Tuesday, August 24, 2010

मेरी किसी बात पर जब तुम खिल कर हस्ती हों
चलते चलते अचानक मेरा हाथ थाम लेती हों
मेरी आँखों में देख कर जब सवाल करती हों
बिन बोले मेरे एहसास जब जान लेती हों
नाराज़ होकर मुझसे मुह फेर लेती हों
और चाहती हों की में तुम्हे प्यार से मनाऊ
और दो ही पल में हसकर फिर मान जाती हों
जैसे कुछ हुआ ही नहीं, मेरी हों जाती हों
कभी माँ की तरह प्यार से समझाने लगती हों
तो कभी बच्चे की तरह फुट फुट कर रोने लगती हों
कभी तोह सयानी बन अछि बातें करती  हों
और कभी पागल बन कुछ भी कहती  रहती हों
मेरी तारीफ़ करते करते थकती नही कभी
जो में तारीफ़ करू तोह शर्मा जाती हों
आँखों में देखकर बस  आँखों से कहती हों
चुमलू माथा तोह आंखें बंद कर लेती हों
लगता है मेरे प्यार को खुद में समां लिया
सर लगाके सीने से जब मुझमे खो जाती हों
कभी दो शब्द भी नसीब नहीं होते
कभी गीत सुनाकर बस रुला देती हों
जब कभी तुम हक से कुछ मांग लेती हों
ना दू तोह लड़ कर छीन लेती हों
गुस्से या प्यार से मनवा ही लेती हों
लगता है की तुम बस मेरी ही हों
मेरे आने पे जब तुम ठंडी आहें लेती हों
मेरे जाने पे जब तुम उदास हों जाती हों
मुझे देखने को जो तूम बेताब रहती हों
लगता है की जीवन से सब कुछ पा लिया
लगता है की तुम्हारे लिए में ही सब कुछ हु
और यह सोच मुझे पूर्णता का एहसास दिलाती है

No comments:

Post a Comment