Sunday, November 25, 2012

'दिलगीर' , उनकी बज़्म से, दिल पे ख़ार ले आये 
समझे नहीं वो, हम लौटते, प्यार अपना ले आये 

'गमे -जाना' चेहरे पर, शिकन  तो ले आता है 
आँखों का पानी मगर, हम उनको तोहफा दे आये 

'सरे-अफ़्लाक' पर शब भर, चाँद-तारे रहे मगर,
सहर हुई, सूरज की तपन, फलक को तन्हाई दे आये 

'दहर' में होंगे, और भी, हमसे काबिल दीवाने 
'जू-ए -रवा' से इश्क को अपने, 'कतरा-ए-शबनम' कह आये 

'अफ़सू' है उसकी चाहत का,उसमे बुराई दीखती नहीं 
'गुरेज़ा ' होने की वजह , हम नाम अपना दे आये 




दिलगीर- sad
गमे -जाना-pain for lover
सरे-अफ़्लाक-sky
दहर-world
जू-ए -रवा-flowing river
कतरा-ए-शबनम-dew drop
अफ़सू-magic
गुरेज़ा-sad

Saturday, November 24, 2012

पैरो के नीचे ठंडी ज़मीं 
सर पर चढ़ा बुखार प्यार का 
इससे और प्यारी सुबह क्या होगी 
आँख खुले और दीदार यार का 

प्रत्यक्ष नहीं 
ख़याल सही 
सुबह मगर 
हँसीं तो हुई 

भरम टुटा 
खयालो का 
पैरो में आई 
जब ठंडी ज़मीं 

Sunday, November 4, 2012

उल्फत के दो पहलु, 
इक हम ,
इक तुम .

बाकी जो दरमियाँ में रहा ;
वो मौसम का तकाज़ा  था .

कभी आँखों से पिया था; 
कभी साँसों मैं जिया था ,

तीखी थी मुलाकातें कई पर;
बारीशें मिसरी ही रहीं .

गुब्बारों में छुपकर सोचा ;
ये दुनिया हमारी हुई ,

कांटो में उलझकर अरमां; 
मिटटी होकर बिखर गए .

हाथो की नज़दीकियों  में ;
मौसम नरमाई दे गया ,

दोनों उसी रास्ते पर है ,
दिशायें विरोधी हो गयी ..

बयानों के पर्चे ख़त्म ना होंगे 
हा मगर,
सुनने को अब हम तुम नहीं ..