Thursday, September 16, 2010

             ख्वाहिशें तो बहोत सी है
ख्वाहिशो का क्या करें
मृगतृष्णा सी होती हैं
प्यास बढाकर खो जाएँ

             छोड़ो इनका तोल मोल
रहने दो गलियारों में
इनको पाने की कोशिश में
और क्या जाने खो जाए

              कितनो का कोई मोल नहीं
कई बहोत अनमोल हैं
पूरी ना होने पर लेकिन
सारी एक सी हों जाएं

               ना चलना इनके नक़्शे कदम
राहें भूलभुलैया हैं
दीवानां तो कर देंगी
ना जाने और क्या हों जाएँ

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