Thursday, December 23, 2010

चाँद से होके नाराज़, एक तारा टूट गिरा
और मैंने सोचा आज,
कोई ख्वाइश पूरी होगी....
आँखें बंद किये, मांग लिया कुछ ऐसा
देखे कैसे खुदा की,
आज़माइश पूरी होगी.....


तारा हों गया ग़ुम, देके एक चिंगारी
काली रात को
और उलझे ख्वाब को.....
बाकी रहा आसमाँ,उमीदों से भरा
कैसे सुकूँ आये
किसी जस्बात को......
 
होगी फिर सुबह, और फिर रात होगी
चाँद भी आएगा
और शायद तारे भी
पर वो एक तारा, जो टूटा मेरे लिए
क्या सच कर पायेगा
खाब वो प्यारे भी ......


हर रात ये देखूंगी में, तारो से सजी महफ़िल
और याद करुँगी उसको
जो था मेरा अपना....
शायद फिर कोई तारा, टूट के मुझसे कहदे
आया हु में करने
मुमकिन वो मुश्किल सपना......

Tuesday, December 7, 2010

इतना खूबसूरत- कोई ख़त नहीं आया
बा-हर्फ़ सजा के भेजे, इलज़ाम रकीब ने..
खोया कुछ था हमने, इश्क-ए-गूमानी में,
बाकी लुटा हमसे, कमज़र्फ नसीब ने...

रेशम की रवाज़े, दिखावो के सलीके 
सुकून साँसों का भी, छीना ग़रीब से 
काबिल-ए-तव्वज्जू, सहूलियत के रिश्ते
दो लव्ज़ ना केह पाए, जाते हबीब से

ताकूब नहीं था मकसद, पीछे तुम्हारे आना
एक नज़र चाहिए थी, थोडा करीब से
ज़हानत तुम्हारी ऐसी, खंजर बिनो ज्यो कातिल
इश्क में डुबोके, मारा अजीब से

बा-हर्फ़ - inn alphabetical order
रकीब - rival
काबिल-ए-तव्वज्जू- noteworthy
हबीब- loved one
ताकूब - to follow
ज़हानत - talent

Monday, December 6, 2010

वफ़ा के इम्तेहान अभी, बाकी है कई
तूफाँ की एक लहर से ना,तू यु नज़र चुरा
छु के मुझको वादे ,जो किये थे तब कभी 
इस उम्र जो निभा दो, तो मानू में ज़रा 


गम का ये बिछौना, अब कैसे समेटा जाए 
सागर भी छोटा सा है, लगे है कम धरा
कुरेदे जा रहे हैं, ज़ख्म उँगलियों से
तू आये जब यहाँ तो मिले, हर ज़ख्म हरा


चुप रहना नहीं मुश्किल, मुश्किल है खुदसे कहना
सबर के घूँट पीले, काफिर वक़्त है बुरा
गुज़रा हुआ लम्हा, जो तुझसे मुझतक आया 
एहसास उस एक पल का, अब तक नहीं मरा

Saturday, November 27, 2010

सुकूँ भी इश्क
दर्द भी इश्क
रोग भी इश्क 
मर्ज़ भी इश्क
तेरी हसी, तेरी बातें, तेरा गुस्सा, सज़ा भी इश्क
तुझसे दूरी, नजदीकियां, तेरी मस्ती- मज़ा भी इश्क
ख्वाब भी इश्क
ख़याल भी इश्क
वल्लाह तेरे
सवाल भी इश्क
तू पिए, होटों से वो, जिसके लिए, है नशा भी इश्क
कातिल तेरी, कडवी ज़बां, ज़ालिम तेरी है अदा भी इश्क
सितम भी इश्क
दुआ भी इश्क
तू जो दे   
बद-दुआ भी इश्क
रह रह के जो याद आता है, गुज़रा हुआ लम्हा भी इश्क
संग तेरे कुछ पल जिए, अब है मगर तनहा भी इश्क
मेरी जाँ तेरी, हर बात है, सबसे अलग, है तू भी इश्क
प्यार तुझसे क्या किया, कहते है सब, हूँ  मैं भी इश्क

Wednesday, November 24, 2010

औरो ने कहा, मैंने माना ही नहीं
     अपनी आँखों से देखा, तो यकीं हों गया
वो जिसे चाहा था, दिलो जाँ से मैंने
     ख़ुशी से वो आज किसी और का हों गया
  
शाम हुई, अब चलते हैं
             क्या ख़ाली हाथ भेजोगे?
कुछ किस्से, कुछ हिस्से,
             तुम अपने भी देदो.

अपना तो एक ख्वाब भी,
             हम पूरा ना कर पाए..
तुम्हारे नाम से पुरे हों शायद,
             कुछ सपने भी देदो.

इक  ख़याल, इक एहसास
      कुछ ऐस आया .....की तेरे दिल में किसी और की जगह बन गई
कहीं ऐसा तो नहीं?
.......की यही बात.... हमारे बीच दूरियों की वजह बन गयी

Saturday, November 20, 2010

पा लिया एक ख्वाब तो, उम्मीद बढ़ गयी
    जाने ये उम्मीद हमें अब, ले कहाँ जाए
ना- इंसाफी है ये कैसी, कैसा ये सितम
    गुनाह किसी और का, सज़ा कोई पाए
ना आँखों से, ना बातों से, ना लिख कर केह सके
    तो कैसे इस दिल का हम, हाल सुनाये
कसमो पर कभी यकीं, हमें आया ही नहीं
    क्यों फिर कसम खाके, तुझे यकीं दिलाएं
धुल ज़रा ज़रा कभी, हटाते रहना
     यादों के किसी ढेर में , कहीं हम ना खो जाए  

Tuesday, November 16, 2010

कल ख्वाब में मैंने खुद को, मरते हुए देखा
मौत से अपनी ऐसे लड़ते हुए देखा.

फूलो से सजी महफ़िल, मौसम बहार का ,
इक पेड़ से हरएक पत्ता,खरते हुए देखा,
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा.

तपते निर्जल रन में, एक बूँद नहीं देखि ,
आँखों से आंसुओ को, झरते हुए देखा,
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा.

शायद ही डूबती वो, सुराग वाली नय्या,
अपनों को उसमे मिटटी, भरते हुए देखा
कल ख्वाब में मैंने खुदको मरते हुए देखा


अंधेर काली रातें, दियो से कट ही जातीं 
तुझको लौ पर हाथ, धरते हुए देखा
कल ख्वाब में  मैंने खुदको मरते हुए देखा


बस ये ना  होता तो में, जी लेती शायद
किसी और से प्यार तुझको, करते हुए देखा'
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा

Tuesday, November 9, 2010

माना बे- अक्ल हु में
तेरी सुध -बुध कहाँ गई
मेरा कहा सब सुन लिया
क्यों खुद कुछ कहा नहीं


क्या ऐसे मोहब्बत होती है
किसी की मन मर्जी चले
एक मचादे हुल्लड़ दंगा
दूजा बस सुनता ही रहे


बस मेरी बात चलेगी क्या ?
क्या युही तेरा बसर होगा ?
अरे बुद्धू  क्या चीज़ है तू ?
कैसे तेरा गुज़र होगा ?


ऐसे ही तुने किया अगर
कही दूर चली जाउंगी में
ढूंढते रेहना सारी दुनिया
लौटकर ना आउंगी में


क्यों मुझसे ही प्यार किया
मुझसे बेहतर भी लोग थे?
भुगतना सारी उम्र मुझे अब,
शायद यही संजोग थे !
ऐ शाम ना हों उदास यु
तुझे देख के दिल भर आता है
तनहा इन तन्हाईओं में
रोने को जी चाहता है 

जी चाहता है इतना रोये, इतना की चाहत थम जाए
फिर ना कोई ख्वाब  आये, नींद में ऑंखें रम जाये
बह जाए शिकवो की माटी, अरमानो का पता ना हों
इतनी सख्ती हों दिल पर, फिरसे कोई ख़ता ना हों 

साँसे आसान हों जाएगी
अब मनसे जो ये बोझ ढले
ए शाम ज़रा हसतें रहना
रुसवा हम बेशक हों भले 

Wednesday, November 3, 2010

भूल जाने की कोशिश, ना करना फज़ूल
बे-हया है हम
याद आते रहेंगे .
जब कभी सोचोगे, भूल जाने की बात
खयालो में आके
सताते रहेंगे.
ना करना यकीं, अपनी अकल पे कभी
पागल को पागल
हम बनाते रहेंगे.
ऐसे या वैसे, तुम जाओ जहाँ जैसे
हक तुमपे अपना 
बताते  रहेंगे.
चाहे जितनी दूरियां, करलो कोई फासले
साँसों से  तुम्हारी,
पास आते रहेंगे .
उम्र की लकीरों में,हर कठिन मोड़ पर
तुमपे अपना प्यार 
हम जताते रहेंगे......
     याद तुम्हे हर पल, हम आते रहेंगे
     जाने मन, ऐसे ही सताते रहेंगे
     जाओगे कहाँ, हमसे दूर दिलो-जाँ
     हर कदम, हर पल ,पास आते रहेंगे...

Tuesday, November 2, 2010

टूटे एक ख्वाब के बिखरें है तिनके
पलकों के रेशों में उलझे हुए
या तो चुभेंगे ये आँखों में जाकर
बह जायेंगे या फिर आंसू बहाकर
शज़र के साए में बैठे हुए
कैसे हम मुमकीन सफ़र करते

तुझसे निगाहें जो हटती कभी
रास्तो पर थोड़ी नज़र करतें

लहू से जो हमने लिखा होता 
शायद तुम उसकी कदर करते

अश्कों से पलकें भिगोते नहीं
तुमसे कोई वादा अगर करते

पास आना जो होता आसाँ अगर
क्यों दूर रहकर गुज़र करते

ख्वाब जो जन्नत के देखे यहाँ
पूरे संग तेरे, उधर करते 

Wednesday, October 20, 2010

सुबह की पेहली किरन से पेहले
रौशनी कोई दिखाई दी
किसी न कही जो कही नहीं है 
बात हमें वो सुनाई दी

मूंद कर आँखें किसी ने दिल में
याद हमें फरमाया है
बेसब्र आँखों के ठहरे हुए पानी ने
इस बात की हमें गवाही दी


वो ये ना समझे की हम भी है तनहा
मौसम जो हल्का गहरा हुआ
तेरे नाम को लेकर इस तन्हाई में 
हमने नहीं अब दुहाई दी


पेहले कहा हर कदम साथ होगा
धीरे से फिर तुम कही खो गए
फेला के दामन जो माँगा कुछ तुमसे 
फूलों में रख कर जुदाई दी 

Tuesday, October 19, 2010

अनजाने बन जाना तुम,
सुनकर अब आवाज़ मेरी
इसी से किस्से सुलझेंगे
ऐसे ही हल आएगा


करना कुछ ताना जोरी
कुछ कडवी बातें केह देना
प्यार को थोडा रुसवा करना
ऐसे ही बल जाएगा


गुज़रे कल को ठोकर देकर
आज को सुन्दर कर देना
लेकर दिल का सपना कोई
ऐसे ही कल आएगा


गुज़र गया कुछ हसी ख़ुशी में
कुछ अश्कों में डूब गया
बाकी का भी जीवन ऐसे
यादों में ढल जायेगा
प्रेम की पगडण्डी पर चलके, कच्ची  राहें नापी थी
माटी की खुसबू में खोकर, निकल पड़े ये किस वन में
उम्र भर की तपस में भी जो, मिला नहीं है कितनो को 
पा लिया वो अक्षत मोती, हमने अपने यौवन में


पत्तो की सर सर को सुनके, सबर के तिनके जोड़े थे
मौन जड़ो ने सिखा दिया, अचल है रहना कण कण में 
मांगे वो जो, जिसके दिल में, पाने की कोई इच्छा हों 
क्या मांगे हम, तुझको पाके, पा लिया सब जीवन में

Friday, October 15, 2010

ना कर उसपे भरोसा, अपनी औकात से ज्यादा
करेगा जब वो रुसवा, दिल टूट जायेगा


हाथ उसका थामे , ये चल दिए कहा तुम
बीच रास्ते में साथ छूट जायेगा 


सच की नहीं है कीमत, उसकी नज़र में कोई 
कितना भी मनाओ, वो रूठ जायेगा


उसके आसरे पे ये कर चले हों क्या तुम
यकीं तुम्हारा तुमसे वो लूट जायेगा


शौख है ये उसका, शब्दों से चीर देना 
ना करना प्यार उससे, दिल टूट  जायेगा

Thursday, October 14, 2010

ईमान और कुफ्र में फर्क इतना है
तेरी और मेरी, सोच में जितना है


खुदा और ख्वाब, दोनों है यहाँ
देखें इनकी नियत में जोर कितना है


अश्को की आबरू तो, ऐसे उतर गयी
इल्म हुआ आज, दिल कमज़ोर कितना है


जूनून वस्ल का है, इरादे मोहब्बत
अफ़सोस प्यार में ये इंतज़ार कितना है


शमा और शराब, माहोल  बन गया 
तू नहीं मौजूद, बस ग़म इतना है 



उल्फत मेरे दिल में, नफरत तेरे  दिल में
फर्क दोनों दिल में बस प्यार जितना है
इश्क हुआ रकीब से
तकदीर क्या करे
इसके आगे और हम
तक़रीर क्या करें

नजाकत उसकी ऐसी है 
छूने का दिल करे
ऐसे में कोई मदद
तस्वीर क्या करे


करीबी दिल से दिल की हों 
दिल को इतना चाहिए 
देखें दूरी लाने को फिर
लकीर क्या करे ?


पेहले दिल चुरा लिया
फिर कहा गरीब हमें
तुम तक पहोच पाने को
ये फ़कीर क्या करे?

रकीब - दुश्मन 
तक़रीर- बहस

Wednesday, October 13, 2010

बिन ज़रूरी
       कई दफा
दुश्मन हों जाते ये आंसू


और कभी जब
       रोना चाहें 
कैसे क्यों खो जाते आंसू

Sunday, October 10, 2010

उल्फत के शहर की कोई सरहद बनाता
उन लकीरों को कभी हम पार ना करते
इल्म होता ग़म का ज़रासा इस खेल में
तो भूले से कभी हम प्यार ना करते

Friday, October 8, 2010

नजरो से दिल चुराया....इश्क है
दुश्मन से दिल लगाया.... इश्क है
वो जो हमारे नाम से भी खफा होते रहे 
अपनी याद में उन्हें रुलाया.... इश्क है
कदमो की दूरी तक भी, जो आये ना कभी
सीने से उन्हें  लगाया....इश्क है
एक बार जिसे छूने की तमन्ना थी बड़ी
हाथों से उसे सजाया.....इश्क है
वो रहे कही भी, अब मुझे क्या लेना 
रूह उसकी ले आया...... इश्क है

Thursday, October 7, 2010

नाज़ से रखिये, 
प्यार से रखिये,
इनायत है ये ज़िन्दगी

लेने इसको मौत आयेगी
अमानत है ये ज़िन्दगी
तूफ़ान से कोई वादा करके,
आई हों क्या ज़िन्दगी
हर कदम पर खुशियों से, नज़रे चुराए जाती हों 


तिनका तिनका बिखरा जाये 
रेत का सा ढेर है
धीरे से कण कण तुम, सागर में समाये जाती हों

Wednesday, October 6, 2010

तेरी आँखों से राहें तकतें हैं
इंतज़ार खुदका करतें हैं 
सज़ा तेरे नाम पर देतें है
हर्जाना खुद ही भरतें हैं

ना खन्न है
ना छन्न है
खाली सा मन है
कितना समेटोगे
ये गहरा वन है 

पतझड़ के पत्तो की किर किर लगी है
बरसों के प्यासे ये लक्कड़ पड़े है 
पानी और नदियों में रिश्ता नहीं है
सुखी सी माटी का उजड़ा चमन है


दूर तक सौंधी कोई खुसबू नहीं है
बुत बनके कबसे ये पत्थर खड़े है
म्रिगत्रिश्नाओ से हों जाते है घायल
 मीलो तक फैला ये निर्दय सा रण है

Monday, October 4, 2010

पेहली  नज़र , पेहला ख़याल, पेहले ख़ाब सा कुछ नहीं
पेहला कदम, पेहला साहस , पेहली शुरुआत  सा कुछ नहीं 
पेहली मस्ती, पेहली उलझ, पेहली बात सा कुछ नहीं
पेहला गुस्सा, पेहली माफ़ी, पेहली मुलाक़ात सा कुछ नहीं 


पेहली तड़प, पेहली जलन, पेहले इंतज़ार सा कुछ नहीं
पेहले अलफ़ाज़, पेहले एहसास, पेहले इज़हार सा कुछ नहीं
पेहली तकरार ,पेहला इनकार , पेहले  इज़हार सा कुह नहीं
पेहला शुमार, पहला खुमार, पेहले प्यार सा कुछ नहीं....

Saturday, October 2, 2010

रात ने कुछ गहरा कर लिया है मौसम, या के ये तेरी आँखों की उदासी है...
चाँद ने तारो को या केह दिया कुछ ऐसा, रंग आसमा का क्यों काली सिहाई है!

उल- फजूल बातें, जाने कितनी कहदी,दिल की वो बात मगर, हमने छुपाई है...
अरसा हुआ उसको, खयालो में बसाके, प्यार जताने में, फिर उम्र गवाईं है !


जवानी केह रही है, कहीं और उसको जाना, नियत तो लेकिन चिकनी सुराही है...
पलकों में,ख्वाबो में, बातों में साँसों में, हर अक्ष में उसकी तस्वीर समाई है !


फासले दरमियाँ के, तवील हों चले क्यों, इसमें भी बेशक- कुछ उसकी खुदाई है...
हम न भूले एक पल, उसकी मोहब्बत को, भूल जाएँ  वो तो, इश्के- दुहाई है !
खुदा करे, 
             वो रूठा करे,
                              हमसे कई कई मर्तबा.....

रूठके जब फिर मिलते हैं वो,
                                   टूट के प्यार बरसता है .......
पल पल की गीनती करतें हैं
तब जाके ये दिन ढलतें हैं
कोई आकर हमसे भी कहे
तेरी याद में शब् भर जलतें हैं

Thursday, September 30, 2010

शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजाते है....
आओ तुम्हे हम बीती बातें याद दिलातें हैं....

आँखों के तरकश से कैसे तीर चलाये थे
होठों की चुप्पी से कैसे गीत सजाये थे
धड़कन की तेज़ी से कैसे पास आये थे
खयालो में इन सबको आओ फिर दोहरातें है....
देखें अबके मिलके  दोनों कहाँ तक जातें हैं....

लम्हों की गुथ्ही से गुज़रे किस्से चुरातें हैं....
बंद मुठी से यादों की कुछ रेत गीरातें है ....

हाथों की नरमी ने जीद को मोम बना दिया
ख्वाबो की गर्मी ने मौसम और सजा दिया
साँसों ने साँसों को सारा हाल बता दिया
इस खेल की कोई बाज़ी आओ फिर लगातें है....
देखें इस बारी हम कितना  जीत के जातें हैं .... 

होसले के दम को थोडा और बढ़ातें हैं...
बातों को बातों से आगे लेकर जाते हैं....
जो ना किया था मिलकर दोनों  कर ही जातें हैं....
धुल में घुलकर संग हवा के उड़ ही जातें हैं...
आओ तुम्हे हम बीतें बातें याद दिलातें हैं
थोडा सा हसतें  है थोडा नीर बहातें है....
शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजातें है ....

Saturday, September 25, 2010

खयालो के देश में दंगा मच गया
ख्वाबो के शहर में तबाही हों गयी
ग़ालिब ने अपने ग़म को शब्दों में क्या रखा
ग़ज़ल की दुनिया में वाह-वाही हों गयी

Wednesday, September 22, 2010

गीले, शिकवे, शिकायतों के मौसम गुज़र गए
सहमती  से आज कुछ  समझौते सुधर  गए
                       ना वो हमारे नाम की दुहाई देंगे
                      ना हम सरे-आम उनका नाम लेंगे    
           ना वो  इस दामन को छु पाएंगे कभी
           ना हम उस आँगन में अब जायेंगे कभी
                       वो अपनी मंजील को चाहे जैसे पायें
                       हम उनके रास्ते में कभी ना आयें
          चाहे उनके खयालो  में चूर रहेंगे
          फिर भी उनकी यादों से दूर रहेंगे
                      उनके फैसलों से हमें, इख्तियार ना रहेगा
                     बेशक उन्हें भी हमसा इंतज़ार रहेगा
           ज़िन्दगी में अब चाहे कोई मुकाम आये
           शर्त है की उनका कभी नाम ना आये
                      उम्र भर उस चेहरे का दीदार ना करेंगे
                      वो भी हमसे पहले सा, अब प्यार ना करेंगे
कलमों  के ये पन्ने ज़हन में उतर गए
वाकई हमारे प्यार के वो दिन गुज़र गए

Monday, September 20, 2010

कुछ खुदा की खुराफात
कुछ तकदीर ऐसी जनाब
कितना भी अच्छा कीजिये
काम हों जाता खराब
       कब तक बे गुनाही की कसमे खाते रहे
       कब तक हर बात का यकीं दिलातें रहे
       कब तक खुद ही खुदके अरमानो को कोसें
       कब तक चुनते रहे हम बिखरे हुए ख्वाब
तारो का ये खेल है शायद
या मनहूसियत कुछ हम में है
क्युकी वोह तो येही कहतें है
हमने पहने है कई नकाब
        सज़ा का डर तो कभी ना था
        खुदको बेगुनाह समझते रहे
        आज जब खुद उसने सुनाई है सज़ा
        दर्द पर छाया  है कुछ और ही शबाब 
काँटा निकाले या फूल संभाले
तुम ही बताओ की अब  क्या करें
चमन तो बाघी हों ही चला है
दामन संभाले या सजदा करें


कदमो की आहट से पहचान लेना
छूने का मौका ना देगा कोई
महफ़िल में गैरों का ताता लगा है
लाज़मी है की हम भी पर्दा करें


राह में मिलेंगे इम्तिहाँ कई
भरम की लकीरें गुमराह करेंगी
सहूलियत से तो इश्क फरमाते है सभी
माने आपको, ऐसे में अकीदा करें

अकीदा - विश्वास

Sunday, September 19, 2010

आज फिर कुछ रिश्ते देखो, छुट गए मेरे हाथों से
लूट गया ले जाना वाला, सपने मेरी रातों से

चोरी हुई मेरी मर्ज़ी से
हाथ छोड़ा  मुझे पूछ कर
लेकर मेरी ही इजाज़त
चला गया वोह रूठ कर

ये  भी कहा था उसने मुझसे, कहते कहते बातों में
आँख में आंसू कभी ना लाना, रोकर मेरी यादों में

इतना कहकर चल दिया वो
रुका नहीं उन राहों में
कहनो को मुझे छोड़ गया पर
ले गया अपनी बाँहों में

प्रेम के सबब सिखा गया वो, चंद ही मुलाकातों में
उम्र भर की याद दे गया, प्यार की सौगातों में

Saturday, September 18, 2010

एक सुबह तुम्हारे साथ हों
एक शाम तुम्हारे साथ हों
एक दिन तो ऐसा गुज़रे मेरा
एक रात तुम्हारे साथ हों

तुम बैठी रहो मेरे सामने
आँखों में आंखें डाले हुए
साँसे तुम्हारी सुनाई दे
कभी तुम इतनी पास हों

मेरे लिए हों  हंसी  तुम्हारी
आंसू हों तो मेरे लिए
संग मेरे दुःख सुख में रहो
कभी इतनी आज़ाद हों

कहीं और ना जाना हों तुम्हे
मुझसे ही मिलने आओ तुम
फिक्र ना हों किसी और की
ऐसी कोई मुलाक़ात हों

प्यार तुम्हारा बाटू ना कभी
सिर्फ मुझसे ही प्यार करो
जाँ देदु एक हसी पे तुम्हारी
ऐसी कभी कोई बात हों

जाने वो मुमकीन कब होंगी
ख्वाइश जो तुम्हारे साथ हों
हर पल तुम मेरे साथ रहो
ऐसे भी कभी दिन रात हों

Thursday, September 16, 2010

             ख्वाहिशें तो बहोत सी है
ख्वाहिशो का क्या करें
मृगतृष्णा सी होती हैं
प्यास बढाकर खो जाएँ

             छोड़ो इनका तोल मोल
रहने दो गलियारों में
इनको पाने की कोशिश में
और क्या जाने खो जाए

              कितनो का कोई मोल नहीं
कई बहोत अनमोल हैं
पूरी ना होने पर लेकिन
सारी एक सी हों जाएं

               ना चलना इनके नक़्शे कदम
राहें भूलभुलैया हैं
दीवानां तो कर देंगी
ना जाने और क्या हों जाएँ

Wednesday, September 15, 2010

साँसे तो रोज़ ही लेते है मगर
आज हवा में कोई और बात है
शामिल है तू भी इस शहर में शायद
तेरी साँसों की खुसबू का एहसास है

Thursday, September 9, 2010

कुछ लम्हों के लिए ही मगर
आप आये तो सही,
ये बात और है की लम्हे बिखर गए

कुछ बीतें शर्म की दीवार हटाने में
बाकी बचे लम्हे,
शिकायतों में गुजर गए

Friday, September 3, 2010

रुकमणि को जोड़ा रिश्ते ने
राधा से जुड़ गए कान्हा खुद
प्रेम का बंधन जुड़ गया जब तो
क्या करनी है फिर सुध बुध
ज़मीन-दोस्त हुए सब ख्वाब
रात में जो भूचाल आया
तेरी नियत क्या बिगड़ी ज़रा
कलयुग पर भी काल आया

Thursday, September 2, 2010

तुम रचाओ रास जहा
हम दौड़े चले आएंगे
राधा बनके कान्हा तेरे 
प्यार में खो जायेंगे


बांसुरी की ले पैर थिरकते
कदमो को घायल कर देंगे
जो ना पुकारो नाम हमारा
सुध बुध ही खो जायेंगे


रास रचेंगे साथ तुम्हारे
झूमेंगे काले पहरों हम
खुसी जो तुमसे ही मिलती है
खुसी में ही रो जायेंगे


कान्हा मेरे साथ चलो तुम
प्रेम के सब रंग फीके है
बाँध लो प्रीत की लडियो से फिर
फिर हम एक हों जायेंगे

Wednesday, September 1, 2010

लम्हों की सिलवटो को हाथों से ना सुलझाओ
रेशम सी नजाकत है, कुछ और ना उलझ जाए
       कतरा भी कुरेदोगे, कहानी गिर पड़ेगी
बेकार ही ये दुनिया कुछ और ना समझ जाए


होले से थामो इसको, ज़र्रा भी मचलता है
हलकी जो ली करवट , सब ना मुकर  जाए
         तार तार में बहती साँसों की सिहाई है
टूटे जो ये लम्हे, खुसबू ना बिखर जाए

Tuesday, August 31, 2010

किसने कितना बुरा किया
  ये  हिसाब कभी और करेंगे
आज तोह इन लबो से बस अच्छा ही  कुछ कहना
   कुछ मीठे लम्हों की बातें,
कुछ खट्टी सी सौगातें
किसी और की नहीं आज बस अपनी ही बातें कहना


चलो इस हरी घास पर हाथ थामे चलते हैं
पानी भी  बरस रहा है, थोडा और  फिसलते है  
बूंदे की छुँवन से कुछ नम्रता सी लेले
बरसती लड़ी से सरलता ही सिखले
 
             आँखों को मूंद कर आसमान को देखो
चेहरे और मन को बस धुल जाने दो
उतर जाने दो यह सारे झूठे नकाब
आओ चलो आज हम फिर से बच्चे बन जाये


            छब छब करके कीचड़  उछाले
चलो एक दुसरे को मिटटी में डूबाले
यह कीचड़ उससे बेहतर है जो हम एक दुसरे पर उछालते है
इस कीचड़ की महक से हमारे अहंकार कुछ कम हों जायेंगे
हम फिर हमारे मूल अस्तित्व -इस धरती में खो जायेंगे
कुदरत के इस बहाव में आओ हम बह जाए
                
                 चलो ना संग मेरे , कदमो को ना रोको
ऐसी बारिश कभी कभी ही होती है
बरसने को तोह पानी खूब बरसेगा कल भी
मगर ऐसी बारिश फिर ना होगी
की जब हम मिलके कुछ नया पा सके
की जब हम पुराने ग़म  भुला सके
की जब हम माफ़ी का मतलब  सिख सके
की जब हम जीने का सबब देख सके


                  आओ चलो हम चलते चले
भीगते चले, खेलते चले,
खो जाए ऐसे जैसे यह बूंदे बरसके खो जाती है
भिन्न होकर भी गिरने पर एक हों जाती है
चलो हम भी गिरे उन बन्धनों की छतो से
आओ हम भी माटी में मिलकर माटी हों जाए
आओ हम सब भूलकर बस एक हों जाए

Sunday, August 29, 2010

शायद कोई क़र्ज़ था, यु उतर गया
खुदा अपने वादे से फिर मुकर गया
ढलते ढलते शाम, देखो ढल गयी
जो था हमारा आज, यु गुज़र गया


शिकायतों के पुल बांधे नहीं गए
सबर का बहाव बस उभर गया
लकीरों में ढूंड रहे थे जो निशाँ
झलक दिखा के वो जाने किधर गया


चल रहे थे उसकी परछाईयों को देख
हों लिए हम भी वोह जिधर गया
दम भरने हम कुछ पल क्या रुक गए
आगे निकल वोह हमें गुमराह कर गया


पीते पीते इतनी पी ली है बेरुखी
खुमारी का सारा नशा उतर गया
उसके भी खयालो में हम आया करते होंगे
अपने दिल से अब ये  ख्याल मर गया

Tuesday, August 24, 2010

मेरी किसी बात पर जब तुम खिल कर हस्ती हों
चलते चलते अचानक मेरा हाथ थाम लेती हों
मेरी आँखों में देख कर जब सवाल करती हों
बिन बोले मेरे एहसास जब जान लेती हों
नाराज़ होकर मुझसे मुह फेर लेती हों
और चाहती हों की में तुम्हे प्यार से मनाऊ
और दो ही पल में हसकर फिर मान जाती हों
जैसे कुछ हुआ ही नहीं, मेरी हों जाती हों
कभी माँ की तरह प्यार से समझाने लगती हों
तो कभी बच्चे की तरह फुट फुट कर रोने लगती हों
कभी तोह सयानी बन अछि बातें करती  हों
और कभी पागल बन कुछ भी कहती  रहती हों
मेरी तारीफ़ करते करते थकती नही कभी
जो में तारीफ़ करू तोह शर्मा जाती हों
आँखों में देखकर बस  आँखों से कहती हों
चुमलू माथा तोह आंखें बंद कर लेती हों
लगता है मेरे प्यार को खुद में समां लिया
सर लगाके सीने से जब मुझमे खो जाती हों
कभी दो शब्द भी नसीब नहीं होते
कभी गीत सुनाकर बस रुला देती हों
जब कभी तुम हक से कुछ मांग लेती हों
ना दू तोह लड़ कर छीन लेती हों
गुस्से या प्यार से मनवा ही लेती हों
लगता है की तुम बस मेरी ही हों
मेरे आने पे जब तुम ठंडी आहें लेती हों
मेरे जाने पे जब तुम उदास हों जाती हों
मुझे देखने को जो तूम बेताब रहती हों
लगता है की जीवन से सब कुछ पा लिया
लगता है की तुम्हारे लिए में ही सब कुछ हु
और यह सोच मुझे पूर्णता का एहसास दिलाती है
ख्वाबो के परिंदे जो तिलमिला रहे है
आँखों में घुलते समंदर की जागीर है
लो उठा कर हमने भी देख लिए खंजर अब
लुफ्त क्या जब होसलों की ठंडी ही तासीर है

Sunday, August 8, 2010

बंद आँखों का खेल है सारा
खुले तोह ग़ुम हों जाते हों
दोनों ही सूरतो में ज़ालिम
बेहद याद आते हों