Friday, July 25, 2014

कश्मकश है गुत्थी है 
कभी समझ नहीं पाया दिल
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

देता है वो बेक़रारी 
सुकूँ पर उसी से मिलता है 
दुश्मन भी वही दोस्त भी 
कैसे शख़्श पर देखो आया दिल 

पत्थर से भी ज़्यादा पत्थर 
है ह्रदय पर मोम सा 
क़ायनात का गुस्सा लेकिन 
फूंलों से भी नाज़ुक दिल 

माँगा नहीं ख़ुदा से मैंने 
लकीरों में मेरी छुपा था वो 
प्यार दिया जहाँ भर का 
फिर भी अपना दिया न दिल 

पास जाऊं तो दूर हो जाता है 
दूर जाऊँ तो पास आ जाता है 
भूल जाऊं तो और याद आता है 
बड़ी मुश्किल में है अपना दिल 

साँसों में मेरी घुल गया है 
अब जाँ जाये तो वो जाये 
रोज़ है क़त्ल वो करता मुझे 
किस कातिल पर आया दिल 

अब कर लिया प्यार तो क्या भूलें 
सच- ज़ालिम पर आया दिल 
सारी दुनिया छोड़ के देख़ो 
किस पर अपना आया दिल 

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