Wednesday, December 11, 2013

क्यों समर्पण के लिए भी,
सार्थकता का
परिचय़ देना
आवश्यक है ?

क्या समर्पण,
स्वयं ही,
सार्थकता का
एक चिन्ह नहीं?

Sunday, December 8, 2013

बहरहाल अब देखना बाकि ये रहा...
 
प्रतिज्ञा का कितना शौर्ये है 
और मौन में कितना सामर्थ्य,
 
क्या वेदनाओं का प्रहार प्रबल है 
या धैर्य का अड़िग है प्रण ?
 
देखें समय के ताप में 
झुलसता है कौनसा पक्ष यहाँ ,

उल्लसित होना किसका भाग्य है 
और पराजित होना किसे मान्य !
 

Saturday, December 7, 2013

शायद दिल कि ज़िद्द है, 
ख्वाहिशों कि या कोई नादानी, 
या जागी है नयी चाह, तसव्वूर के धूएं से 

बेबाकी देखिये! 

निग़ाहें बेलज्जा..... मिजाज़ रूमैसा.... 
खड़े है किसी राह में 
यु आग़ोश -कुशा  

तसव्वूर - imagination
बेबाकी - boldness
रूमैसा - bunch of flowers
आग़ोश -कुशा - waiting to embrace someone with open arms
ये ग़ुनाह, कातिब-ए -मुक्क़दर का नहीं 
के नाम हमारा, आपके नाम से न जुड़ सका 
ये केहर तो अँजाम है, उस बेवफ़ाई का 
जो हमसे हमारे हौंसले, हरदम करते रहे 

कातिब-ए -मुक्क़दर- one who wrote the destiny, God

Friday, November 22, 2013

मेरा मन इतना विचलित य़ू भी तो है
तेरे मन कि अधिरता अभी कम न हुई
परस्पर होना सम्बन्धों कि आधीनता नहीं
न होकर भी कोई हर क्षण कितना अपना लगता है

आँखें मूंद लेने से अंधकार नहीं मिटता 
किन्तु निद्रा स्वप्न से स्नेह भेट कर जाती है 
यकायक रोम रोम उत्तेजित युही नहीं होता 
कोई मधुर स्मरण अधरों पे स्मित धर जाती है  

मन का आंगन सेज़ कभी, कभी कन्टक प्रतीत होता है 
भावनाओं का गमन किन्तु धैर्य नहीं खोता 
ऐसा नहीं कि आस्थाओं कि नींव निर्बल हो गयी 
बस जान लिया कि मन का चाहा सब नहीं होता 
 

Thursday, October 31, 2013

ख़ोने से कौन खुश होता है
रोने से किसकी यारी
ग़म जो सुकूँ दे जाये
हमने वो ग़म देखा है 

इतने गिले थे उनसे
शायद ही कम होते
देखा मुस्कुराते उन्हें
शिकवों को कम देखा है 

रिश्तों कि उलझी गुथ्थी
लगा न सुलझ सकेगी
कोशिशों के बढ़ते सफ़र में
उनको भी रम देखा है

इतने भी नहीं वो पत्थर
जितना था हमने सोचा
नाज़ूक भीगे लम्हो में
उनको भी नम देखा है 

हम ही नहीं रुके थे 
जब राहें मुकर रही थी 
बिछड़ते हुए तब हमसे 
उनको भी थम देखा है 

Monday, October 7, 2013

आप्का गुस्सा नफरत बन जाए 
या मेरा प्यार अफ्सोस
बेहतर है मैं उस्से पहले 
सम्भालु अपने होंश 
 
कुछ रिश्ते होते है
साये कि तरह 
छोड़दो तो
रुक जाते है
थामो तो 
छुप जाते है 
 
यादें होना ज़रुरी है 
पर इस तरह नही 
कि यादों मै यु खो जाएँ 
आज का पल , कल हो जाए 
अफसोस मै ही बीतें पल 
हर आज एक झूटा कल 
और जब वो पहर आए 
अन्त्  समक्ष नज़र आए 
लगे कि कुछ किया नही 
किसी आज को जिया नही 
 
जिन्दगी कि ढल्ती शाम मै
गम न हो इस बात का 
शिक्वो मै बिताया क्यो किए 
वो लमहा तेरे साथ् का 
इसिलिए एक काम करे
यहि जिन्दगी कि शाम  करें 
आपकी मुस्कुराहट के सद्के 
मेरे अरमान यहि रम जाएंगे 
आप बढ़िये, कि मंजीले बहोत है अभि 
मेरे कदम अब यहीं थम जाएंगे 

 
 
आज क्यों इतना ,सुखा सा रुदन 
क्या आंसुओं की कोई इज्ज़त न रही 
या थक गयी हो तुम, रो रो कर 
क्या रोने में अब,कोई लज़्ज़त न रही 

यु तो शामो - सेहर रहता था 
शिकन का चोला, इस  चेहरे पर 
क्या मिल गया, तुमको है सुकूँ 
या ग़मो से अब, कोई उल्फत न रही 

कहने को तो, बातें कितनी थी 
ज़िन्दगी भी शायद, कम पड़ती 
मिल गया क्या हल, हर मुश्किल का 
या कहने की अब, कोई ज़रूरत न रही 

इशारे भी उसके, थे सर आँखों पे 
गालियाँ भी उसकी, ली हथेली पर 
क्यों होंस्लोको तुम,और बढ़ाती नहीं 
या सेहने की अब, कोई तबियत न रही 

यु तो जताती थी बड़ा, हक़ उसके दिल पे 
कहती थी साथ, कभी छुटेगा नहीं 
क्या हो गया मशरूफ़, वो खुद के जहां में 
या दिलको तुम्हारे,कोई वसीहत न रही 

ये शाँत सी मुद्रा ठीक नहीं लगती 
हँसते रोते कहदो, जो दिल के ख्याल है 
क्या सारे गिले-शिकवे,अब ख़त्म हो गये 
या दिल में तुम्हारे, कोई मोहब्बत न रही 
इतनी जिराःह हुई 
करने को बातें न रही 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे और बात करें 

थक गयी है आंखें 
सर में मृदंग हो रहा 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनको और याद करें 

जब खुद का ही कसूर हो 
ज़बा को अलफ़ाज़ नहीं मिलते 
फिर भी ज़िद है दिल की 
उनसे ही फ़रियाद करें 

तबाही भी खूब मची 
जो रहा कुछ जीने में 
फिर भी जिद है दिल की 
उन संग ही बर्बाद करें 

अब वक़्त रहा न ऐसा 
मिलने से कोई हल निकले 
फिर भी ज़िद है दिलकी 
उनसे और मुलाकात करें 

रहा न दिल में उनके 
कतरा भी प्यार का बाकी 
फिर भी ज़िद है दिल की 
प्यार उन्ही के साथ करें 

कैसा इश्क, ये कैसी उल्फत 
जीने न दे, मरने न दे 
कर कुछ ज़िद्दी दिल अब ऐसा 
उनसे खुदको आज़ाद करें 
याद करते करते 
उस मोड़ पे आ गए 
प्यार का तो पता नहीं 
पर खुद को भूल गए 

उल्फत में रहे, की 
ऐसी गफ़लत में रहे 
उसके मन का पता नहीं 
हम खुद को भूल गए 

कोई समझ रही न सोच 
कुछ दीवानगी सी है 
चले थे उसको भूलने 
पर खुद को भूल गए 

 

Saturday, September 14, 2013

थक गयी हु आपके पीछे आते आते 
थक गयी हुई सर अपना यु झुकाते 
थक गयी हु खुद को यु रात भर जगाके 
थक गयी हु आपको यु कबसे मनाते 
थक चुकी, बिखर चुकी, टूट चुकी हु मैं 
खुदसे ,आपसे,सबसे रूठ चुकी हु मैं 


मन भर गया है मेरा,मुझे रोना है बहोत 
किसी के काँधे रख सर, मुझे रोना है बहोत 
सालो से सोई नहीं,मुझे सोना है बहोत 
कोई रख दो सर पे हाथ,मुझे सोना है बहोत 
किसी के गले लगकर, मुझे रोना है बहोत 
गोदी मैं रख सर , मुझे सोना है बहोत 

खो जाना है भीड़ मैं 
मैं दिखना नहीं चाहती 
आपको ढूँढना नहीं चाहती 
आपको सुनना नहीं चाहती 
कुछ नहीं चाहिए मुझे 
बिलकुल नहीं चाहिए 
आपकी नफरत आपकी याद
मुझे कुछ नहीं चाहिए 

क्या है मेरी गलती 
की प्यार कर लिया 
रखो अपना प्यार 
मुझे वो भी नहीं चाहिए 
कुछ नहीं चाहिए 
मुझे आप भी नहीं चाहिए 
आज नहीं अभी नहीं 
आप कभी नहीं चाहिए 

 

Friday, September 13, 2013

सुना है सुबाह के ख्व़ाब,
झूठ नहीं बोलते 
दो अगर इज़ाज़त 
तुम्हे मांगलें 

 

लोगो के सवालों को,
नज़रन्दाज़ किया तो क्या
आँखें ऐसी बद्तमीज़ है
दिल का हाल बता देती है

मैं चाहू न चाहू
मेरे चाहने का क्या
भूलने की हर एक कोशिश
और यादें जगा देती है


Thursday, September 12, 2013

जो होती इतनी समझ 
तो क्यू जाने देते 
क्यों अपने ही हाथो 
मोल ये ग़म लेते 
 

Monday, September 9, 2013

न हूनर से, न होंश से 
न प्यार से, न जोश से 
उनसे उनकी बात कहें ,इतना होंसलों में दम नहीं 

हम चुप ही रहें,कुछ न कहें 
वो जैसे खुश, वैसे ही रहे 
बशर्ते इतना इल्म हो, की प्यार हुआ है कम नहीं 



 
बीमार-ऐ-मोहब्बत, अब ये मरीज़ कौन है 
आईने में कुछ अपनी सी तस्वीर दिखती है 
अश्कों से भीगी आंखें,मोहब्बत कमाल है 
मुस्कुराता था चेहरा, उफ़ ये क्या हाल है 




 
ज़िक्र में वो 
ज़हन में वो 
दुआ में न कैसे नाम आये 

संग रहके न कोई 
सुकूँ दे सके 
दूर जाये,अगर उन्हें आराम आये 

 

Sunday, September 8, 2013

इल्म था उसे भी
हम रास्ता न छोड़ेंगे 
आँखें मूंद हमारी 
जाने वो किधर गया 

न कदमो के निशाँ 
न बातों के गवाह 
साँसों को मेहका 
हवाओं में बिखर गया 

Friday, September 6, 2013

हद्द हो गयी यार 
क्या इसे कहतें हैं प्यार 
 दीवानगी ,सरासर बेवकूफी है 
जाग मेरे अंतर, ये खुद्खुषी है


कभी कभी यु लगता है 
हद्द है बेशर्मी की 
अपनी नज़रों में खुदको बहोत छोटा पातें हैं 
क्यों, आखिर क्यों, हम उसके पीछे जातें हैं 

उलझन और उलझाती है 
उसकी आहट जो आती है 
छोड़ सारी लाज-शर्म,फिर नहीं रुक पाते हैं 
बेशर्म ये हैं कदम, क्यों पीछे चले जाते हैं 
  
बातें खुद को दोहरातीं हैं 
मन चिड़िया लौट आती है 

टूटे तिनके साथ लिए 
फिर भी झूटी आस लिए 

कल सुबह कुछ लाएगी 
उम्मीद न तोड़ी जाएगी 

शायद उसको हँसता देखे 
वो भी ख़ुशी से रस्ता देखे 

पागल है,'मन' पागल ही रहेगा 
 प्रेम पीड़ा को, हँस के सहेगा 

न कहे बेशरम तो, क्या कहें इसे 
छोटी सी बात, न समझ आये जिसे 

कुछ बातें बिगड़ती हैं, खुदके ही हाथ 
कुछ चीज़ें चलती हैं, तकदीर के साथ 

बाकी तो खेल है 'मोह' ने बिछाये 
तुझसे बढ़के भी हैं 'इश्क' के सताए 

अब आँखों से पट्टी उतारो ज़रा 
देखो, सितारों से नभ है भरा 

हम ये नहीं कहते, ऐ व्याकुल 'मन' मेरे 
की याद न करो, तुम प्यार न करो 
खूब याद करो, जी भर के प्यार करो 
हाँ मगर, किसीका इंतज़ार न करो 

खुदको इस तरह बेशरम न कहाओ
अब और उसके पीछे, पीछे न जाओ
इश्क को इश्क ही रहने दो
जीते जी सज़ा न बनाओ

न करो ऐसे काम की 
खुदसे नज़र न मिला पाओ 
इश्क को इश्क ही रहने दो-'ए मन' 
दर्दे दिल की वजह न बनाओ 
किस कर्म के हिसाब बाकि रहे 
किस जन्म के लेन देन पुरे न हुए 
ये तेरा ये मेरा खुदा  जाने 

मुझे बस इतनी समझ है अभी 
तुझे भूल जाना इतना आसाँ नहीं 
हाँ मगर कोशिशे -थकी नहीं 

पता नहीं आगे क्या होनेवाला है 
दिल या दिमाग रोने वाला है 
हा मगर कुछ ज़रूर खोने वाला है 


 
तंग रिश्ते भी उनसे
मोहब्बत है जिनसे 
करे दिल बेचारा तो 
'उफ़' क्या करे 

बहोत कुछ है कहना 
मगर चुप भी रहना 
न ढाये क़हर 'अश्क़' तो  
'उफ़' क्या करे 


 

Friday, August 30, 2013

कुछ रखते तुम ईमान 
कुछ अपनी वफ़ा ही होती 
न होते गिले दरमियाँ के 
यु मोहब्बत खफा न होती'

रहते बनके अगर गैर ही 
नजदीकियां करतीं न होंसले 
क़रीबी आयी और यूँ गयी 
दरमियाँ में ही रहे फ़ासले 

शोले उठे, कुछ लगी आग भी 
लुफ़्त उसका और भी आता, अगर 
चिंगारी कोई जो यहाँ हो गुज़रती  
दर्द उसकी आँखों में मिलता अगर 

बेरुखी पर भी लरज़ जातें अरमाँ 
जो होता वस्ल -ए -यार , तो क्या हाल होता 
रोंध देते शिकवे , जो आघोष में होते 
न होता कोई बैर ,वाकई कमाल होता 

दर्द दर्द ही रहता
प्यार प्यार ही रहता 
न मिलती दो शराब, नशा कुछ और ही होता 

हम हम ही रहते 
यार यार ही रहता 
न देते नए ख़िताब , मज़ा कुछ और ही होता 





 

Tuesday, August 27, 2013

उसकी फ़ुर्कत ने लिए इम्तेहान
इम्तेहान की कोई हद्द होगी

उम्मीदे-मर्ग इन्तेहाँ तक
इन्तेहाँ की कोई हद्द होगी

तासीर- ए - नज़र, वो दे जाये दर्द
उस दर्द की कोई हद्द होगी

जा-ओ-बेजा, और फ़र्ज़ में अटके
उस फ़र्ज़ की कोई हद्द होगी

तेरे हिज्र में, बरसे है आँखों से मोती
निर्मम बरसात की कोई हद्द होगी

मुद्दते गुज़री, तरसे है तेरे लिए
इस तड़प, तरस की कोई हद्द होगी




फुरकत - separation
उम्मीदे-मर्ग -wish to die
तासीर-ए -नज़र -impact of her eyes
जा-ओ-बेजा -appropriate-inappropriate
हिज्र - separation

Saturday, August 24, 2013

कई कोशिशे की,
            हसकर कहा अलविदा 
आँखों में  फिर भी नमी आ ही गयी 

टूट कर चाहा,
           दिल कम्बखत ने उसको 
प्यार में फिर भी कमी आ ही गयी 
 

Wednesday, August 21, 2013

कभी कभी ये लगता था,
की शायद, 
मैंने आपको पहचाना नहीं 

पर आज,जानकर दुःख हुआ 
की आपने,
मुझे जाना ही नहीं 

दिलसे अपना,
कभी माना ही नहीं……………….  


 

Tuesday, August 20, 2013

तेरी कुछ सौगातें छुट गयी मुझसे 
कुछ मगर अब भी, मेरे पास है 
न मिला तू, तेरे ही रंग रूप में 
जिंदा मुझमे, तेरे एहसास हैं 


तेरी ज़िद्द 
तेरा एहम 
तेरे झूठे वेहेंम 
तेरा गुस्सा 
तेरे तेवर 
तेरी बदमाशियाँ

तेरे खेल 
तेरी मस्ती
तेरी फिक्र 
तेरी चाहत 
तेरा प्यार औ 
तेरी अच्छाईया 

तेरा झूठ 
तेरा सच 
तेरी बात 
तेरे खाब
तू और 
तेरी खामोशियाँ 

तेरी नज़र 
तेरे बोल 
तेरा स्पर्श 
तेरे होंठ 
तेरे आघोष में 
मिली मदहोशियाँ 

ये सब और, बहोत कुछ ऐसा भी है 
बीतें पल से बढके, सच जैसा ही है'

बेजान और तोहफे कुछ ऐसे भी है 
जिद्दी तेरी ज़िद्द के, जैसे ही है 
कहते नहीं, बहोत कर जाते है 
तेरी यादों से मन मेरा भर जातें हैं 

युही नहीं कहते मुश्किल है प्यार 
और भी मुश्किल भुलाना है यार 

Saturday, August 17, 2013

क्षितिज पर, धरा पर तू 
बिन लकीर हथेली , हर दुआ में तू 
कहाँ नहीं, हर जगह तू 

ख्वाइश कसक, सीने में तेरे 
उमंगो की लहर, कुछ मुझमे भी हैं 
लगजा गले, कुछ तूफ़ान थमे 

फूलो से कुछ, रंग उधार 
तेरे सर पे तिलक, मेरे मत्थे गुलाल 
और बंध गए, रिश्ते कमाल 

होठों से होंठ , साँसे थमी 
तेरी साँसों से मैंने, कुछ सांस ली 
यु चलती रही, दो ज़िन्दगी  
 

Sunday, August 11, 2013

मेरे इख़्तियार में न था 
तेरी तकलीफों का हल 
मेरी मुश्किलें मगर… तेरे इशारों पे रही 
 
रुलाया खूब लेकिन,
ख़ुशी भी दी बहोत
किस माटी का तू बंदा…. कौन जाने ये सही 

कोई तीखा भरम था 
या मीठी हकीक़त 
सोचती हु ऐसे…तू था भी या नहीं 

गला भर आता है 
आंसू भी नहीं थमते 
जब लगता है की तु……. अब आयेगा नहीं 

मंद मंद मुस्काते 
आँखों से मार देना 
तुझसा कोई कातिल …. फिर मिला ही नहीं 

 

Wednesday, July 31, 2013

बारिश में भीगा है जिस्म मगर 
आँखों का पानी है, कहता कुछ और 
अभी बरसने है, बाकी कुछ सावन 
अभी यु सुखा, पड़ा मन का आंगन 

ठेहरी नहीं बूंदे, कोरी हथेली पर 
अभी ज़ुल्फ़ से पानी, छटना है बाकी 
अभी खुलके बरसा, नहीं कोई बादल 
अभी यादों से दिल का कटना है बाकी 

ज़मीं के कलेजे पे, पैरो से छब छब 
हाथों से बारिश का तन चूमलू 
उस ज़ालिम के जैसे, जो बरसे ये पानी 
बिसरे हुए लम्हों में,मैं फिर झुम्लू 

गुज़रती हें बूंदे, जब होकर के मुझसे 
लगता है जैसे, वो छुकर गया 
बहता है मुझमे, वोह बनकर लहू 
आदत मेरी वो, ये क्यों कर गया 

Saturday, July 27, 2013

तकदीर

या न थी मुक्कमिल,
           लकीरों में ख्वाहिशें 
या शायद रज़ामंद,
          न रहा वो ख़ुदा 

वर्ना तो कोशिशे,
          हमने भी लाख की,
तकदीर, के मिलकर भी 
          वो हो गया जुदा 
 

Wednesday, July 24, 2013

यु न दौड़ ज़िन्दगी

धीमी कर रफ़्तार ज़रा 
युही, न दौड़ ज़िन्दगी 
अभी तो करना, बाकि रहा 
काफी और ज़िन्दगी 

खुलके अभी तक जीया ही नहीं 
मर्जी से साँसों को लिया ही नहीं 
औरो के लिए ही, है दम भरा 
खुदके लिए है, बहोत कम करा 
होना है बाकि, अभी बेफ़िकर
बटोरने-ख्वाब, जो गए है बिखर 
            वक़्त की न ऐसे, लगा बंदिशे 
            न कर इस कदर, तू ज़ोर ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा 
            काफी और ज़िन्दगी

अभी तो बाकी निखरना रहा 
बा-तमन्ना और संवरना रहा 
ख्वाहिशों को होना है, कुछ मनचली 
अरमानो को अब तक, ज़बाँ न मिली 
पुराने ज़ख़्म है, अभी तक हरे 
शिकवो के कितने, ख़ज़ाने भरे 
              दे परवानगी, की सुलझाऊ इन्हें 
              जल्दबाज़ी मे, न मरोड़ ज़िंदगी 
              अभी तो करना बाकि रहा 
              काफी और ज़िन्दगी

अपनों से टूटी जो, कडिया न जोड़ी 
पागलपन की कोई, सीमा न तोड़ी 
मस्तियों की पिटारी, कही खो रखी 
सालों से दोस्तों की, डांट न चखी 
खेल कर खुद को, थकाया नहीं 
कुछ समय से खुदको, आज़माया नहीं 
              जी भर के करलू, मनमानिया 
              दे  इज़ाज़त, कुछ और ज़िन्दगी 
              अभी तो करना बाकि रहा
             काफी और ज़िन्दगी

जवानी को दामन में, छुपाये रखा 
अटखेलियो से भी, बचाए रखा 
सब कहते गए, हम करते गए 
मूँद आँखें, हर कदम, बढ़ते गए 
'हीर' बन हवाओं में उड़ना रह गया
मनचाहे 'रांझे' से जुड़ना रह गया 
             बन तितली, मैं फिरसे उडाने भरूँ
             बदल तरीके, कुछ तौर ज़िन्दगी 
             अभी तो करना बाकि रहा
             काफी और ज़िन्दगी

अभी उसको बाकी, बताना भी है 
शिक्वें और प्यार, जताना भी है 
कुछ नखरे, कुछ हाम़ी, दिल की बातें हैं बाकी 
कुछ खुली, कुछ छुपी, मुलाकातें हैं बाकी 
पूरी है करनी, कई फरमाइशें
बाकी है उसकी, आज़माइशें
            बाँहों मैं उसकी, सिमट जाएँ हम 
            लम्हों को ऐसे, कुछ जोड़ ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा
            काफी और ज़िन्दगी

उसके साथ, थामे हाथ, ढलती शाम   
कभी टेहेलना, कभी दो जाम 
उसके काँधे, रखकर सर, आंखें नम 
कभी रफ़्तार, कभी बस थम 
बाकी है उसे, अभी और सताना 
बाकी है उसे, अभी गले लगाना 
            लग जायें गले, जी भर के हम 
            कुछ देर अकेला, हमें छोड़ ज़िन्दगी 
            अभी तो करना बाकि रहा
            काफी और ज़िन्दगी

बैठ ऊँची ईमारत पर, हवां में पैर हिलाते हुए
ज़मीं पर लेटे हुए, नभ से नज़र मिलाते हुए 
समंदर की लहरों पर, साथ कदम बढ़ाते हुए 
देखना है संग उसके, खुदको मुस्कुराते हुए 
कुछ रात-ओ-दिन, कुछ शाम-ओ-सहर, ऐसे हो 
मेरे ख्वाब, मेरे ख्याल, मेरी चाहत जैसे हो 
              फिर चाहे आग़ोश में उसके, तोड्लू मैं दम 
              ले आ ऐसा अब कोई, मोड़ ज़िन्दगी 
              अभी तो करना बाकि रहा
              काफी और ज़िन्दगी

यु न खेल, आंख मिचोली 
न हाथ, छोड़ जिन्दगी 
ऐसे भी न तोड़ दिल ये 
न साथ, छोड़ ज़िन्दगी 
धीमी कर रफ़्तार ज़रा
यु न दौड़ ज़िन्दगी
अभी तो करना बाकि रहा
काफी और ज़िन्दगी

Friday, July 19, 2013

काश

झूठी  उसकी चाहत पर, इतराते रहे
सच होते एहसास 
तो क्या कर जाते हम ..........

उसकी बे-परवाही पर भी, प्यार आता है
प्यार कर लेता वो
तो मर ही जाते हम.............  

Thursday, July 18, 2013

किस्सा तेरी बातों का

नया सा कुछ नहीं 
फिर वही ले आये हैं 
बुरा न मानो जानेमन 
किस्सा तेरी बातों का 

शाम ढले तारो तले 
हलकी आँखें मूंदकर 
सो बार होठों से लिया 
स्पर्श तेरे हाथों का 

धडकनों पर कान धरे 
रूह से तेरी मिल लिए 
वो मिलन भी हिस्सा रहा 
तुझसे मिली सौगातों का 

ये क्या लिखकर लाये हो 
गिनती दिन दिन मिलने की 
क्या हिसाब कर पाए तुम 
तनहा रुदलती रातों का 

मुट्ठी मेरी खोल कर 
क्यों लकीरें ढूंढते हो 
रंग अभी उतरा नहीं 
प्यार की बरसातों का 

मत्थ्हे मेरे चढ़ गए 
जुगनू है बीतें कलके 
दिल मैं मेरे रोशन रखते 
दिया तेरे जस्बातों का 

जाना था, तू चला गया 
शायद यूँही होना था 
पर समय दोहराता रहा 
मर्म हसीं मुलाकातों का 

मुझसे जो ले जा सको 
'जाना' अबके ले जाना 
और नहीं थामा जाता 
समंदर तेरी यादों का 

मौका चाहे कोई हो 
चाहे कोई दस्तूर 
हर जगह ले आतें हैं 
किस्सा तेरी बातों का 
बुरा न मनो जानेमन 
बस किस्सा तेरी बातों का 

Monday, July 8, 2013

पहोंच से अपनी दूर है

हाथों से क्या पलटे जायें 
वक़्त ने जो फेकें पाशे 
कदमो से ही नाप ले आ 
वो मंजिल कितनी दूर है 

 किन आँखों में ख़ाब नहीं 
किसका दिल ख़ाली घड़ा 
कुछ दम भरके निकल गए 
जो बिखर गए, मजबूर है 

ख्वाहिशों की होड क्या 
बे-लगाम वो घोड़े है 
थमते तब, जब सांस रुके 
बेइन्ताहि सा फ़तुर है 

चिलम से बढ़कर चराग़ भी 
हल्ला मचा है सिने में 
ख्याल भी ऐसे आग लगा दे 
तपीश कुछ उसमे ज़रूर हैं 

नज़र ने लेकर दिल में रखा 
दिल का हाल बेहाल है
इसमें उसकी क्या खता 
नजरो का ही कसूर है 

बेपरवाही कडवी इतनी 
मिसरी भी मुहं में ज़ेहर लगे 
लबों से उसके पीतें है हम 
उसके रस में चूर है 

युही नहीं तारीफें होती 
कहतें हमें हसीन लोग 
छा जाता इन आँखों में  जो 
उसके स्पर्श का नूर है 

गद गद ख्वाइश हो उठती है 
सीने से उसके लग जाए 
खो भी देते खुदको उसमे 
पहोंच से अपनी दूर है 
 

Sunday, July 7, 2013

बातों मे निकली बात

बातों मे निकली बात
और एक बात आ गयी
अठरा बरस पुरानी
एक याद आ गयी
अभी तो जवाँ हुआ न था
और ये किस्सा हो गया
एक अन्जाना  चेहरा
दिल का हिस्सा हो गया
यु अचानक एक दिन
वो कहीं से आ गयी
न कोइ था भाया  इतना
वो जितनी भा गयी
साँठ मिनट के साथ में
ये कमाल हो गया
उसने देखा भी नहीं
मेरा बुरा हाल हो गया
जाते हुए वो अदब से
ऐसी उलझन दे गयी
सँवर के बिखर गया मैं
मानो जान ही ले गयी
होंसलो ने कदम बढ़ाये नहीं
कभी ज़िकर कर पाए नहीं
दूरियाँ युही बढती रही
चाहत पर मिटटी चढती रही
रिश्तों के भँवर में उलझता गया
हर खाब मेरा झुलसता गया
दिन बने महीने
महीनो में बीतें साल
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पर
बदली अपनी चाल
देखा नहीं इक अरसा उसे
न किया कभी इकरार
कह ही नहीं पाया कभी
उससे हुआ था प्यार
सदियों से लम्बी राहों पर
दोनों ही कहीं खो गए
अपने बनाये घरोंदो में
दोनों मशरूफ़ हो गए
मिली कहीं एक बार मुझे
वो अनजान मेरे प्यार से
खुशी में बदला ग़म मेरा
मिला था जो हार से
ये ख़ुशी इस बात की थी
वो बेहद खुशहाल थी
में भी आगे निकल चला था
ज़िन्दगी यहाँ भी निहाल थी
दोस्त बने हम-दोस्त रहे हम
फिर कुछ साल निकल गए
जाने क्यों देख दोबारा उसे
अब जस्बात मेरे मचल गए
इक तमन्ना फिर जागी
काश के ऐसा यार हो
वो मिले न मिले, ग़म नहीं
कमस्कम इकरार हो
उसे पानेकी चाहत
न थी न कभी होगी
ख्वाइश-की इक बार सही
उसे भी हमसे प्यार हो

Thursday, July 4, 2013

औरों का ग़म देखा

औरों का ग़म देखा 
            लगा की अपना कम है 
                       मोहबत्त के सिवा दुनिया में 
                                   'आशिक़ ' और भी ग़म है 

Monday, April 8, 2013

वो मिला, नज़रें मिली 
और गुज़र गया अजनबी सा 
हँसी भी आयी , आंसू भी 
क्या वो मेरा अपना था 

दर्द उठा, कसक हुई 
फिर वही, कश्म्कश हुई 
काश छूकर, देख लेती 
हकीकत, या कोई सपना था 

साँसों की ही, दूरी रही 
जाने क्या, मज़बूरी रही 
दुश्मन भी जो, बन न सका 
जाँ से अज़ीज़, वो वरना था 

चाहत मगर, दूर रह न सकी 
उसे छूकर, मुझसे लीपट ही गयी 
बेशक रहा वो, संग किसीके 
प्यार मुझ ही, से करना था 

मुझसे वो कहता, न कहता सही 
आहों ने उसकी, वो हरकत करी 
न दिया साथ उसने, तो शिकवा हो क्यों 
मुझे संग उसीके, तो चलना था 

हर दिन कुछ दूरी, बढती रही 
मोहब्बत सर मेरे, चढ़ती रही 
तोहफ़े हँसीं वो, कुछ पल थे रहे 
मदहोशी में जैसे, मचलना था
आघ्होश में उसके, पिघलना था 
बेपरवाह संग उसके, न संभलना था 
इन साँसों का उन साँसों में यु ढलना था
 

Wednesday, March 13, 2013

ओझल निशाँ और राहें मुश्किल 
आज कुछ ज्यादा ही रोया है दिल 
 

Tuesday, March 12, 2013

मनभावन को देख, यु मचल सा जाये रे
गद गद हो झूमे, क्यों हाथ न आये रे
किये सब जतन, जो केह्ते हैं ज्ञानी
दिल ने  कहाँ कब, किसीकी है मानी
चंचल हो पल पल, वो अरमाँ से खेले है 
हर पल सजाये, मिलन को वो मेले है 
नाहक ही, चाहत की चाहत संजोता है 
कहता नहीं है, मगर वो भी रोता है 
यादें ले आती हैं, संग उसके साए भी 
अक्सर हुआ है, ना आकर वो आये भी 
यु तो समझता है, पागल नहीं है दिल 
देख के उसको, बस बढ़ जाती है मुश्किल 
आलम दोहराता है, वो बिखरी कहानी 
आँखों से बहकर, आंसुओं की ज़बानी 
तूफ़ान के आने में , सैलाब के जाने में  
झूटे उस कच्चे से, मौन के बहाने में  
नीन्द से रुसवा, मेरी तनहा सी रातों में 
बे-इन्तेहां दर्द की, रूहानी सौगातों में 
आते तो हैं, वो ऐसे आ ही जातें हैं 
बिन छुए , वो एहसास जगा ही जाते है 
जो आयी न समझ में अब तक, वो बात बस इतनी है'
तनहाइयों की ये लड़ियाँ और अब कितनी हैं 
वो है पक्की मिटटी के, उनके हैं और सलीकें 
उनसे बेहतर जाने हम उनके तौर तरीके 
वो तो जाने कब छुटेंगे, उनके अभिमान से 
छुट न जाए साथ मेरा, मेरे दिल-ओ- जान से 
मन की माने, इस पल ही, उनके सीने से लग जाएँ 
रो ले उसकी बाँहों में , वो चाहे या न चाहे 

Friday, February 1, 2013

जो अबके हैं बिखरे 
हम रेत की भाति 
कैसे समेटे ये
तिनके हज़ार 
मद्होंश होजाना 
कुछ नया तो नहीं 
बेहोशीं के ज़रिये 
कुछ बदल गए 

आवाज़-ओ-लहज़ा 
कुछ नहीं बदला 
बदला है तो बस 
अंदाज़ बात का 
मान, स्वभिमान 
कब अभिमान हुआ 
इस बात का इल्म 
शायद नहीं उसे 

लकीरों पे यकीं 
जब खुदसे ज्यादा हो 
अफ़सोस , फिर लकीरें 
ख़ुदा बन जाती हैं 
कदमो का दोष क्या है 
वो तो बोझ ढो रहे
रास्तों का चयन तो 
दिलो-दिमाग ने किया 

लौटकर आउंगी
तब फुर्सत से खोजूंगी
जो खोये है उलझनों मे
मैंने लम्हे कई कीमती
सुबह के हलकी रौशनी में
खुली हवा में अंगड़ाई
साँसों की रफ़्तार को
फिर धीमी कर देखूंगी








 

Tuesday, January 29, 2013

आ की मिलकर खोजें ज़रा 
जो खो दिया दोराहो पर 
तेरे एहम की ठोकर पर 
मेरी जिद की चाहों पर 

कदमो तले  की मिटटी को आ 
हाथों से कुछ नर्म बनाये 
पेड़ो से तहज़ीब खरीदें 
खुदको थोड़ी शर्म सिखाएं 

बिखरे पड़े सुखें पत्तो को 
कुछ अरमानो की उर्मि देदें
कांटो में छुपे,फूल भी है आ 
सूझ बुझ से दोनों लेलें 

तपता सूरज सर पे चढ़कर 
सँयम के सलीके टटोलेगा 
चल संग थामे, धैर्य की डोरी 
किन अंगारों से हमें तोलेगा 

जब गुजरेंगे नदी के किनारे 
ठहरे आंसू , उन्ही में बहा लेंगे हम 
छुपा लेना मुझे, तू  सीने से लगा 
ग़म को, एक दूजे में छुपा लेंगे हम 

कुछ पाव के छाले रोयेंगे 
कंधो का बल भी टूटेगा 
सफ़र की साँसे रहेंगी तब तक 
तेरा साथ न जब तक छुटेगा 

चलते चलते शाम ढलेगी 
न जाने ले जायें रास्तें कहाँ 
मुड़ के जो चाहो, तो "जाना " चले जाना 
छोड़े है तेरी ख़ातिर हर मोड़ पे निशाँ 

Thursday, January 24, 2013

धुप मैं तपती सड़क, और तू खड़ा 
मेरी आँखों मे पानी, वो सिसक याद है 

आखरी लम्हे, तेरा चेहरा उदास 
मौन में ढल रही, वो तड़प याद है

उससे पहले मगर, जो हम संग रहे 
तीखे-मीठे किस्सों की कसक याद है 

वोह रास्ता जिस पर, हम पैदल चले 
उस शाम का साथी, वो फलक याद है 

वो पेड़, वो मंदिर, वो तालाब की पाल 
उस लम्बे सफ़र की, हर झलक याद है 

वो बातें,लडाई , वो नाराज़गी मेरी 
मुझे मनाने की तेरी, वो कसक याद है 

हसकर,कसकर , मुझे गले से लगाना 
प्यार मैं वो ज़िद ,तेरी अकड़ याद है 

तेरे छुने से, जो रोम रोम पिघल जाता था 
बिन अवाज़ के, उस तूफ़ान की खनक याद है 

मिलो के फासलों पर, खयालो के खेल में 
मन में तुझे,  देख पाने का असर याद है 

खुद से ,तुझसे ,चाहे सब से मैं कह्दु,
भूल गयी मैं तुझको, "तू" मगर याद है।
ख्वाब में,खुद में,सच में,कहानी में 
हर ज़र्रे में तू,"तू" इस कदर याद है।





 

Monday, January 21, 2013

मौजे-ए -दरिया, सब  तेरे रहे 
कतराए जुनूँ सा ,हम ले चले 

टहेरे से रास्ते,क्यों  हुए तवील 
चले तो मंज़िल,ज्यों कदमो तले 

आई न समझ, कई बातें तेरी 
बर आये तुझसे, तो दुश्मन भले 

हमे दे दर्द का, वो दामन ज़रा 
काश के मोहब्बत, तुझे तो फले 

हथेली पर चाँद तो, हम ला न सके 
आँखों में, तेरे नाम के है दीपक जले
 
और करीब तेरे, हम होने लगे 
प्यार तोड़ नफरत, जो की मनचले 

खोज में तेरी, 'जाना'  मिला कुछ बहोत 
तू न मिला, तो हम खुद खो चले 

नैनो में ठंडा, कुछ पानी ले भर
रोलेना, जब मेरी साँसे ढले
 

Sunday, January 20, 2013

कमर का करहाना 
कंधो का झुक जाना 
आँखों के काले घेरे 
और ख्याल मेरे।
कहना है ये सबका 
समय को थोडा खदका 
कदमो का रुख मोड़े  
कुछ मन का सुख खोजे। 
कही छाँव में अब लेटें 
कुछ खुला सा नभ देखें 
छोडके काली  सिहायी 
सवालों को दे रिहाई। 
लम्बी गहरी साँस भरूँ 
कुछ ऐसा अब मैं करूँ 
कही दे न तू दिखाई 
तेरी यादों की बिदाई। 
ना तुझपे और सितम 
बोझ करूँ कुछ कम 
न देखू मूड के और 
वो मुश्किलों का दौर। 
बातों के समंदर को 
आँखों में करलूं बंद 
नम्कीं तेरी ज़बाँ से 
मीठे भी बरसे थे चंद। 
अब और नहीं उठ्ते 
इन कंधो से तेरे ईनाम 
रौशनी के वादे बिखरे  
प्यार की हो गयी शाम। 
समेटें अपना वजूद 
समाके खुद में  खुद 
तेरे अक्श को कर जुदा 
आ तुझको करूँ विदा।
हाथों में थाम के चेहरा 
तेरे माथे को चूमकर 
कभी ना खोलू फिर मैं 
इन आँखों को मूंद कर। 

 

Saturday, January 19, 2013

तेरे आंगन से मेरा दामन तुझे, भरा ही दीखता होगा 
मेरे आंगन से मेरा दामन, आ ,इक बार ज़रा तू देख।
तेरे मिट्टी  पे ही  बरसे है,फिजा के सावन हरे भरे 
मुझे पतझड़ से है मिला,आ ,कितना हरा तू देख।

मौन के तरकश से निकले , बिन शब्द तीखे तीर थे 
हालाँकि ज़बां तेरी, कभी क़त्ल से कतराई नहीं। 
तनक के तोड़ी कच्ची डोरी,नाम जिसका विश्वास था 
रुआब देखते बनता है, नज़रे तेरी क्यों लज्जाई नहीं। 

हाथ मेरे हाथों में  रख, आँखों से आंखें मिला 
बहने दे कडवे लहू को,मैं भी देखू रंग तेरा। 
मुझे छु कर भी तू अगर, सच को छुपा सकता है 
क्या समझू मैं, बेमानी था, पाया जो मैंने संग तेरा। 

फ़कीर तो मानो  मैं हुई, पाकर भी सब खो दिया 
साथ मेरे तू रहा है ऐसे ,खुली आँख का सपना कोई।
पल से छोटे पल मैं टुटा,दिल का हर एक हिस्सा यु 
देह त्याग के जाये जैसे, जान  से प्यारा अपना कोई। 

 

Friday, January 4, 2013

मिलके तेरे ख्याल से, मेरे ख्याल लौटें  हैं 
साथ उनके मुश्किल , कुछ सवाल लौटें  हैं 
 
मेरी हथेलीयां , अपने  हाथों मैं लिए 
आँखों से चूमकर, जो सपने दिए 
 
लापता उन ख्वाबो का, निशाँ ढूंढ़ते 
नमी को, पलकों की चिलमन से मूंदते 
 
आवाज़ दे रहे हैं, धीमी पुकार से 
मायूसियो का झोका, हक़ से नकार के
 
पथरीले फासलों को ,हाथों से साफ़ कर 
तेरे दिल का हाले जहां, साँसों से माप कर 
 
कदमो को फूँक फूँक, रखा' ज़मीन पर 
बिन तेरी इज़ाज़त , तुझे तुझसे छिनकर 
 
कुछ पल के लिए लायें है , महफ़िल मे वो मेरी 
इक अरसे से इस दिल को,  आरज़ू है बस तेरी 
 
लेने जवाब मुझसे, कुछ सवाल लौटें हैं 
भरके तुझे बाँहों मैं, निहाल लौटें हैं 
मिलके तेरे ख्याल से मेरे ख्याल लौटें हैं 
साथ उनके मुश्किल , कुछ सवाल लौटें हैं
 
 
 
 

Tuesday, January 1, 2013

मौसम ,
जिद ,
और मेय के खंजर ....
रात,
नशा,
और चाँद के तेवर ..
 
खुसबू,
धुआ,
आँखों के जाम ...
साए,
ख़ामोशी,
और तेरा नाम .... 
 
याद,
दर्द,
बिखरा जुनूँ ....
दूरी,
मौन,
फिरभी सुकूँ ....
 
गीत,
तन्हाई,
राहें  सुन्सां ...
मेरा,
अपना,
हो गया मेहमां ...
 
शब्द,
कागज़ 
न पूरी किताब ...
वो तनहा ,
हम तनहा,
हो गया हिसाब .... 
 
 
 
 
 
बेह गया तो पानी
थम गया तो दर्द 
ज़बां कहदे  तो ठीक 
न कहे, तो कमज़र्फ 
थक तो हम भी गए है
दिल को इत्मेनां नहीं
चाँद तो चुरा लिया है
रखने को आस्मां नहीं
कदम थिरक थिरक है 
गला है भरा भरा 
महफ़िल अभी लगी है 
कुछ और तो रुकिए ज़रा 
बे-इज्ज़त हुए है हम तो 
शक भरी तेरी नज़र से 
शराब से बहक गए क्या 
प्यार बरसा है किस कदर से 
गिले शिकवे क्या करें अब 
क्या करें हम तुझसे नाराज़ी 
हर गुनाह तेरा भूल जाएँ 
तू नज़र करे जो ज़रा सी