्वाबों के साये
अक्सर मिलने आते हैँ
हम इस इन्तेज़ार में हैं
तुम कब मिलने आओगे

कुछ शौख़ आला तुम्हारे थे
कुछ हसीं नाज़ हमारे हैं
हम न रहेंगे तब 'जाना'
हम से ही जाने जोआगे

एक शायर का इश्क़ हो तुम
शब्दों में पिरोये जाओगे 
शेरों में तुम्हारा अक्ष होगा 
नज़्मों में नज़र तुम आओगे 

ग़ज़ल तुम्हें बाँहों में लेगी
जब जब याद आओगे
एक शायर का इश्क़ हो तुम
यु कैसे बख़्शे जाओगे







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