Thursday, July 7, 2011

रूख़ करो जिस ओर, हवाएं रेशम हो जाएँ 
कदमो के नीचे की मिटटी, मखमल बन जाएँ

खुशबू से यु महक उठे, गूंचे अरमानो के
गुल ख़्वाबो के सजा के लाये, लश्कर पैमानों के

कुबूल-सूरत वो हम-पाया, जिसने अरमानो को जोड़ा
सिफ़र सा धूल में खो जाए, जिसने कसमो को तोडा

बानसीब वो सख्सियत, जो हमराह बन चले हैं 
खुदा नवाज़े नसीब से, जो हमसे इतने भले हैं

न होना मुफ़ारकित  उनसे, न हो कभी ग़म का सामना
कुर्बत रहे उस सरोश से, हर पल दामन को थामना

असास ऐत्बार का हो, रहे ये मिलन अज़ल तलक
जो खुशियाँ तुमने है चुनी, रहे मुकम्मिल जैसे फलक

आफ़ताब-आलंताब करे, रोशन तुम्हारा आँगन हो
जो चाहो वो इतना आये, लद लद सारा दामन हो


पास-आब ये ख़याल आया, अब नाम तुम्हारा ले न कभी
बद-रफ़्तार गुज़र जाए, गुज़रे लम्हों के किस्से सभी

क़र्ब न इतना हावी हो, की हम फिर से कुछ कह जाए
फासले हममे इतने रहे, बस फासले ही रह जाए

पाश-पाश हो गए घुमान-ओ' फ़ैल गए थे अफ़साने
तजवीज़-आखिर ये तय हुआ, रहे बनके अब अनजाने

यकीन जानिए, बे सबब है, ये जो आया गुब्हारे-दिल
वरना तो हर लव्ज़ में फ़िदायी, है लाखो दुआ शामिल

मौका खुशनसीब है, जुड़ जाए है दो ज़िन्दगी
तौफे मैं ज़िया  देते है, और लेलो हमसे तिश्नगी

गफ़र चाहेंगे , नामुनासिब ज़िख्र, अगर कोई हमने किया
ये भी देदो जाते हुए, जब रहते हुए है इतना दिया        

कुबूल-सूरत - beautiful
हम-पाया -similar
सिफ़र-zero
बानसीब -lucky
मुफ़ारकित-separation
कुर्बत-closeness
सरोश -an agel
असास-foundation
अज़ल-eternity
आफ़ताब-आलंताब  -the sun illuminating the world
पास-आब-consideration of someone's reputation
बद-रफ़्तार- at the speed of wind
क़र्ब-pain
पाश-पाश -broken into pieces
तजवीज़-आखिर- last decision
फ़िदायी - lover
ज़िया-light
तिश्नगी -longing
गफ़र-forgiveness

Tuesday, July 5, 2011

तेज़ हवा ने चेहरे को जुल्फों से ढक दिया
नम आँखों ने पलकों में तेरा चेहरा रख दिया

भूल गए थे पीना, एक अरसे से प्यास रही
ऐसे याद आया कोई, हर मय को चख लिया

दामन में ख्वाबो का पलना कैसे हो मुमकिन
पल्ला मेरे सर का लेके, किसीने रख लिया

सुना था चाहतो का कोई स्वाद नहीं होता
हमने तेरे इश्क में, हर जाएका है चख लिया

ख्याल जो हर बार मिला देते है मुझे तुझसे 
आज उन सबसे मैंने,  कह दिया  तख़ लिया 
 

Saturday, July 2, 2011

तुझको देकर भूल गए
कुछ ख्वाब बड़े नाजुक से थे
आज दामन खोल के देखा
यादों के सिवा और कुछ भी नहीं

हाथ मैं साँसे रख्खी  है,
पैरो मैं हवा को बाँध लिया
जीने पर अफ़सोस नहीं तो
मर जाने का ग़म भी नहीं  
 
दिल मैं समां जाये, वो याद कैसी
लव्जो मैं बयान हो तो फ़रियाद कैसी
जाते हुए छोडे न जो कदमो के निशाँ
उनसे हुई ऐसी मुलाकात कैसी