Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Thursday, September 12, 2013
जो होती इतनी समझ तो क्यू जाने देते क्यों अपने ही हाथो मोल ये ग़म लेते
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