Friday, June 27, 2014

'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 

          सोचा तपते ह्रदय को सुकूँ ,इक शाम हम देते 
          चीरते उसके घावों को, कुछ आराम  हम देते 
          बहोत निभाया उसने, डोर थाम हम लेते 
          यक़ीनन इस बार ह्रदय से, काम हम लेते 
ना जाने कब तक्दीरों में वो इक़रार हो गया 
उन लम्हों का तो उम्र भर इंतज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


          ख़याल की उनके गालों पर, कुछ अपने रंग देते 
          आग़ोश में खोकर उनके , कुछ उनके रंग लेते 
          बहोत कहा हमने, इक मौका उनको भी देते 
          ज़ख्म उनके सीने के, इस दिल पे ले लेते 
पर कर्कश वक़्त के चलते, इंकार हो गया 
हर ख्वाब,हर ख़्याल हमारा, बेज़ार हो गया 
'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' नाम क़रार हो गया 
ख़्वाब हमारे, ग़ैरों का इख़तियार हो गया 


'ख़िलाफ़ -ऐ -मामूल' -  Abnormal

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