सुखी डाली को तीली लगा ही गए
हताश हो चुके थे ख़याल उसके
आग भी लगी
धूआँ भी उठा
तिनका तिनका अब रोज़
बिखरती है राख़
ढांचा डेह गया
अस्तित्व बह गया
भ्रमित मेरा अक्ष
यतीम रेह गया
भ्रम की तपन से
निखरती है खाक़
तिनका तिनका अब रोज़
बिखरती है राख़
हताश हो चुके थे ख़याल उसके
आग भी लगी
धूआँ भी उठा
तिनका तिनका अब रोज़
बिखरती है राख़
ढांचा डेह गया
अस्तित्व बह गया
भ्रमित मेरा अक्ष
यतीम रेह गया
भ्रम की तपन से
निखरती है खाक़
तिनका तिनका अब रोज़
बिखरती है राख़
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